गया: मोक्ष की नगरी गयाजी में पिंडदान के 12वें दिन मुंड पृष्ठा तीर्थ पर पिंडदान करने का विधान है. एकादशी तिथि के दिन फल्गु स्नान करने के बाद यहां पिंडदान किया जाता है. वहीं, ऐसी मान्यता है कि खोया और चांदी का सामान दान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
कहा जाता है कि मुंड पृष्ठा तीर्थ पर पिंडदान करने से पितरों को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है. वहीं, आदि गया वेदी पर पिंडदान करते हैं. यहां चांदी की वस्तु दान की जाती है. दोनों जगह कर्मकांड करने से ही पितरों को मोक्ष मिलता है.
- गया जी में पिंडदान के 12 दिन एकादशी तिथि को फल्गु नदी में तर्पण कर श्राद्ध की शुरुआत करनी चाहिए.
- करसल्ली पर्वत पर तीनों पिंड वेदी को नाभि तीर्थ भी कहते हैं.
- इसके ऊपर विरजा देवी विराजमान हैं, इसलिए इसे विरजा तीर्थ भी कहते हैं.
- मुस्लिम शासक औरंगजेब ने विरजा देवी की मूर्ति को भंग कर दिया था.
- आज भी विरजा देवी की भंग मूर्ति के दर्शन होते हैं.
क्या है मुंड पृष्ठा की पौराणिक कहानी
गया सुर पर जब धर्मशिला पर्वत को रखा गया, तो उसे स्थिर करने के लिए आदि गदाधर भगवान मुंड पृष्ठा पर बैठ गए. इसके चलते इस तीर्थ को आदि गया कहते हैं. जो मुंडपृष्ठा पर स्थित आदि गदाधर देव स्तुति करते हैं, पूजा करते हैं वो विष्णु लोक को चले जाते हैं.
क्यों देते हैं चांदी दान
इसके बाद मुंडपृष्ठा पर ही अवस्थित धौतपद वेदी पर श्राद्ध करते हैं. यहां ब्रह्मा जी ने चांदी का दान दिया था और धौंता ऋषि ने संकल्प कराया. इसलिए इस वेदी का नाम द्दोतपद पड़ा. द्दोतपद पर अपने पुरोहित को यथा शक्ति चांदी का दान अवश्य करना चाहिए, जिससे पितर तर जाते हैं.
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