गोपालगंजः एक ओर सरकार मछली पालन के लिए कई तरह की योजनाएं संचालित कर रही है, ताकि अधिक से अधिक लोग मछली पालन व्यवसाय से जुड़ सकें. जिससे उनकी अच्छी आमदनी के साथ बेरोजगारी भी दूर की जा सके. लेकिन गोपलगंज मत्स्य विभाग उदासीन बना हुआ है. आलम यह है कि सरकार की ओर से निर्धारित लक्ष्य को भी पूरा नहीं कर पा रहा है. मछली पालन से आस लगाए लोगों को निराशा ही हाथ लग रही है.
मछली पालन करने वाले लोग निराश
दरअसल, सरकार ने सामान्य सहित अनुसूचित जाति, जनजाति के लिए कई तरह की योजनाएं चलाई हैं. जिनका जिले में क्रियान्वयन किया जाना है, पर क्रियान्वयन नहीं होने से लोगों को काफी परेशानी हो रही है. इन योजनाओं पर अमल नहीं होने के कारण युवाओं सहित मछली पालन की इच्छा रखने वाले लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है. जिससे मछली पालन में यह जिला काफी पीछे है. जबकि जिले में मछली की खपत 17.06 हजार मीट्रिक टन है और सरकारी उत्पादन महज 4.6 हजार मीट्रिक टन है.
बाहर से होता है 5.4 मीट्रिक टन का मछली आयात
वहीं, निजी स्तर की बात करे तो जिले में निजी स्तर पर उत्पादन करीब 6.7 हजार मीट्रिक टन उत्पादन होता है ।वही बाहरी मछलियों के बात करें तो बाहर से कुल 5.4 मीट्रिक टन मछली का आयात होता है। जबकि सरकार की ओर से मत्स्य पालन विभाग को सरकारी स्तर पर कुल 11.66 हजार मीट्रिक टन का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, जो 11.66 के बदले महज 4.6 हजार मीट्रिक टन ही उत्पादन कर सका. जिससे स्पष्ट होता है कि विभाग अपने लक्ष्य के प्रति कितना गम्भीर है. इतने कम उत्पादन के बावजूद विभाग युवाओं को इस रोजगार से जोड़ने के लिए कोई पहल नहीं कर रही है, ताकि मछली का रोजगार कर लोग उत्पादन में वृद्धि कर सके.
बाहर से मंगाया जाता है मछलियों को
गोपालगंज में अधिकतर मछलियां आंध्रप्रदेश समेत विभिन्न राज्यों से आपूर्ति की जाती है. जिले में अगर मछली के व्यापक पैमाने पर इसका उत्पादन होता तो बाहरी मछलियों की आवश्यकता ही नहीं होती और राजस्व की भी बचत होती. बाहर से मछलियां लाने में कई तरह की समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है. बावजूद मजबूरन बाहर से मछलियों को मंगाया जाता है.
विभागीय उदासीनता के कारण नहीं मिल रहा रोजगार
रोजगार की आस लगाए युवा ने बताया कि विभागीय उदासीनता के कारण हम लोग चाह कर भी मछली पालन का रोजगार नहीं कर पा रहे है. कई बार अधिकारियों और ऑफिस का चक्कर लगाने के बाद भी कोई सकारात्म बात नहीं बताई जाती है. जिसके कारण हम लोग मछली पालन का रोजगार नहीं कर पाते है. जब मत्स्य पालन अधिकारी अनिल कुमार से बात की गई तो उनका कहना था कि इसके लिए व्यापक जागरूकता का कार्य किया जा रहा है.