गया: शहर के शाहमीर तकिया मुहल्ले के पहाड़ पर बसे स्लम एरिया में बुआ के नाम से सत्यावती देवी प्रसिद्ध हैं. सत्यावती को बुआ का नाम कचरा उठाने वाले गरीब बच्चों ने रखा है. दअरसल सत्यावती देवी खुद मुफलिसी की जिंदगी व्यतीत कर गरीब बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दे रही है. शिक्षा ले रहे हैं बच्चों ने सत्यावती को बुआ कहना शुरू कर दिया. तब से सभी लोग सत्यावती देवी को बुआ कहकर पुकारते हैं.
गरीब बच्चों को देती हैं निःशुल्क शिक्षा
केंद्र सरकार और बिहार सरकार कई ऐसे योजना चला रही है, जिससे हर बच्चा स्कूल जाकर पढ़ाई करें. लेकिन आज हजारों बच्चे पढ़ाई से वंचित हो जाते हैं. गया शहर में भी कई स्थानों पर कचरा चुनते हुए, होटल में काम करते बच्चे दिखते हैं. ये सभी बच्चे पढ़ाई से कोसों दूर रहते हैं. लेकिन गया शहर में बुआ से नाम प्रसिद्ध सत्यावती देवी कचरा चुनने वाले बच्चों को शिक्षा दे रही हैं.
स्कूल में होता है संस्कृत भाषा का प्रयोग
सत्यावती के स्कूल में प्रार्थना से लेकर बातचीत संस्कृत भाषा में करवायी जाती है. इस सबंध में स्कूल की छात्रा आरती राज ने बताया कि मेरे पिता राज मिस्त्री हैं, पहले निजी स्कूल में पढ़ते थे. पैसे के अभाव में अब सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते हैं. लेकिन वहां पढ़ाई नहीं होती है. एक दिन बुआ मुझे पढ़ाने के लिए घर आई. यहां संस्कृत और इंग्लिश की पढ़ाई अच्छी से होती हैं. वहीं निजी स्कूल में पढ़नेवाली पूजा ने बताया कि निजी स्कूल में पढ़ाई तो होती है, लेकिन संस्कृत की पढ़ाई नहीं होती है.
अभिभावकों को खूब भा रहा सत्यावती देवी का प्रयास
सत्यावती देवी का यह प्रयास अभिभावकों को खूब भा रहा है. बच्चों के अभिभावक सत्यावती देवी की तारीफ करते नहीं थकते. इसी मुहल्ले की रहने वाली गौरी सिंह ने बताया कि मेरे परिवार से चार बच्चे वात्सलय निर्भया शक्ति स्कूल में पढ़ने जाते हैं. यहां संस्कृत और इंग्लिश की अच्छी पढ़ाई होती है, इसलिए बच्चों को यहां पढ़ने के लिए भेजते हैं.
60 बच्चे स्कूल में आते हैं पढ़ने
सत्यावती देवी की जिंदगी मुफलिसी मे बित रही है. पति से अलग होकर पहाड़ में दो कमरे के घर मे रहती हैं. सत्यावती देवी के तीन संतान हैं. सत्यावती देवी अपने तीनों बच्चों के साथ आसपास के दर्जनों बच्चों को शिक्षा दे रही हैं. सत्यावती देवी ने बताया कि मुझे पढ़ने की इच्छा थी, लेकिन दुर्भाग्यवश मैं पढ़ नहीं सकी थी. उन्होंने बताया कि मैंने अपने तीनो बच्चों की परवरिश ठीक ढंग से की है. वह स्लम एरिया में रहती हैं. जहां बच्चे पढ़ने नहीं जाते थे. इसलिए ऐसे बच्चों को मैं निःशुल्क शिक्षा देने लगी. पहले मेरे पास चार बच्चे पढ़ने आते थे, लेकिन अब 60 बच्चे आते हैं.