गया: बिहार के गया जिले में शिक्षिका सुष्मिता सान्याल वेस्ट टू हेल्थ प्रोग्राम के तहत मटके वाला कूलर (Pitcher Cooler) तैयार की थीं. इस कूलर का प्रेजेंटेशन केंद्र सरकार के प्रधान सलाहकार वैज्ञानिक विजय राघवन (Scientist Vijay Raghavan) 'स्वच्छता सारथी संवाद कार्यक्रम' (Scientific Methods Of Waste Management Program) के अंतर्गत देखेंगे. इसके साथ ही इस कूलर को बनाने के दौरान किए गए कार्यों को लेकर चर्चा करेंगे. बता दें सुष्मिता सान्याल को केंद्र सरकार ने कचरे से ऊर्जा तैयार करने के लिए एक साल की फेलोशिप भी दी है.
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प्रधानमंत्री विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद के 9 राष्ट्रीय मिशन के अंतर्गत वेस्ट टू वेल्थ मिशन के तहत सुष्मिता को फेलोशिप भी दिया गया है. केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों और प्रधान सलाहकार वैज्ञानिक के सामने वर्चुअल तरीके से सोमवार को 3 बजे प्रेजेंटेशन होगा. जिसमें उनके माध्यम से किए गए कार्यों और शोध पर चर्चा की जाएगी.
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मुझे केंद्र सरकार द्वारा जो फेलोशिप मिला है, उसमें कचड़ा से ऊर्जा का विकास करना है. अभी मैं कूलर को चलाने के लिए बाइक की बैटरी का उपयोग कर रही हूं. लेकिन मुझे कचड़े से ऊर्जा का विकास करना हे. इसके लिए मैं बायो बैटरी बनाने के लिए काम कर रही हूं. यह बैटरी गोबर से बनेगा. अभी इस पर शोध कर रही हूं. केन्द्र सरकार के मुख्य सलाहकार वैज्ञानिक स्वच्छता सारथी संवाद के तहत मेरे प्रोजेक्ट को आज 3 बजे देखेंगे. इस संवाद में मुझे तीन से चार मिनट का समय मिलेगा, जिसमें मुझे पूरी जानकारी देनी होगी. -सुष्मिता सान्याल, शिक्षिका
दरअसल, गया शहर के चंदौती मध्य विद्यालय (Chandauti High School In Gaya) की शिक्षिका सुष्मिता सान्याल कचड़ा प्रबंधन के लिए काम कर रही हैं. शिक्षिका पिछले कई सालों से कचरे का निष्पादन के लिए कार्य कर रही हैं. घर के कचरे से जैविक खाद बनाना और लोगों को इसके लिए जागरूक करना इनकी दिनचर्या है. इसी बीच दीपावली के पूर्व घर की सफाई में निकले कचड़े को उन्होंने इकट्ठा कर कुछ बनाने का सोचा और उन्होंने मात्र 500 रुपये में एक घड़े वाले कूलर (Pitcher Cooler) को बना दिया.
यह कूलर खासकर मध्यवर्गीय परिवारों के लिए काफी लाभदायक सिद्ध हो रहा है. कूलर को बनाने में बाजार से सिर्फ एक प्लास्टिक फैन की खरीदारी की जाती है. बाकी अन्य सामानों को घर से निकले कचड़े का इस्तेमाल किया जाता है. इन सभी सामानों को बाजार से खरीदने में 400-500 रुपये का खर्च पड़ता है.
यह कूलर बिल्कुल आवाज नहीं करता है. इस कूलर में काफी ऊर्जा की जरूरत नहीं होती है. एक तरह से कह सकते है कि यह कूलर इको फ्रेंडली है. इस कूलर में बाल्टी का उपयोग सांचा के लिए किया गया है, जो कि कही भी आसानी से ले जाया जा सकता है.
इस घड़ा वाले कूलर में एक बाल्टी में घड़ा रखकर उसमें पानी भर दिया जाता है. घड़ा में एक मोटर लगा रहता है जो बाल्टी के अंदर हिस्से में ऊपर से पानी गिराता रहता है. घड़ा का पानी ठंडा रहता है. जैसे ही फैन चलता है, फैन घड़े के पानी की नमी को ऑब्जर्व करता है और बाहर के छिद्र से हवा फेंकता है. इस कूलर के सामने बैठा व्यक्ति अधिक गर्मी में ठंडक महसूस करने लगता है.
यह कूलर मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में काम करनेवाली महिलाओं के लिए बनाया गया है. महिलाएं कम पैसों में कूलर को आसानी से बनाकर उपयोग कर सकती हैं. शिक्षिका ने बताया कि उनके इस अविष्कार को देख स्कूल के दो बच्चे भी उपयोग कर रहे हैं. बच्चे पढ़ाई करते समय कूलर का इस्तेमाल करते हैं. वहीं गोलगप्पे बेचने वालों ने भी इस कूलर को अपने ठेला पर लगवा रखा है.
गौरतलब है कि सुष्मिता सान्याल का घड़ा का कूलर प्रोजेक्ट को प्रधानमंत्री विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद ने देश भर के 60 प्रोजेक्ट में सेलेक्ट किया था. अब इसी प्रोजेक्ट में ऊर्जा का साधन देने के लिए कूड़ा का इस्तेमाल कैसे हो, इस पर शोध करने के लिए एक साल का फेलोशिप भी मिला है.