गोपालगंजः शासन प्रशासन विकास के लाख दावे कर ले, लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है. बिहार में शिक्षा व्यवस्था का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज भी कई जिलों में बच्चे खुले आसमान के नीचे पढ़ने को मजबूर हैं (Lack of facilities in Gopalganj schools). इतना ही नहीं ऐसे बच्चों के लिए मिड डे मील भी खुले आसमान के नीच बनाई जाती है. गोपालगंज जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर कुचायकोट प्रखण्ड के बघौच हरि बाजार के पास एक राजकीय प्राथमिक विद्यालय संचालित किया जाता है.
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बरामदे पर बैठकर पढ़ते हैं बच्चेः एक से पांच तक संचालित होने वाले इस स्कूल का अपना भवन तो है लेकिन महज दो रूम में ही करीब 2 सौ बच्चों की पढ़ाई होती है. दोनों रूम व भवन जर्जर हो चुके हैं. बारिश में छत से पानी टपकता है, जिससे क्लास में पढ़ने वाले बच्चों को परेशानी होती है. वहीं अन्य बच्चों को स्कूल के बरामदे व सड़क पर बैठा कर शिक्षा दी जाती है. यहां पढ़ने वाले बच्चे गर्मी, ठंड और बरसात में अपने घर से बोरा लाकर पेड़ के नीचे सड़क पर बैठते हैं.
मिड डे मिल भी खुले आसमान के नीचे बनताः साथ ही बच्चों के लिए मिड डे मिल भी खुले आसमान के नीचे बनता है. जिस वजह से खाना में कुछ भी गिरने का खतरा बना हुआ रहता है. इस स्कूल में सालों भर पेड़ के नीचे बैठकर यहां के बच्चे अपना भविष्य संवार रहे हैं. इस स्कूल में पांच शिक्षक हैं, जिसमें चार शिक्षक व एक शिक्षिका हैं. यहां नामांकित बच्चों की संख्या करीब 172 है. बिना नामांकन के आस पास के कई अन्य बच्चे पढ़ने आते हैं.
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क्या कहते हैं छात्र: खुशनाज खातून नामक छात्रा ने कहा कि विद्यालय की छत से पानी चुता है. खाना भी खुले में बनता है. सुजीत कुमार ने कहा कि बारिश होती है तो कॉपी कॉलम भींग जाता है. खाना बाहर बनता है कुछ गिरने की आशंका रहती है. शौचालय रोड पार करके जाना पड़ता है. दो से ढाई सौ बच्चे हैं और रूम दो ही है. सड़क पर बैठकर पढ़ते हैं. एक छात्रा ने बताया कि पढ़ाई अच्छी होती है, लेकिन रूम दो ही जिसके कारण बहुत बच्चे बाहर बैठते हैं. वहीं अभिभावकाें ने कहा कि यहां बच्चों को बहुत दिक्कत होती है. आस पास गंदगी फैली रहती है.
विद्यालयों में कमरा की कमी नहीं है. कहीं-कहीं कमरा की कमी है तो उसके लिए वार्षिक योजना बनती है तो उसके तहत भेजते हैं उसका आंकड़ा लिया जा रहा है-राजकिशोर शर्मा, जिला शिक्षा पदाधिकारी
"यहां बहुत समस्या है. दो कमरे हैं और बच्चों की संख्या 172 है. कुछ बच्चों को बरामदे तो कुछ बच्चों को पेड़ के नीचे रोड पर बैठा कर पढ़ाना पड़ता. खाना भी खुले में बनता है. कुछ अनहोनी हो जाए तो हम लोगों को ही जवाब देना पड़ेगा. कई बार अधिकारियों को इसके बारे में बताई गई. हर बार मापी होती है लेकिन इसके बाद कुछ नहीं होता"-अवध किशोर प्रसाद, प्रधानाध्यापक