गया: अचार्य विनोबाभावे और जयप्रकाश नारायण के संग काम कर चुके गांधीवादी द्वारिको सुन्दरानी का अंतिम संस्कार गुरुवार को बोधगया के समन्वय आश्रम परिसर में राजकीय सम्मान के साथ किया गया. उनका निधन 31 मार्च को हो गया था.
उनके अंतिम संस्कार से पहले गया में सर्वधर्म सभा का आयोजन किया गया और फिर उन्हें राजकीय सम्मान के साथ आखिरी विदाई दी गई. बता दें कि द्वारिको सुन्दरानी को गया के 'दूसरे बुद्ध' के तौर पर भी माना जाता है.
उनको मुखाग्नि उनकी दत्तक पुत्री विमला बहन ने दी. इस दौरान खास से लेकर आम लोगों तक की बड़ी भीड़ देखने को मिली.
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बुधवार को हुआ था निधन
गरीबों और असहायों के लिए काम करने वाले, गांधीवादी विचारक, जमनालाल पुरस्कार से सम्मानित द्वारिको भाई सुंदरानी लगभग 99 के थे. बुधवार की भोर में समन्वय आश्रम में ही उन्होंने अंतिम सांस ली. पिछले कुछ दिनों से पटना के एक निजी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था.
बताया जाता है कि मंगलवार की रात में वे बोधगया समन्वय आश्रम पहुंचे थे. भाई सुन्दरानी के निधन पर गया के जिलाधिकारी अभिषेक सिंह ने कहा कि उनके जाने से एक युग का अंत हो गया है.
वे अपना पूरा जीवन गरीबों, खासकर दलितों व वंचितों के लिए समर्पित कर चुके थे. उनके जैसे लोग जो गांधी के विचारों पर काम करते हुए लाखों लोगों की प्रत्यक्ष रूप से सहायता करते हैं, बहुत कम मिलते है.
सीएम नीतीश ने भी जताया शोक
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है. सीएम के ही आदेश पर उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया गया. वहीं राजद नेता अब्दुल बार सिद्दीकी भी इस दौरान मौजूद रहे.
उन्होंने कहा कि इनकी तबियत कुछ दिन पहले खराब थी. मेरे सुझाव पर पटना के एक निजी अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. कल भाईजी के निधन की सूचना मिली.
मुझसे रहा नहीं गया. आज समन्वय आश्रम आकर इन्हें श्रंद्धाजलि अर्पित की। मेरा संबंध इनसे छात्र आंदोलन से है. तब से संबंध गहरा ही होता गया है.
कौन थे सुन्दरानी?
बोधगया में भंसाली ट्रस्ट के जरिए मोतियाबिंद का निशुल्क ऑपरेशन कराने की सुविधा उन्होंने 1984 में शुरू करवाई थी. उनके इस ट्रस्ट के माध्यम से 8 लाख से ज्यादा लोग आंखों का निशुल्क ऑपरेशन करवा चुके हैं. सुंदरानी जी का जन्म 6 जून 1922 को पाकिस्तान के सिंध प्रांत में हुआ था.
पाकिस्तान में जन्मे सुंदरानी ने बोधगया को अपनी अपनी कर्मभूमि बनाया. उन्होंने गांधीजी के सानिध्य में अपने जीवन का लक्ष्य मानवता की सेवा के रूप में तय किया और आजीवन गरीबों और पिछड़ों के लिए काम करते रहे.