गया: गया जी में पितृपक्ष (Pitru Paksha 2021) के तहत पिंडदान शुरू हो गया है. बिहार की धार्मिक नगरी गया जी में त्रैपाक्षिक कर्मकांड करने वाले पिंडदानी आज दूसरा पिंडदान (Second Of Pinddan In Gaya) कर रहे हैं. पितृपक्ष के दूसरे दिन प्रेतशिला में पिंडदान करने का महत्व है. पितृपक्ष के दूसरे दिन पंचवेदी यानी प्रेतशिला, रामशिला, ब्रह्मकुंड, कागबली और रामकुंड में पिंडदान किया जाता है. त्रेपाक्षिक श्राद्ध करने वाले पिंडदानी इन पांचों वेदियों पर पिंडदान करते हैं. इन पांचों वेदियों में प्रेतशिला सबसे प्रमुख पिंड वेदी माना जाता है.
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प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध या प्रौष्ठप्रदी श्राद्ध के दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है, जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को हुआ हो. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन श्राद्ध कर्म करने वालों को धन-सम्पत्ति में वृद्धि होती है. वहीं पूर्वजों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है. प्रेतशिला को भूतों का पहाड़ कहा जाता है. मान्यता है कि इस पहाड़ पर आज भी भूत-प्रेतों का वास है. जहां हजारों की संख्या में पिंडदानी 676 सीढ़ियां चढ़कर पिंडदान करने पहुंच रहे हैं. जहां वे सत्तू उड़ाकर पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति के लिए प्रार्थना कर रहे हैं.
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दरअसल, प्रेतशिला को लेकर एक दंत कथा है कि ब्रह्मा जी सोने का पहाड़ ब्राह्मण को दान में दिया था. सोने का पहाड़ दान में देने के बाद ब्रह्मा जी ब्राह्मणों के पास शर्त रखे थे. यदि आपलोग किसी से दान लेंगे, तो ये सोने का पर्वत पत्थर का पर्वत हो जाएगा. राजा भोग ने छल से पंडा को दान दे दिया. जिसके बाद ब्रह्मा जी ने इस पर्वत को पत्थर का पर्वत बना दिया था.
ब्राह्मणों ने भगवान ब्रह्ना से गुहार लगाया कि हमलोग की जीविका कैसे चलेगी. ब्रह्मा जी ने कहा कि इस पहाड़ पर बैठकर मेरे पद चिन्ह पर पिंडदान करना होगा. जिसके बाद पीतर को प्रेतयोनि से मुक्ति मिलेगी. इस पर्वत पर तीन स्वर्ण रेखा है, तीनों स्वर्ण रेखा में ब्रह्मा, विष्णु और शिव विराजमान रहेंगे. तब से इस पर्वत को प्रेतशिला कहा गया और ब्रहा जी के पदचिह्न पर पिंडदान होने लगा.
इस पर्वत पर धर्मशीला है, जिस पर पिंडदानी ब्रह्ना जी के पद चिन्ह पर पिंडदान करके धर्मशीला पर सत्तू उड़ाते हैं. इसके साथ ही कहते हैं कि 'उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो'. सत्तू उड़ाते हुए पांच बार परिक्रमा करने से पितरों को प्रेतयोनि से मुक्ति मिल जाती है.
प्रेतशिला पर भगवान विष्णु की प्रतिमा है. पिंडदानी अकाल मृत्यु वाले लोग की तस्वीर विष्णु चरण में रखते हैं. उस मंदिर की पुजारी छः माह तक उसे पूजा करके उस तस्वीर गंगा में प्रवाहित कर देता है. पुजारी बताते हैं कि पहले लोग चांदी, सोने में लाते थे. जिसके बाद पत्थर पर अंकित तस्वीर लाने लगे. वहीं, अब कागज पर अंकित फोटो लाते हैं.
आज पंचवेदी में कर्मकांड करने का महत्व है. आज सुबह से ही पिंडदानी ब्रह्मकुंड और प्रेतशिला में पिंडदान कर रहे हैं. इस पर्वत पर धर्मशीला है. जिस पर पिंडदानी ब्रह्ना जी के पद चिन्ह पर पिंडदान करके धर्मशीला पर सत्तू उड़ाकर कहते है 'उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो'. सत्तू उड़ाते हुए पांच बार परिक्रमा करने से पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है.' -अशोक, पंडा
'गया जी में पूरे परिवार के साथ त्रेपाक्षिक श्राद्ध करने आया हूं. आज पंचवेदी पर पिंडदान किया हूं. प्रेतशिला पर पिंडदान करने का बड़ा महत्व है. यहां पिंडदान करने और धर्मशीला पर सत्तू उड़ाने से पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है.' -जनार्दन शास्त्री, पिंडदानी
प्रेतशिला के शिखर पर जिन पिंडदानियों को 676 सीढ़ी चढ़ने में कठिनाईयां होती है, वे पालकी का सहारा लेते है. बता दें कि पूर्व पितृपक्ष मेला के उद्घाटन के दौरान मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री ने वादा किया था कि अगले साल तक रोपवे बन जायेगा. लेकिन आज तक रोपवे नहीं बन सका.
पिंडदानी आज भी भूखे प्यासे कष्ट सहकर पिंडदान करने जाते हैं. वहीं कोरोना महामारी का हवाला देकर इस साल भी सरकार और जिला प्रशासन ने मेला आयोजित नहीं किया. विश्व प्रसिद्ध गयाजी में पिंडदानियों को पिंडदान करने के लिए छाव तक नहीं नसीब हो रहा है. सुरक्षा और स्वच्छता भी भगवान भरोसे है.