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गोपालगंज में सरकारी स्तर पर मछली का उत्पादन कम, बाहरी मछलियों के भरोसे विभाग

रोजगार की आस लगाए युवा ने बताया कि विभागीय उदासीनता के कारण हम लोग चाहकर भी मछली पालन का रोजगार नहीं कर पा रहे हैं. कई बार अधिकारियों और ऑफिस का चक्कर लगाने के बाद भी कोई सकारात्मक बात नहीं बताई जाती है. जिसके कारण हम लोग मछली पालन का रोजगार नहीं कर पाते हैं.

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Published : Dec 14, 2019, 9:26 AM IST

गोपालगंजः एक ओर सरकार मछली पालन के लिए कई तरह की योजनाएं संचालित कर रही है, ताकि अधिक से अधिक लोग मछली पालन व्यवसाय से जुड़ सकें. जिससे उनकी अच्छी आमदनी के साथ बेरोजगारी भी दूर की जा सके. लेकिन गोपलगंज मत्स्य विभाग उदासीन बना हुआ है. आलम यह है कि सरकार की ओर से निर्धारित लक्ष्य को भी पूरा नहीं कर पा रहा है. मछली पालन से आस लगाए लोगों को निराशा ही हाथ लग रही है.

मछली पालन करने वाले लोग निराश
दरअसल, सरकार ने सामान्य सहित अनुसूचित जाति, जनजाति के लिए कई तरह की योजनाएं चलाई हैं. जिनका जिले में क्रियान्वयन किया जाना है, पर क्रियान्वयन नहीं होने से लोगों को काफी परेशानी हो रही है. इन योजनाओं पर अमल नहीं होने के कारण युवाओं सहित मछली पालन की इच्छा रखने वाले लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है. जिससे मछली पालन में यह जिला काफी पीछे है. जबकि जिले में मछली की खपत 17.06 हजार मीट्रिक टन है और सरकारी उत्पादन महज 4.6 हजार मीट्रिक टन है.

देखें पूरी रिपोर्ट

बाहर से होता है 5.4 मीट्रिक टन का मछली आयात
वहीं, निजी स्तर की बात करे तो जिले में निजी स्तर पर उत्पादन करीब 6.7 हजार मीट्रिक टन उत्पादन होता है ।वही बाहरी मछलियों के बात करें तो बाहर से कुल 5.4 मीट्रिक टन मछली का आयात होता है। जबकि सरकार की ओर से मत्स्य पालन विभाग को सरकारी स्तर पर कुल 11.66 हजार मीट्रिक टन का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, जो 11.66 के बदले महज 4.6 हजार मीट्रिक टन ही उत्पादन कर सका. जिससे स्पष्ट होता है कि विभाग अपने लक्ष्य के प्रति कितना गम्भीर है. इतने कम उत्पादन के बावजूद विभाग युवाओं को इस रोजगार से जोड़ने के लिए कोई पहल नहीं कर रही है, ताकि मछली का रोजगार कर लोग उत्पादन में वृद्धि कर सके.

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मछली पकड़ते मछुआरे

बाहर से मंगाया जाता है मछलियों को
गोपालगंज में अधिकतर मछलियां आंध्रप्रदेश समेत विभिन्न राज्यों से आपूर्ति की जाती है. जिले में अगर मछली के व्यापक पैमाने पर इसका उत्पादन होता तो बाहरी मछलियों की आवश्यकता ही नहीं होती और राजस्व की भी बचत होती. बाहर से मछलियां लाने में कई तरह की समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है. बावजूद मजबूरन बाहर से मछलियों को मंगाया जाता है.

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पानी में तैरती मछलियां

विभागीय उदासीनता के कारण नहीं मिल रहा रोजगार
रोजगार की आस लगाए युवा ने बताया कि विभागीय उदासीनता के कारण हम लोग चाह कर भी मछली पालन का रोजगार नहीं कर पा रहे है. कई बार अधिकारियों और ऑफिस का चक्कर लगाने के बाद भी कोई सकारात्म बात नहीं बताई जाती है. जिसके कारण हम लोग मछली पालन का रोजगार नहीं कर पाते है. जब मत्स्य पालन अधिकारी अनिल कुमार से बात की गई तो उनका कहना था कि इसके लिए व्यापक जागरूकता का कार्य किया जा रहा है.

गोपालगंजः एक ओर सरकार मछली पालन के लिए कई तरह की योजनाएं संचालित कर रही है, ताकि अधिक से अधिक लोग मछली पालन व्यवसाय से जुड़ सकें. जिससे उनकी अच्छी आमदनी के साथ बेरोजगारी भी दूर की जा सके. लेकिन गोपलगंज मत्स्य विभाग उदासीन बना हुआ है. आलम यह है कि सरकार की ओर से निर्धारित लक्ष्य को भी पूरा नहीं कर पा रहा है. मछली पालन से आस लगाए लोगों को निराशा ही हाथ लग रही है.

मछली पालन करने वाले लोग निराश
दरअसल, सरकार ने सामान्य सहित अनुसूचित जाति, जनजाति के लिए कई तरह की योजनाएं चलाई हैं. जिनका जिले में क्रियान्वयन किया जाना है, पर क्रियान्वयन नहीं होने से लोगों को काफी परेशानी हो रही है. इन योजनाओं पर अमल नहीं होने के कारण युवाओं सहित मछली पालन की इच्छा रखने वाले लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है. जिससे मछली पालन में यह जिला काफी पीछे है. जबकि जिले में मछली की खपत 17.06 हजार मीट्रिक टन है और सरकारी उत्पादन महज 4.6 हजार मीट्रिक टन है.

देखें पूरी रिपोर्ट

बाहर से होता है 5.4 मीट्रिक टन का मछली आयात
वहीं, निजी स्तर की बात करे तो जिले में निजी स्तर पर उत्पादन करीब 6.7 हजार मीट्रिक टन उत्पादन होता है ।वही बाहरी मछलियों के बात करें तो बाहर से कुल 5.4 मीट्रिक टन मछली का आयात होता है। जबकि सरकार की ओर से मत्स्य पालन विभाग को सरकारी स्तर पर कुल 11.66 हजार मीट्रिक टन का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, जो 11.66 के बदले महज 4.6 हजार मीट्रिक टन ही उत्पादन कर सका. जिससे स्पष्ट होता है कि विभाग अपने लक्ष्य के प्रति कितना गम्भीर है. इतने कम उत्पादन के बावजूद विभाग युवाओं को इस रोजगार से जोड़ने के लिए कोई पहल नहीं कर रही है, ताकि मछली का रोजगार कर लोग उत्पादन में वृद्धि कर सके.

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मछली पकड़ते मछुआरे

बाहर से मंगाया जाता है मछलियों को
गोपालगंज में अधिकतर मछलियां आंध्रप्रदेश समेत विभिन्न राज्यों से आपूर्ति की जाती है. जिले में अगर मछली के व्यापक पैमाने पर इसका उत्पादन होता तो बाहरी मछलियों की आवश्यकता ही नहीं होती और राजस्व की भी बचत होती. बाहर से मछलियां लाने में कई तरह की समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है. बावजूद मजबूरन बाहर से मछलियों को मंगाया जाता है.

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पानी में तैरती मछलियां

विभागीय उदासीनता के कारण नहीं मिल रहा रोजगार
रोजगार की आस लगाए युवा ने बताया कि विभागीय उदासीनता के कारण हम लोग चाह कर भी मछली पालन का रोजगार नहीं कर पा रहे है. कई बार अधिकारियों और ऑफिस का चक्कर लगाने के बाद भी कोई सकारात्म बात नहीं बताई जाती है. जिसके कारण हम लोग मछली पालन का रोजगार नहीं कर पाते है. जब मत्स्य पालन अधिकारी अनिल कुमार से बात की गई तो उनका कहना था कि इसके लिए व्यापक जागरूकता का कार्य किया जा रहा है.

Intro:एक ओर सरकार मछली पालन के लिए कई तरह के योजनाएं संचालित कर रही है ताकि अधिक से अधिक लोग मछली पालन व्यवसाय से जुड़ सके। ताकि अच्छी आमदनी के साथ बेरोजगारी भी दूर किया जा सके लेकिन गोपलगंज मत्स्य विभाग उदासीन बना हुआ है। आलम यह है कि सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य को भी पूरा नही कर पा रही है। मछलीपालन के आस लगाए लोगो को निराशा ही हाथ लग रही हैं। साथ ही बेरोजगार युवाओ को भी बेरोजगारी के दंश से मुक्ति मिल पाना संभव नहीं दिख रहा। इससे विभाग की उदासीनता कहे या लापरवाही।





Body:जिले के युवा मछली पालन कर रोजगार पाने के लिए अब भी तरस रहे हैं,पर विभाग के सुस्त कार्यप्रणाली व कार्य में पारदर्शिता की कमी के कारण योजनाएं सफलता की डगर पर आगे नहीं बढ़ पा रही है। इस कारण मछली के लिए लोगों को बाहर से आने वाली आपूर्ति पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है। जिले में मत्स्य विभाग की योजना की लक्ष्य अभी काफी दूर है। सरकार ने सामान कोटी सहित अनुसूचित जाति जनजाति के लिए कई तरह की योजनाएं चलाई है जिनका जिले में क्रियान्वयन किया जाना है पर इस क्रियान्वयन नहीं होने से लोगों को काफी परेशानी हो रही है।इस योजनाओं में अमल नहीं होने के कारण युवाओं सहित मछली पालन की इच्छा रखने वाले लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है जिससे मछली पालन में यह जिला काफी पीछे है। जबकि जिले में मछली का खपत 17.06 हजार मैट्रिक टन है और सरकारी उत्पादन महज 4.6 हजार मैट्रिक टन होता है। वही निजी स्तर की बात करे तो जिले में निजी स्तर पर उत्पादन करीब 6.7 हजार मैट्रिक टन उत्पादन होता है ।वही बाहरी मछलियों के बात करें तो बाहर से कुल 5.4 मैट्रिक टन मछली का आयात होता है। जबकि सरकार द्वारा मत्स्य पालन विभाग को सरकारी स्तर पर कुल 11.66 हजार मैट्रिक टन का लक्ष्य निर्धारित किया गया था जो 11.66के बदले महज 4.6 हजार मैट्रिक टन ही उत्पादन कर सका जिससे स्पष्ट होता है कि विभाग अपने लक्ष्य के प्रति कितना गम्भीर है। इतने कम उत्पादन के बावजूद विभाग युवाओं को इस रोजगार से जोड़ने के लिए कोई पहल नही कर रही है ताकि मछली का रोजगार कर लोग उत्पादन में बृद्धि कर सके। विभाग द्वारा अगर योजनाओं पर ईमानदारी से कार्य किया जाए तो काफी संख्या में लोगों सहित युवाओं को रोजगार के अवसर प्राप्त हो सकते हैं। इतना ही नहीं जिले से बाहर जाने वाले दूसरे राज्यों में राशि की भी बचत होगी। गोपालगंज में अधिकतर मछलियां आंध्रप्रदेश समेत विभिन्न राज्यो से आपूर्ति की जाती है। जो यह के राजस्व बाहर जाता है। जिले में अगर मछली के व्यपक पैमाने पर इसका उत्पादन होता तो बाहरी मछलियों की आवश्यकता ही नही होती और राजस्व की भी बचत होती। बाहर से मछलियां लाने में कई तरह के समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। बावजूद मजबूरन बाहर से मछलियों को मंगाया जाता है। इस संदर्भ में रोजगार की आस लगाए युवा ने बताया कि विभागीय उदासीनता के कारण हम लोग चाह कर भी मछली पालन का रोजगार नही कर पा रहे है कई बार अधिकारियों व ऑफिस का चक्कर लगाने के बाद भी कोई सकारात्म बात नही बताई जाती है जिसके कारण हम लोग मछली पालन का रोजगार नही कर पाते है। जब मत्स्य पालन अधिकारी अनिल कुमार से बात की गई तो उनका कहना था कि इसके लिए व्यापक जागरूकता का कार्य किया जा रहा है।
गोपालगंज में मुख्यमंत्री योजना के अंतर्गत कुल लक्ष्य 11.66 हजार मैट्रिक टन रखा गया है।नए तालाब का निर्माण व जीर्णोद्धार एसी /एसटी के लिए नर्सरी का निर्माण, प्रशिक्षण के लिए मछली पालकों को राज्य से बाहर व अंदर प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई है।ताकि लक्ष्य की प्राप्ति हो सके।

बाइट-अनिल कुमार,मत्स्य पालन अधिकारी
बाइट-शशिकांत, इच्छुक युवा मछली पालक





Conclusion:कुल मिलाकर कहा जा सकता है की जिले में विभागीय उदासीनता के कारण लक्ष्य की प्राप्ति नही हो पा रही है जिसके कारण बाहरी मछलियों को मांगा कर खपत कराई जाती है। अगर मछली उत्पादन का दायरा बढ़ेगा तो बाहरी मछलियों पर रोक लगेगी और यहां का राजस्व बाहर नही जा सकेगा। वही वेरोजगारो को इसका लाभ देकर अच्छी उत्पादन कि जा सकती है।



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