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गया के इस ऐतिहासिक गांधी मैदान से जेपी ने की थी छात्र आंदोलन की कमान संभालने की घोषणा

14 अप्रैल को लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने गया के गांधी मैदान से छात्र आंदोलन की कमान संभालने की घोषणा की थी. 46 साल के बाद उस आंदोलन में शामिल तत्कालीन छात्र नेता अखौरी प्रसाद ने यादें ताजा की.

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Published : Apr 16, 2020, 10:41 AM IST

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गया: 46 वर्ष पहले गया के एतिहासिक गांधी मैदान में 14 अप्रैल को लोक नायक जयप्रकाश नारायण ने छात्र आंदोलन की कमान संभालने की घोषणा की थी. उस आंदोलन में साथ रहे गया शहर के चांदचौरा मोहल्ला निवासी अखौरी निरंजन प्रसाद आज उस आंदोलन को याद कर रहे हैं. साथ ही तस्वीरों के माध्यम से उन्होंने ईटीवी भारत को जेपी आंदोलन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें साझा की. उस समय की घटना को याद करते हुए वो रोमांचित हो उठते हैं.

इस दौरान तत्कालीन छात्र नेता अखौरी निरंजन प्रसाद ने बताया कि जेपी के हाथों में छात्र आंदोलन की कमान आते ही आंदोलन जन आंदोलन में तब्दील हो गया था. उन्होंने कहा कि जेपी जन आंदोलन के कारण ही वे लोकनायक कहलाए. लेकिन जेपी के छात्र आंदोलन की कमान संभालने के पीछे की पृष्ठभूमि गया गोली कांड था. उन्होंने कहा कि जेपी आंदोलन की गर्भ से निकले कई छात्र नेता प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री सहित देश और राज्यों की राजनीति में आज भी अहम भूमिका निभा रहे हैं.

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जेपी आंदोलन की तस्वीर

46 साल पहले के आंदोलन की कहानी
जयप्रकाश नारायण स्वतंत्रता सेनानी के प्रदेश महासचिव अखौरी निरंजन प्रसाद के अनुसार 14 अप्रैल को गया में जेपी के 46 साल पहले की गई थी. एतिहासिक घोषणा को लेकर एक सेमिनार आयोजित करने का निर्णय लिया गया था. लेकिन कोविड 19 के कारण और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सोशल डिस्टेंसिंग को देखते हुए सेमिनार आयोजित करने का फैसला रद्द कर दिया गया है. उक्त आंदोलन को याद करते हुए अखौरी प्रसाद बताते हैं कि 18 मार्च 1974 को पटना गांधी मैदान में छात्र आंदोलन की शुरुआत हुई थी. छात्र आंदोलन रफ्तार पकड़ रहा था. लेकिन छात्र आंदोलन को एक परिपक्व और सर्वसम्मत करिश्माई व्यक्तित्व की तलाश थी. उन्होंने कहा कि जयप्रकाश नारायण पर छात्र आंदोलन के नेतृत्व को संभालने के लिए काफी दबाव था. दूसरी ओर जेपी हां कहने को तैयार नहीं थे.

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जेपी आंदोलन की तस्वीरें

'बच्चों और महिलाओं पर हुआ लाठीचार्ज'
इस बीच गया में केंद्रीय प्रतिष्ठानों को ठप्प करने के लिए महिला और बच्चे छात्रों के साथ सड़क पर उतर आए. 12 अप्रैल को गया के मुख्य डाकघर के सामने धरना पर बैठे बच्चों और महिलाओं पर मेजर लाल के नेतृत्व में लाठी चार्ज किया गया. उन्होंने कहा कि दंडाधिकारी अशोक कुमार सिन्हा के आदेश पर हुई पुलिस फायरिंग में एक दर्जन से अधिक निर्दोष नागरिक मारे गए और दर्जनों घायल हो गए थे. गया शहरी क्षेत्र में कर्फ्यू लगा दिया गया. तत्कलीन छात्र नेता अखौरी प्रसाद ने बताया कि इसके बाद 13 अप्रैल की सुबह कर्फ्यू में ढील के बीच छात्र आंदोलन के सर्वमान्य नेता रहे वे (अखौरी निरंजन प्रसाद) के साथ समीर सरकार ट्रेन से पटना पहुंचे. उन्होंने आगे कहा कि महिला चर्खा समिति में जेपी मौजूद थे. वहां जेपी के साथ रविशंकर प्रसाद, दयानंद सहाय, त्रिपुरारी शरण, विजय कृष्ण, शिवानंद तिवारी सहित कई सर्वोदय और छात्र नेता उपस्थित थे.

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तस्वीर के माध्यम याद ताजा करते अखौरी प्रासद

'जेपी ने पटना में करवाई थी सभा'
अखौरी निरंजन बताते हैं कि उस वक्त गया गोली कांड की चर्चा जेपी और वहां मौजूद छात्र और सर्वोदय नेताओं के बीच हो रहा था. दयानंद सहाय ने अखौरी निरंजन को देखते ही जेपी से कहा कि गया से अखौरी आ गया है. उसी से गया में पुलिस फायरिंग और संबंधित सभी जानकारी मिलेगी. अखौरी निरंजन बतातें है कि जेपी ने करीब आधे घंटे तक पुलिस बर्बरता, फायरिंग, हताहतों और घायलों को लेकर पूछताछ की. छात्र नेता प्रसाद के अनुसार कुछ समय तक मौन रहने के बाद अचानक जेपी ने पूछा कि क्या कल मेरी सभा गया में करा सकते हो? जेपी ने हां सुनते ही आदेश दिया कि जाकर तैयारी करों. बता दें कि गया में कर्फ्यू लगा था. ऐसे में जनता तक जेपी की सभा को लेकर सूचना पहुंचाने की चुनौती थी. तब पटना में ही जेपी की सभा को लेकर पांच सौ पर्चा छपवाया गया.

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तत्कालीन छात्र नेता अखौरी प्रसाद जेपी आंदोलन की तस्वीर देखते हुए

जेपी की एक झलक के लिए उमड़ा जनसैलाब
अखौरी निरंजन प्रसाद ने दूसरे दिन यानी 14 अप्रैल को कर्फ्यू में दो घंटे की ढील के बीच सुबह छह बजे अखौरी भून की बाइक पर बैठकर पर्चा शहरी इलाके में वितरित किया. साथ ही नागरिकों से अपील की गई थी कि जेपी दस बजे पटना से ट्रेन से गया के लिए रवाना होंगे. उन्होंने कहा कि ऐसे में दोपहर बारह बजे अपने घरों से थाली पीटते हुए कर्फ्यू को तोड़ते हुए नागरिक रेलवे स्टेशन की ओर कूच कर जाएं. ऐसा हुआ भी. तत्कालीन नेता ने कहा कि हजारों की तादाद में जनसैलाब रेलवे स्टेशन पर उमड़ पड़ा. जेपी की एक झलक पाने के लिए जनसैलाब उमड़ गया. जिलाधिकारी बीबी लाल और पुलिस-प्रशासनिक अधिकारी जन सैलाब के आगे विवश और लाचार थे. उन्होने कहा कि जेपी स्टेशन से सीधे तत्तकालीन पिलग्रीम अस्पताल (वर्तमान में जयप्रकाश नारायण अस्पताल) घायलों से मिलने पहुंचे. वहां से जेपी अपने मित्र भूप अग्रवाल के मानपुर में स्थित आवास चले गए. अखौरी प्रसाद ने कहा कि
इस बीच छात्रों ने अपने कंधों पर बांस-बल्ली ढोकर गया गांधी मैदान में मंच बना दिया. गया के गांधी मैदान में उमड़े जन सैलाब को देखकर जेपी ने छात्र आंदोलन का नेतृत्व करने की घोषणा कर दी.

जेपी आंदोलन में शामिल लोग
अखौरी प्रसाद बताते हैं कि जेपी की सभा को सफल बनाने में तब छात्र नेता रहे डा.लक्ष्मण सहाय, नवलेश बर्थवार, हरि सिंह, कामेश्वर सिंह, सुधीर सहाय, गोपाल राव, मुन्ना रोहानी, प्रभात कुमार सिन्हा, डा.राजेंद्र कौल, प्रेम कुमार, अनिल विभाकर, ज्ञानचंद जैन, अनिल कुमार सिन्हा, सुनील कुमार गुप्ता, राजकुमार यादव, अर्जुन जी, मकसूदन भदानी, राजकुमार राजू,अजय शर्मा, हरि सिंह सहित कई की अहम भूमिका रही थी.

गया: 46 वर्ष पहले गया के एतिहासिक गांधी मैदान में 14 अप्रैल को लोक नायक जयप्रकाश नारायण ने छात्र आंदोलन की कमान संभालने की घोषणा की थी. उस आंदोलन में साथ रहे गया शहर के चांदचौरा मोहल्ला निवासी अखौरी निरंजन प्रसाद आज उस आंदोलन को याद कर रहे हैं. साथ ही तस्वीरों के माध्यम से उन्होंने ईटीवी भारत को जेपी आंदोलन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें साझा की. उस समय की घटना को याद करते हुए वो रोमांचित हो उठते हैं.

इस दौरान तत्कालीन छात्र नेता अखौरी निरंजन प्रसाद ने बताया कि जेपी के हाथों में छात्र आंदोलन की कमान आते ही आंदोलन जन आंदोलन में तब्दील हो गया था. उन्होंने कहा कि जेपी जन आंदोलन के कारण ही वे लोकनायक कहलाए. लेकिन जेपी के छात्र आंदोलन की कमान संभालने के पीछे की पृष्ठभूमि गया गोली कांड था. उन्होंने कहा कि जेपी आंदोलन की गर्भ से निकले कई छात्र नेता प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री सहित देश और राज्यों की राजनीति में आज भी अहम भूमिका निभा रहे हैं.

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जेपी आंदोलन की तस्वीर

46 साल पहले के आंदोलन की कहानी
जयप्रकाश नारायण स्वतंत्रता सेनानी के प्रदेश महासचिव अखौरी निरंजन प्रसाद के अनुसार 14 अप्रैल को गया में जेपी के 46 साल पहले की गई थी. एतिहासिक घोषणा को लेकर एक सेमिनार आयोजित करने का निर्णय लिया गया था. लेकिन कोविड 19 के कारण और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सोशल डिस्टेंसिंग को देखते हुए सेमिनार आयोजित करने का फैसला रद्द कर दिया गया है. उक्त आंदोलन को याद करते हुए अखौरी प्रसाद बताते हैं कि 18 मार्च 1974 को पटना गांधी मैदान में छात्र आंदोलन की शुरुआत हुई थी. छात्र आंदोलन रफ्तार पकड़ रहा था. लेकिन छात्र आंदोलन को एक परिपक्व और सर्वसम्मत करिश्माई व्यक्तित्व की तलाश थी. उन्होंने कहा कि जयप्रकाश नारायण पर छात्र आंदोलन के नेतृत्व को संभालने के लिए काफी दबाव था. दूसरी ओर जेपी हां कहने को तैयार नहीं थे.

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जेपी आंदोलन की तस्वीरें

'बच्चों और महिलाओं पर हुआ लाठीचार्ज'
इस बीच गया में केंद्रीय प्रतिष्ठानों को ठप्प करने के लिए महिला और बच्चे छात्रों के साथ सड़क पर उतर आए. 12 अप्रैल को गया के मुख्य डाकघर के सामने धरना पर बैठे बच्चों और महिलाओं पर मेजर लाल के नेतृत्व में लाठी चार्ज किया गया. उन्होंने कहा कि दंडाधिकारी अशोक कुमार सिन्हा के आदेश पर हुई पुलिस फायरिंग में एक दर्जन से अधिक निर्दोष नागरिक मारे गए और दर्जनों घायल हो गए थे. गया शहरी क्षेत्र में कर्फ्यू लगा दिया गया. तत्कलीन छात्र नेता अखौरी प्रसाद ने बताया कि इसके बाद 13 अप्रैल की सुबह कर्फ्यू में ढील के बीच छात्र आंदोलन के सर्वमान्य नेता रहे वे (अखौरी निरंजन प्रसाद) के साथ समीर सरकार ट्रेन से पटना पहुंचे. उन्होंने आगे कहा कि महिला चर्खा समिति में जेपी मौजूद थे. वहां जेपी के साथ रविशंकर प्रसाद, दयानंद सहाय, त्रिपुरारी शरण, विजय कृष्ण, शिवानंद तिवारी सहित कई सर्वोदय और छात्र नेता उपस्थित थे.

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तस्वीर के माध्यम याद ताजा करते अखौरी प्रासद

'जेपी ने पटना में करवाई थी सभा'
अखौरी निरंजन बताते हैं कि उस वक्त गया गोली कांड की चर्चा जेपी और वहां मौजूद छात्र और सर्वोदय नेताओं के बीच हो रहा था. दयानंद सहाय ने अखौरी निरंजन को देखते ही जेपी से कहा कि गया से अखौरी आ गया है. उसी से गया में पुलिस फायरिंग और संबंधित सभी जानकारी मिलेगी. अखौरी निरंजन बतातें है कि जेपी ने करीब आधे घंटे तक पुलिस बर्बरता, फायरिंग, हताहतों और घायलों को लेकर पूछताछ की. छात्र नेता प्रसाद के अनुसार कुछ समय तक मौन रहने के बाद अचानक जेपी ने पूछा कि क्या कल मेरी सभा गया में करा सकते हो? जेपी ने हां सुनते ही आदेश दिया कि जाकर तैयारी करों. बता दें कि गया में कर्फ्यू लगा था. ऐसे में जनता तक जेपी की सभा को लेकर सूचना पहुंचाने की चुनौती थी. तब पटना में ही जेपी की सभा को लेकर पांच सौ पर्चा छपवाया गया.

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तत्कालीन छात्र नेता अखौरी प्रसाद जेपी आंदोलन की तस्वीर देखते हुए

जेपी की एक झलक के लिए उमड़ा जनसैलाब
अखौरी निरंजन प्रसाद ने दूसरे दिन यानी 14 अप्रैल को कर्फ्यू में दो घंटे की ढील के बीच सुबह छह बजे अखौरी भून की बाइक पर बैठकर पर्चा शहरी इलाके में वितरित किया. साथ ही नागरिकों से अपील की गई थी कि जेपी दस बजे पटना से ट्रेन से गया के लिए रवाना होंगे. उन्होंने कहा कि ऐसे में दोपहर बारह बजे अपने घरों से थाली पीटते हुए कर्फ्यू को तोड़ते हुए नागरिक रेलवे स्टेशन की ओर कूच कर जाएं. ऐसा हुआ भी. तत्कालीन नेता ने कहा कि हजारों की तादाद में जनसैलाब रेलवे स्टेशन पर उमड़ पड़ा. जेपी की एक झलक पाने के लिए जनसैलाब उमड़ गया. जिलाधिकारी बीबी लाल और पुलिस-प्रशासनिक अधिकारी जन सैलाब के आगे विवश और लाचार थे. उन्होने कहा कि जेपी स्टेशन से सीधे तत्तकालीन पिलग्रीम अस्पताल (वर्तमान में जयप्रकाश नारायण अस्पताल) घायलों से मिलने पहुंचे. वहां से जेपी अपने मित्र भूप अग्रवाल के मानपुर में स्थित आवास चले गए. अखौरी प्रसाद ने कहा कि
इस बीच छात्रों ने अपने कंधों पर बांस-बल्ली ढोकर गया गांधी मैदान में मंच बना दिया. गया के गांधी मैदान में उमड़े जन सैलाब को देखकर जेपी ने छात्र आंदोलन का नेतृत्व करने की घोषणा कर दी.

जेपी आंदोलन में शामिल लोग
अखौरी प्रसाद बताते हैं कि जेपी की सभा को सफल बनाने में तब छात्र नेता रहे डा.लक्ष्मण सहाय, नवलेश बर्थवार, हरि सिंह, कामेश्वर सिंह, सुधीर सहाय, गोपाल राव, मुन्ना रोहानी, प्रभात कुमार सिन्हा, डा.राजेंद्र कौल, प्रेम कुमार, अनिल विभाकर, ज्ञानचंद जैन, अनिल कुमार सिन्हा, सुनील कुमार गुप्ता, राजकुमार यादव, अर्जुन जी, मकसूदन भदानी, राजकुमार राजू,अजय शर्मा, हरि सिंह सहित कई की अहम भूमिका रही थी.

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