गया : बिहार के गया में पितृपक्ष मेला महासंगम 2023 चल रहा है. पितृपक्ष मेले में लाखों तीर्थयात्री अपने पितरों का पिंडदान के लिए पहुंचे हैं. वहीं, त्रिपक्षीय श्राद्ध करने वालों के लिए आश्विन कृष्ण एकादशी के दिन मुंडपृष्ठा, आदिगया और धौतपद में खोवे और तिल-गुड़ से पिंडदान करने का विधान है. यहां चांदी दान करने की परंपरा है. इससे पितरों को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है और पितर खुश होकर अपने वंश को संपन्नता का आशीर्वाद देते हैं.
विष्णु पद मंदिर के समीप है यह तीनों वेदियां : विष्णुपद मंदिर के समीप मुंडपृष्ठा, आदिगया और धौतपद वेदी हैं. इन तीनों वेेदियों की पिंडदान को लेकर बड़ी मान्यता है, यहां पिंडदान से जहां पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. वहीं, पितर अपने वंश को संपन्न होने का आशीर्वाद देते हैं. मुंडपृष्ठा में 12 भुजा वाली मुंडपृष्ठा देवी की मूर्ति है. वहीं, गया का सबसे प्राचीन स्थान आदिगया को माना जाता है. यहां भगवान गजाधर की प्राचीन प्रतिमा है. मुंडपृष्ठा से यह स्थान दक्षिण पश्चिम है.
तीनों वेदियों पर आज पिंडदान : मुंडपृष्ठा में एक शिला है, जिस पर पिंडदान होता है. यहां से पांच सीढ़ी उतरने पर एक आंगन मिलता है. आंगन के पश्चिम तीन सीढ़ियां उतरने पर एक कोठरी में कई प्रतिमाएं हैं. वहीं, आदि गया के दक्षिण -पश्चिम गया के दक्षिण फाटक के पूर्व में एक सफेद शिला है, उस शिला के आसपास पिंडदान होता है. इस स्थान को धौतपद कहा जाता है. धौतपद को लेकर ब्रह्मा जी से जुड़ी मान्यता भी है.
त्रिपाक्षिक श्राद्ध के पिंडदान का महत्व : एकादशी तिथि को इन तीनों वेदियों पर त्रिपाक्षिक श्राद्ध करने पहुंचे तीर्थ यात्रियों को पिंडदान करना चाहिए. इससे पितरों को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है. वहीं, इन पिंड वेदियों पर चांदी के सामान को दान करना चाहिए. मान्यता है कि खोवे, तिल -गुड़ से जहां पितर विष्णुलोक को जाते हैं. वहीं इन वेदियों पर ब्राह्मण को चांदी का दान से पितर अपने वंश को संपन्नता का आशीर्वाद देते हैं.
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