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विलुप्त होती गया घराने की 'ठुमरी', संजोने में जुटा 'किलकारी'

एक समय में गया घराना की ठुमरी की चर्चा देशभर में होती थी लेकिन मौजूदा वक्त में अब ठुमरी गाने वाले बहुत कम लोग बचे हुए हैं. अच्छी बात यह है कि अब किलकारी में बच्चों को ठुमरी की शिक्षा दी जा रही है. उम्मीद है कि आने वाले दिनों में ठुमरी गाने वालों लोगों की संख्या बढ़ेगी.

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Published : Jan 17, 2021, 1:46 PM IST

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विलुप्त हो रहा गया घराना की ठुमरी

गया: ठुमरी शास्त्रीय संगीत का उप शास्त्रीय गायन है जो पूरब में लखनऊ, बनारस, गया और पश्चिम में पंजाब क्षेत्र में गाया जाता था. गया घराना को ठुमरी की ख्याति प्राप्त थी. लेकिन वर्तमान समय में गया घराना की ठुमरी विलुप्त होने के कगार पर है. अब जिले में गितनी भर लोग ही ऐसे हैं जो ठुमरी गाया करते हैं. ठुमरी गायन शैली को निर्वाहन करते हुए उप शास्त्री विद्या के अंतर्गत शैली को माना गया है. इस शैली में पूर्वी अंग ठुमरी गाई जाती है. जो कि गया घराने की प्राचीन काल से इसकी प्रचलन है.

सांस्कृतिक विरासत है ठुमरी
दरअसल, ठुमरी गया की सांस्कृतिक विरासत है, वर्षों पहले शास्त्रीय संगीत का महत्वपूर्ण केंद्र गया था, ठुमरी में गया घराना की ख्याति पूरे देश में रही है. ठुमरी खासकर गयापाल पंडा समाज के लोग गाया करते थे. पंडा समाज से राजन सिजुआर इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं. लेकिन एक राजन से ये परंपरा जीवित तो है पर लोगों की जुबान तक परचित नहीं है.

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विलुप्त होती गया घराने की ठुमरी को संजोने की कोशिश

किलकारी दे रही ठुमरी को आवाज
किलकारी में ठुमरी गायन का प्रशिक्षण ले रही छात्रा बताती हैं कि मेरा शुरू से शास्त्रीय संगीत के प्रति जुड़ाव था, यहां आकर ठुमरी के बारे में जानकारी हुआ, ठुमरी का इतिहास जानकार और उसकी विरासत को जानकर ठुमरी सीखने की शुरुआत की. किलकारी में आधुनिक संगीत के साथ पारंपरिक संगीत सिखाई जाती है. ठुमरी गायन की प्रशिक्षण से गुरु शिष्य की परंपरा ज्यादा गहरी होती है. जो आधुनिक संगीतों में देखने को नहीं मिलती है.

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किलकारी में बच्चों को दिया जा रहा प्रशिक्षण

'ठुमरी' को बचाने की कोशिश
किलकारी में छात्रों को ठुमरी गायन के प्रशिक्षण देने वाले शिक्षक ने बताया कि ठुमरी विलुप्त नहीं हुई है. लेकिन अब उसकी पहचान नहीं है. किलकारी नए पीढ़ी के बच्चों को ठुमरी की विरासत बताती है. साथ ही ठुमरी सीखने वाले इच्छुक छात्रों को ठुमरी सिखाया जाता है. नामांकन लेने वाले छात्रों में से कुछ छात्रों को चयन कर ठुमरी का प्रशिक्षण दिया जाता है. अभी 15 छात्र इसका प्रशिक्षण ले रहे हैं. साथ ही कई छात्र इसमें महारत हासिल कर लिया है.

विलुप्त हो रहा गया घराना की ठुमरी

क्या कहते हैं किलकारी के प्रोग्राम समन्वयक
किलकारी के प्रमण्डल प्रोग्राम समन्यवक प्रणव भारती ने बताया कि किलकारी की प्लानिंग है. जिसके तहत बच्चों को स्थानीय कला ,संगीत का प्रशिक्षण दिया जाए. खासकर गया के बच्चों को ठुमरी गायन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. गया घराना ठुमरी की गायन करने वाले राजन सिजुआर भी बच्चों को आकर इस गायन के बारे में जानकारी देते रहते हैं

गया: ठुमरी शास्त्रीय संगीत का उप शास्त्रीय गायन है जो पूरब में लखनऊ, बनारस, गया और पश्चिम में पंजाब क्षेत्र में गाया जाता था. गया घराना को ठुमरी की ख्याति प्राप्त थी. लेकिन वर्तमान समय में गया घराना की ठुमरी विलुप्त होने के कगार पर है. अब जिले में गितनी भर लोग ही ऐसे हैं जो ठुमरी गाया करते हैं. ठुमरी गायन शैली को निर्वाहन करते हुए उप शास्त्री विद्या के अंतर्गत शैली को माना गया है. इस शैली में पूर्वी अंग ठुमरी गाई जाती है. जो कि गया घराने की प्राचीन काल से इसकी प्रचलन है.

सांस्कृतिक विरासत है ठुमरी
दरअसल, ठुमरी गया की सांस्कृतिक विरासत है, वर्षों पहले शास्त्रीय संगीत का महत्वपूर्ण केंद्र गया था, ठुमरी में गया घराना की ख्याति पूरे देश में रही है. ठुमरी खासकर गयापाल पंडा समाज के लोग गाया करते थे. पंडा समाज से राजन सिजुआर इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं. लेकिन एक राजन से ये परंपरा जीवित तो है पर लोगों की जुबान तक परचित नहीं है.

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विलुप्त होती गया घराने की ठुमरी को संजोने की कोशिश

किलकारी दे रही ठुमरी को आवाज
किलकारी में ठुमरी गायन का प्रशिक्षण ले रही छात्रा बताती हैं कि मेरा शुरू से शास्त्रीय संगीत के प्रति जुड़ाव था, यहां आकर ठुमरी के बारे में जानकारी हुआ, ठुमरी का इतिहास जानकार और उसकी विरासत को जानकर ठुमरी सीखने की शुरुआत की. किलकारी में आधुनिक संगीत के साथ पारंपरिक संगीत सिखाई जाती है. ठुमरी गायन की प्रशिक्षण से गुरु शिष्य की परंपरा ज्यादा गहरी होती है. जो आधुनिक संगीतों में देखने को नहीं मिलती है.

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किलकारी में बच्चों को दिया जा रहा प्रशिक्षण

'ठुमरी' को बचाने की कोशिश
किलकारी में छात्रों को ठुमरी गायन के प्रशिक्षण देने वाले शिक्षक ने बताया कि ठुमरी विलुप्त नहीं हुई है. लेकिन अब उसकी पहचान नहीं है. किलकारी नए पीढ़ी के बच्चों को ठुमरी की विरासत बताती है. साथ ही ठुमरी सीखने वाले इच्छुक छात्रों को ठुमरी सिखाया जाता है. नामांकन लेने वाले छात्रों में से कुछ छात्रों को चयन कर ठुमरी का प्रशिक्षण दिया जाता है. अभी 15 छात्र इसका प्रशिक्षण ले रहे हैं. साथ ही कई छात्र इसमें महारत हासिल कर लिया है.

विलुप्त हो रहा गया घराना की ठुमरी

क्या कहते हैं किलकारी के प्रोग्राम समन्वयक
किलकारी के प्रमण्डल प्रोग्राम समन्यवक प्रणव भारती ने बताया कि किलकारी की प्लानिंग है. जिसके तहत बच्चों को स्थानीय कला ,संगीत का प्रशिक्षण दिया जाए. खासकर गया के बच्चों को ठुमरी गायन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. गया घराना ठुमरी की गायन करने वाले राजन सिजुआर भी बच्चों को आकर इस गायन के बारे में जानकारी देते रहते हैं

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