गोपालगंज: जिले के सिधवलिया थाना क्षेत्र के हलुआड़ गांव में एक नाबालिग की शादी होने से पहले ही महिला हेल्पलाइन ने तुड़वा दी. दरअसल, महिला हेल्पलाइन की टीम को सूचना मिली थी कि हलुआड़ गांव में एक माता-पिता अपनी नाबालिग बेटी की शादी करवा रहें है. सूचना पर पुलिस के साथ गांव पहुंची टीम ने दोनों दो पक्षों से बांड भरवाया और 18 साल से कम उम्र की लड़की की शादी ना कराने की हिदायत दी.
नाबालिग की शादी कराने का मामला
बता दें, केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक ने बाल विवाह के खिलाफ कड़े कानून बनाये है. जगह-जगह जगरूकता अभियान चलाए जा रहे है. बावजूद इसके आज भी समाज में कुछ ऐसे लोग है, जो या तो मजबूरी में नबालिग बच्ची की शादी कर दे रहे है या फिर ना समझी में. कुछ इसी तरह का मामला सिधवलिया थाना क्षेत्र के हलुआड़ गांव से सामने आया हैं, जहां एक 15 वर्षीय बच्ची स्किबा खातून की शादी उसके माता-पिता द्वारा सदौवा निवासी नुरहसन मंसूर के पुत्र 25 वर्षीय युवक अलमोदीन अली के साथ की जा रही थी.
महिला हेल्पलाइन ने रुकवाई शादी
इसकी जानकारी महिला हेल्पलाइन की प्रबंधक नाजिया परवीन को हुई. नाजिया स्थानीय पुलिस की मदद से मौके पर पहुंची और शादी होने से रूकवा दी और दोनों पक्ष के लोगों से बांड भरवाकर 18 वर्ष के पहले शादी न करने की हिदायत दी. इस संदर्भ में जब लड़की की मां से बात की गई तो उन्होंने कहा कि इसके पिता हार्ट के मरीज है और तीन-तीन बेटियां है इसलिए मजबूरी में शादी करनी पड़ रही हैं.
बाल विवाह के लिए कानून
बाल विवाह की कुरीति को रोकने के लिए 1929 में शारदा एक्ट बनाया गया था. इस एक्ट के मुताबिक नाबालिग लड़के और लड़कियों का विवाह करने पर जुर्माना और कैद हो सकती थी. आजादी के बाद से लेकर आजतक इस एक्ट में कई संशोधन किए गए है. सन् 1978 में इसमें संशोधन कर लड़की की उम्र शादी के वक्त 15 से बढ़ाकर 18 साल और लड़के की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल कर दी गई थी.
बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006
वहीं, "बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006" की धारा 9 और 10 के तहत बाल विवाह के आयोजन पर दो वर्ष तक का कठोर कारावास और एक लाख रूपए जुर्माना या दोनों से दंडित करने का प्रावधान किया गया है. इसके अलावा बाल विवाह कराने वाले अभिभावक, रिश्तेदार, विवाह कराने वाला पंडित, काजी को भी तीन महीने तक की कैद और जुर्माना हो सकता है. वहीं, अगर बाल विवाह हो जाता है तब किसी भी बालक या बालिका की अनिच्छा होने पर उसे न्यायालय द्वारा वयस्क होने के दो साल के अंदर अवैध घोषित करवाया जा सकता है.
2006 अधिनियम के मुख्य प्रावधान
- इस अधिनियम के अंतर्गत 21 वर्ष से कम आयु के पुरुष या 18 वर्ष से कम आयु की महिला के विवाह को बाल विवाह की श्रेणी में रखा जाएगा.
- इस अधिनियम के अंतर्गत बाल विवाह को दंडनीय अपराध माना गया है.
- बाल विवाह करने वाले वयस्क पुरुष या बाल विवाह को संपन्न कराने वालों को इस अधिनियम के तहत दो वर्ष के कठोर कारावास या 1 लाख रूपए का जुर्माना या दोनों सजा से दंडित किया जा सकता है किंतु किसी महिला को कारावास से दंडित नहीं किया जाएगा.
- इस अधिनियम के अंतर्गत किये गए अपराध संज्ञेय और गैर जमानती होंगे.
- इस अधिनियम के अंतर्गत अवयस्क बालक के विवाह को अमान्य करने का भी प्रावधान है.
बाल विवाह को खत्म करना समाज की है नैतिक जिम्मेवारी
देश में बाल विवाह के खिलाफ कानून बने हैं और समय के अनुसार उसमें लगातार संशोधन कर उसे ओर प्रभावशाली बनाया गया है फिर भी बाल विवाह लगातार हो रहे हैं. अगर सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अंत नही हो पा रहा है, तो इस असफलता के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि बाल विवाह एक सामाजिक समस्या है और इसका निदान सामाजिक जागरूकता से ही संभव हो सकेगा. केवल कानून बनाने से यह कुरीति खत्म नहीं होने वाली है.