गया: बिहार में सिस्टम कराह रहा है. मानवता और इंसानियत दम तोड़ रहे हैं. कहीं परिजन सिस्टम की नाकामी के कारण गोद में उठाकर शव को ले जा रहे हैं, तो कहीं कोरोना के कारण समाज के टूटे ताने-बाने ने अर्थी को कंधा भी नसीब नहीं होने दिया. जिस कारण गया में पिता की मौत के बाद चार लाडलियों ने शव को पीपीई किट पहनाया. पार्थिव शरीर को ठेले पर लाद कर उन्होंने पिता की आखिरी यात्रा पूरी करवाई.
ठेले पर लाद कर पूरी हुई अंतिम यात्रा
दरअसल, जिले के आमस गांव के रहने वाले कामेश्वर चौधरी की मौत कोरोना से हो गयी थी. गांव के लोग शवदाह के लिए आगे नहीं आये. मृतक की चार बेटियों ने हिम्मत करके क्रिया-कर्म को आगे बढ़ाया.
वहीं, मृतक के एक दामाद और गांव के दो युवक संतोष कुमार गुप्ता और मुन्ना चौधरी आगे आए. शव को गांव स्थित श्मशान घाट पर ले जाने के लिए चार कंधे की जरूरत थी. तीन कंधे होने के कारण शव को ठेला पर लादकर श्मशान घाट पहुंचाया गया. जहां ग्रमीणों चिता पहले से सजाकर रखी थी. वहां तीनों ने शव का अंतिम संस्कार किया.
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बीडीओ ने कहा- कोरोना प्रोटोकॉल के तहत सभी सुविधाएं देने की बात कही थी
इस घटना के बारे में ईटीवी भारत ने आमस बीडीओ से बात की. आमस बीडीओ रमेश कुमार सिंह ने बताया गांव के एक युवक ने कामेश्वर चौधरी की मौत की सूचना दी थी. हमने कोरोना प्रोटोकॉल के तहत सभी सुविधाएं देने की बात कही थी. उन्होंने सिर्फ पीपीई किट मांगा था. उन्हें पांच पीपीई किट मुहैया कराये गये थे.
बीडीओ ने बताया कि जब एम्बुलेंस मुहैया कराने की बात कही गयी तो मृतक के परिजनों ने बताया के गांव के तालाब के पास शवदाह करना है. वहां एम्बुलेंस जाने का रास्ता नहीं है.
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बता दें कि कामेश्वर चौधरी होम आइसोलेटेड थे. घर में ही रह कर इलाज करा रहे थे. उनका इलाज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के आमस से चल रहा था. उन्होंने पहली बार 7 मई को अपना इलाज कराया था.
वे 80 वर्ष के थे। कल सुबह बाथरूम में गिर गए थे. बाथरूम में कई घंटे तक शव पड़ा रहा. दामाद और गांव के दो युवकों की मदद से शव को बाथरूम से निकाला था. हालांकि, कोरोना प्रोटोकॉल के तहत ये सारे काम स्वास्थ्य कर्मियों को करना था.