गया: सर्वपितृ अमावस्या यानी पितृपक्ष (Pitru Paksha 2021) के तहत श्राद्ध पक्ष का आज अंतिम दिन है. पितरों को विदा करने के अंतिम दिन फल्गु नदी में हजारों पिंडदानी (Pinddan In Gaya) ने डुबकी लगाकर पिंडदान कर तर्पण किया. जिससे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति हो सके. सर्वपितृ अमावस्या पर आज 100 साल बाद गजछाया योग बन रहा है. इस दिन कुछ विशेष उपाय करके पितरा ऋण, पितृ दोष से मुक्ति पाई जा सकती है.
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ऐसी मान्यता है कि गयाजी तीर्थ में स्थित फल्गु नदी में स्नान और फल्गु जल का तर्पण देने के बाद पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है. इसके साथ ही पितरों को स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त हो जाता है. बताया जाता है कि भगवान राम और माता सीता भी यहां पधारे थे. जहां उन्होंने अपने पिता महाराजा दशरथ के लिए पिंडदान और तर्पण किया थे.
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स्थानीय पुरोहित कमलेश पांडे बताते हैं कि आज के दिन मोक्षदायिनी फल्गु नदी के जल से तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. ऐसी मान्यता है कि संतान, वंश और धन की वृद्धि के लिए तर्पण कर्मकांड किया जाता है. साथ ही ब्राह्मणों को भोज कराया जाता है और इच्छानुसार दान की भी परंपरा है. महाराष्ट्र के नागपुर से आये पिंडदानी शत्रुघ्न कंडु ने बताया कि पितरों के मोक्ष की प्राप्ति के लिए यहां पिंडदान करने आए है. यहां आकर बहुत अच्छा लगता है. इस वर्ष जिला प्रशासन ने अच्छी व्यवस्था भी कराई है.
कहा जाता है श्राद्ध पक्ष के दौरान पूर्वज अपने परिजनों के हाथों से तर्पण स्वीकार करते हैं. इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने का विधान बताया गया है. मान्यता है जो लोग इस दौरान सच्ची श्रद्धा से अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं उनके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. पितृपक्ष में दान- पुण्य करने से कुंडली में पितृ दोष दूर हो जाता है. ऐसा भी कहा जाता है जो लोग श्राद्ध नहीं करते उनके पितरों की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती और पितृ दोष लगता है. इसलिए पितृ दोष से मुक्ति के लिए पितरों का श्राद्ध जरूरी माना जाता है.
शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति श्राद्ध कर्म करने के लिए गया जाता है. उनके पूर्वजों को स्वर्ग में स्थान मिलता है. क्योंकि भगवान विष्णु यहां स्वयं पितृदेवता के रूप में मौजूद हैं. पौराणिक कथा के अनुसार, भस्मासुर नामक के राक्षस ने कठिन तपस्या कर ब्रह्मा जी से वरदान मांगा कि वे देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और उसके दर्शनभर से लोगों के पाप दूर हो जाए. इस वरदान के बाद जो भी पाप करता है, वो गयासुर के दर्शन के बाद पाप से मुक्तु हो जाता है. ये सब देखकर देवताओं ने चिंता जताई और इससे बचने के लिए देवताओं ने गयासुर के पीठ पर यज्ञ करने की मांग की.
जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस तक फैल गया और तब देवताओं ने यज्ञ किया. इसके बाद देवताओं ने गयासुर को वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति इस जगह पर आकर अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म और तर्पण करेगा उसके पूर्वजों को मुक्ति मिलेगी. यज्ञ खत्म होने के बाद भगवान विष्णु ने उनकी पीठ पर बड़ा सा शीला रखकर स्वयं खड़े हो गए थे.
गरुड़ पुराण में भी कहा गया है कि जो व्यक्ति श्राद्ध कर्म के लिए गया जाता है, उसका एक-एक कदम पूर्वजों को स्वर्ग की ओर ले जाता है. मान्यता है कि यहां पर श्राद्ध करने से व्यक्ति सीधा स्वर्ग जाता है. फल्गु नदी पर बगैर पिंडदान करके लौटना अधूरा माना जाता है. पिंडदानी पुनपुन नदी के किनारे से पिंडदान करना शुरू करते हैं. फल्गु नदी का अपना एक अलग इतिहास है. फल्गु नदी का पानी धरती के अंदर से बहती है. बिहार में गंगा नदी में मिलती है. फल्गु नदी के तट पर भगवान राम और माता सीता ने राजा दशरथ के आत्मा की शांति के लिए नदी के तट पर पिंडदान किया था.
बता दें कि गया में विभिन्न नामों से 360 वेदियां थी, जहां पिंडदान किया जाता था. इनमें से 48 बची हुई हैं. इस जगह को मोक्षस्थली कहा जाता है. हर साल पितपक्ष में यहां 17 दिन के लिए मेला लगता है.