गया : बिहार के गया में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला चल रहा है. पितृपक्ष मेले के 14 वें दिन आश्विन कृष्ण द्वादशी को भीमगया, गोप्रचार और गदालोल में पिंडदान करने का विधान है. गोप्रचार तीर्थ वह वेदी है, जहां मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने यहां गोदान किया था. वहीं, भगवान विष्णु ने हैती नामक दैत्य को मारकर अपना गदा जहां धोया था, वह गदालोल वेदी के रूप में है. वहीं, भीमसेन ने जहां पर पिंडदान किया था, उनके अंगूठे के तीन हाथ का गहरा चिन्ह है, जिसे भीमगया वेदी के नाम से जाना जाता है. गदालोल वेदी पर स्वर्ण दान का भी विधान है. मान्यता है कि इन वेदियों पर पिंडदान से पितरों को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है. पितर तर जाते हैं और अपने वंश को संपन्न होने का आशीर्वाद देते हैं.
त्रिपाक्षिक श्राद्ध कराने वाले इन तीन वेदियो पर करते हैं पिंडदान : 17 दिनों तक रहकर त्रिपाक्षिक श्राद्ध कराने वाले अश्विन कृष्ण द्वादशी को तीन वेदियों पर पिंडदान करते हैं. इन वेदियो में भीमगया, गोप्रचार और गदालोल वेदी शामिल है. इस तिथि को इन्हीं तीन वेदियों पर पिंडदान करने का विधान है. त्रैपाक्षिक श्राद्ध करने वाले 17 दिन रहकर पिंडदान का कर्मकांड करते हैं. वे पितृपक्ष मेले के 14 वें दिन यानी आश्विन कृष्ण द्वादशी को इन वेदियो पर पिंडदान करते हैं, तो उनके पितर विष्णु लोक को प्राप्त होते हैं. वहीं, स्वर्ण दान की परंपरा को लेकर मान्यता है,कि इससे पितर अपने वंश को संपन्नता का आशीर्वाद देते हैं.
गोप्रचार तीर्थ में ब्रह्मा जी ने किया था गोदान : भीमगया, गोप्रचार वेदी और गदालोल वेदी की अलग-अलग मान्यताएं हैं. गौप्रचार तीर्थ की बड़ी मान्यता यह है कि यहां ब्रह्मा जी ने गोदान किया था. गोप्रचार तीर्थ मंगला गौरी मंदिर के समीप स्थित वेदी है. यहां गौ माता के खुर के निशान आज भी विराजमान हैं. यहां पितरों को गौऋण से मुक्ति दिलाने का विधान है. ब्रह्मा जी के इस वेदी पर गोदान करने की मान्यता को लेकर इस पिंंड वेदी का बड़ा महत्व और मान्यता है.
गदालोल वेदी पर किया जाता है स्वर्ण दान : गदालोल वेदी के संदर्भ में भगवान विष्णु से जुड़ी मान्यताएं हैं. कहा जाता है, कि गदाधर भगवान विष्णु स्वयं यहां आए थे और अपने गदा से हैती दैत्य नाम के राक्षस को मारा था. हैती नाम के राक्षस को मारने के बाद उन्होंने यहां स्थित सरोवर में अपने गदा को धोया था, जिसके बाद उस तालाब का नाम गदालोल सरोवर है. इस तरह गदालोल वेदी की भगवान से विष्णु से जुड़ी मान्यता है. यहां स्वर्ण दान का विधान है. यहां त्रिपाक्षिक श्राद्ध करने वाले पिंडदानी सोने के सिक्के का दान करते हैं.
भीमगया में पिंडदान से विष्णु लोक की प्राप्ति : इसी प्रकार इस दिन भीमगया वेदी में पिंडदान करने का विधान है. इस वेदी पर भीमसेन की मूर्ति है. भीमसेन के अंगूठे का तीन हाथ का गहरा चिह्न आज भी मौजूद है. इसी कारण इस स्थान का नाम भीमगया पड़ा. इस वेदी पर भीमसेन ने श्राद्ध किया था. भीमगया से दक्षिण पश्चिम एक पहाड़ी है, जिसके ऊपर मां मंगला देवी का मंदिर है. भीमगया में पिंडदान के बाद पिंडदानी-तीर्थयात्री कतारबद्ध होकर माता मंगला गौरी के दर्शन करते हैं. मान्यता है कि भीमगया वेदी पर पिंडदान करने से पितरों को विष्णुलोक की प्राप्ति होती है. इस तरह आश्विन कृष्ण द्वादशी को भीमगया, गोप्रचार और गदालोल पिंंडवेदी में पिंडदान करने का विधान है, जिससे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और विष्णुलोक को प्राप्त होते हैं.
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