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ये है बिहार का 'आत्मनिर्भर गांव', जहां नौकरी के लिए नहीं भटकते लोग

कहते हैं बूंद बूंद पानी से समंदर बन जाता है, ऐसे में गया के एक आत्मनिर्भर गांव की तरह अगर धीरे-धीरे देश के सभी गांव आत्मनिर्भर हो जाएं, तो आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार होते देर नहीं लगेगी. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Aug 26, 2020, 8:03 PM IST

गया की खबर
गया की खबर

गया: 'आत्मनिर्भर भारत केवल एक शब्द नहीं है बल्कि 130 करोड़ देशवासियों के लिये एक मंत्र बन गया है. यह आत्मविश्वास से भरा भारत है. हिन्दुस्तान की सोच और आत्मविश्वास पर पूरा भरोसा है.' ये बात पीएम नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से अपने संबोधन के दौरान कही. कोरोना संक्रमण के दौर में पीएम मोदी ने आत्मनिर्भर बनने का आह्वान किया. ऐसे में बिहार के एक गांव का जिक्र करना जरूरी हो जाता है, जो पूरी तरह आत्मनिर्भर है.

जी हां, बिहार के गया में एक ऐसा गांव है, जो पूरी तरह आत्मनिर्भर गांव हैं. इस गांव के लोग सरकारी नौकरी नहीं करते बल्कि खुद का रोजगार कर, दूसरे को नौकरी देते हैं. चलिए बताते हैं कि इस गांव का नाम और पता.

गया से सुजीत पांडेय की रिपोर्ट

नक्सल प्रभावित था गांव
गया जिले के बाराचट्टी प्रखंड का जमुहार गांव आत्मनिर्भर गांव को रूप में निकलकर सामने आया है. ये गांव पहले अति नक्सल प्रभावित माना जाता था. गांव में युवा न के बराबर रहते थे. लेकिन नक्सल मुक्त होते ही गांव के युवकों ने आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाए. गांव में पोल्ट्री खोला. युवक की सफलता को देखते हुए गांव में वर्तमान में 25 मुर्गा पोल्ट्री फार्म हैं, जिससे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 200 लोगों को रोजगार मिल रहा है. वहीं, मत्स्य पालन में ये गांव पूरे कस्बा में अव्वल है.

गांवभर में 25 पोल्ट्री फार्म
गांवभर में 25 पोल्ट्री फार्म

आत्मनिर्भरता की नीति!
मत्स्य पालन करने वाले अभिमन्यु ने बताया कि इस गांव की एक नीति बन गयी है. मैट्रिक और इंटर तक जॉब मिली, तो ठीक. अगर नहीं मिली, तो खुद का व्यवसाय शुरू कर देते हैं. गांव में मुर्गी पालन व्यवसाय सबसे अधिक है. गांव में ज्यादातर लोग कृषि से जुड़े हुए हैं. कृषक अधिक संख्या में पशुपालन कर आत्मनिर्भर हैं.

कुक्कुट पालन में नहीं मिला सरकारी योजना का लाभ, फिर भी
कुक्कुट पालन में नहीं मिला सरकारी योजना का लाभ, फिर भी

वहीं, गांव में पहली बार आत्मनिर्भरता का बीज बोने वाले संजय शर्मा ने बताया गांव तक पहले सड़क नहीं थी. गांव तक सड़क आने पर मैंने पोल्ट्री फार्म खोला. पहली बार सफलता मिलने के बाद कई लोग इस व्यवसाय से जुड़ गए हैं. अब इस गांव में 25 पोल्ट्री फार्म हैं. संजय ने बताया कि वो मुर्गी पालन से 8 से 10 लाख रुपया सालाना कमा रहे हैं. संजय की मानें, तो अगर वो आत्मनिर्भर नहीं होते, तो लागू लॉकडाउन में भुखमरी की कगार पर पहुंच जाते.

पूरा गांव है आत्मनिर्भर
पूरा गांव है आत्मनिर्भर

आशा की किरण, हुआ सवेरा
गांव में विकास की एक छोटी सी किरण पहुंची. जैसे ही सड़क बनी, बुनियादी सुविधाएं मिलनी शुरू हुईं. इस गांव के लोगों ने खुद का व्यवसाय शुरू कर दिया. गांव के ही पूर्व मुखिया नन्द किशोर प्रसाद की पहल पर पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने आत्मनिर्भर गांव जमुहार तक पक्की सड़क बनावायी थी. गांव को आत्मनिर्भर बनने में पक्की सड़क का बड़ा अहम रोल है.

होता है मत्स्य पालन भी
होता है मत्स्य पालन भी

गांव में समाज भी चंदा के भरोसे नहीं है. गांव में सामुहिक तालाब के मछली को बेचकर समाज के लिए जरूरत का समान खरीदा जाता है. कई साल पहले से प्रवासी मजदूर गांव आकर आत्मनिर्भर हो रहे हैं. गांव में स्थित 11 पोल्ट्री फार्म प्रवासी मजदूरों के ही हैं, जो पहले राज्य के बाहर कमाते थे लेकिन अब अपने घर पर रहकर आत्मनिर्भरता का दिया जला रहे हैं.

गया: 'आत्मनिर्भर भारत केवल एक शब्द नहीं है बल्कि 130 करोड़ देशवासियों के लिये एक मंत्र बन गया है. यह आत्मविश्वास से भरा भारत है. हिन्दुस्तान की सोच और आत्मविश्वास पर पूरा भरोसा है.' ये बात पीएम नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से अपने संबोधन के दौरान कही. कोरोना संक्रमण के दौर में पीएम मोदी ने आत्मनिर्भर बनने का आह्वान किया. ऐसे में बिहार के एक गांव का जिक्र करना जरूरी हो जाता है, जो पूरी तरह आत्मनिर्भर है.

जी हां, बिहार के गया में एक ऐसा गांव है, जो पूरी तरह आत्मनिर्भर गांव हैं. इस गांव के लोग सरकारी नौकरी नहीं करते बल्कि खुद का रोजगार कर, दूसरे को नौकरी देते हैं. चलिए बताते हैं कि इस गांव का नाम और पता.

गया से सुजीत पांडेय की रिपोर्ट

नक्सल प्रभावित था गांव
गया जिले के बाराचट्टी प्रखंड का जमुहार गांव आत्मनिर्भर गांव को रूप में निकलकर सामने आया है. ये गांव पहले अति नक्सल प्रभावित माना जाता था. गांव में युवा न के बराबर रहते थे. लेकिन नक्सल मुक्त होते ही गांव के युवकों ने आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाए. गांव में पोल्ट्री खोला. युवक की सफलता को देखते हुए गांव में वर्तमान में 25 मुर्गा पोल्ट्री फार्म हैं, जिससे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 200 लोगों को रोजगार मिल रहा है. वहीं, मत्स्य पालन में ये गांव पूरे कस्बा में अव्वल है.

गांवभर में 25 पोल्ट्री फार्म
गांवभर में 25 पोल्ट्री फार्म

आत्मनिर्भरता की नीति!
मत्स्य पालन करने वाले अभिमन्यु ने बताया कि इस गांव की एक नीति बन गयी है. मैट्रिक और इंटर तक जॉब मिली, तो ठीक. अगर नहीं मिली, तो खुद का व्यवसाय शुरू कर देते हैं. गांव में मुर्गी पालन व्यवसाय सबसे अधिक है. गांव में ज्यादातर लोग कृषि से जुड़े हुए हैं. कृषक अधिक संख्या में पशुपालन कर आत्मनिर्भर हैं.

कुक्कुट पालन में नहीं मिला सरकारी योजना का लाभ, फिर भी
कुक्कुट पालन में नहीं मिला सरकारी योजना का लाभ, फिर भी

वहीं, गांव में पहली बार आत्मनिर्भरता का बीज बोने वाले संजय शर्मा ने बताया गांव तक पहले सड़क नहीं थी. गांव तक सड़क आने पर मैंने पोल्ट्री फार्म खोला. पहली बार सफलता मिलने के बाद कई लोग इस व्यवसाय से जुड़ गए हैं. अब इस गांव में 25 पोल्ट्री फार्म हैं. संजय ने बताया कि वो मुर्गी पालन से 8 से 10 लाख रुपया सालाना कमा रहे हैं. संजय की मानें, तो अगर वो आत्मनिर्भर नहीं होते, तो लागू लॉकडाउन में भुखमरी की कगार पर पहुंच जाते.

पूरा गांव है आत्मनिर्भर
पूरा गांव है आत्मनिर्भर

आशा की किरण, हुआ सवेरा
गांव में विकास की एक छोटी सी किरण पहुंची. जैसे ही सड़क बनी, बुनियादी सुविधाएं मिलनी शुरू हुईं. इस गांव के लोगों ने खुद का व्यवसाय शुरू कर दिया. गांव के ही पूर्व मुखिया नन्द किशोर प्रसाद की पहल पर पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने आत्मनिर्भर गांव जमुहार तक पक्की सड़क बनावायी थी. गांव को आत्मनिर्भर बनने में पक्की सड़क का बड़ा अहम रोल है.

होता है मत्स्य पालन भी
होता है मत्स्य पालन भी

गांव में समाज भी चंदा के भरोसे नहीं है. गांव में सामुहिक तालाब के मछली को बेचकर समाज के लिए जरूरत का समान खरीदा जाता है. कई साल पहले से प्रवासी मजदूर गांव आकर आत्मनिर्भर हो रहे हैं. गांव में स्थित 11 पोल्ट्री फार्म प्रवासी मजदूरों के ही हैं, जो पहले राज्य के बाहर कमाते थे लेकिन अब अपने घर पर रहकर आत्मनिर्भरता का दिया जला रहे हैं.

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