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वाह! बासी फूलों का ऐसा उपयोग... कमाई भी और सफाई भी, अच्छी पहल है

गया में विष्णुपद (Vishnupad Temple) और महाबोधि मंदिर (Mahabodhi Temple) में चढ़ाए गए फूलों से बनी अगरबत्ती वनवासी महिलाओं के लिए रोजगार का जरिया बनी. अब भगवान को अर्पित फूलों की महक को विदेशों तक पहुंचाया जाएगा. पढ़ें रिपोर्ट..

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Published : Sep 11, 2021, 8:56 PM IST

गया: बिहार की धार्मिक नगरी गया (Gaya) में दो विश्व प्रसिद्ध मंदिर विष्णुपद मंदिर (Vishnupad Temple) और महाबोधि मंदिर (Mahabodhi Temple) हैं. इन दोनों मंदिरों में हर दिन हजारों लोग भगवान विष्णु और बुद्ध के चरण पर पुष्प अर्पित करते थे. कुछ दिन पहले तक अर्पित फूल कूड़े में फेंक दिए जाते थे. अब जिला वन विभाग इन दोनों मंदिरों से निकलने वाली फूल से अगरबत्ती बना रहा है.

ये भी पढ़ें- कोरोना ने महाबोधि मंदिर के गुंबद की चमक को किया फीका, 289 किलो सोने से बने हैं ये कलश

अब विष्णुपद और महाबोधि मंदिर में पूजा के दौरान चढ़ाए जाने वाले फूलों की महक अब लोग अपने घरों में भी ले सकेंगे. वन विभाग इन फूलों से बनी अगरबत्ती को विदेशों तक भेजने की तैयारी कर रही है.

देखें रिपोर्ट

दरअसल, पूरे देश में इन दिनों कूड़ा एक बड़ा संकट हो गया है. अब कूड़े को रिसाइक्लिंग और अन्य उपयोग करने पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है. इसी के तहत वन विभाग ने गया जिले में खास पहल की है. वह विभाग डुंगेश्वरी वन समिति और फॉरेस्ट डेवलपमेंट एजेंसी की मदद से विष्णुपद और महाबोधि मंदिर से पूजा के बाद निकलने वाले फूलों से अगरबत्ती निर्माण शुरू कर दिया है. इससे मंदिरों में फूलों से लगने वाले कूड़े सा निदान मिल गया. वहीं, दर्जनों वनवासी को रोजगार साधन उपलब्ध हुआ है.

ये भी पढ़ें- वैष्णो देवी की तर्ज पर गया के विष्णुपद में भी श्रद्धालुओं को मिलेगी सुविधा, और खूबसूरत दिखेगा मंदिर

''यह अगरबत्ती पूरी तरह से चारकोल फ्री है. इसमें कोयले का प्रयोग नहीं किया गया है. 30 पीस अगरबत्ती वाले पैकेट का बाजार मूल्य 50 रुपए है. अगरबत्ती दो प्रकार के पैकेट में है. एक पैकेट पर विष्णुपद मंदिर की तस्वीर है, जिस पर मंदिर के महत्व की जानकारी भी दी गई है और उसी मंदिर के फूल से इस अगरबत्ती को बनाया गया है. वहीं, दूसरे पैकेट पर महाबोधि मंदिर की तस्वीर और महत्व को प्रदर्शित है. उस पैकेट में महाबोधि मंदिर के फूल से बनाए गए अगरबत्ती को पैक किया गया है. अगरबत्ती बनाने के काम में वनवासी महिलाओं को शामिल किया गया है, इसमें सारा काम महिलाएं ही करती हैं.''- मिथलेश कुमार, अध्यक्ष, डुंगेश्वरी वन समिति

''इस क्षेत्र की महिलाएं पहले जंगल में दिनभर मेहनत कर अपने जीविकोपार्जन के लिए हरे भरे पेड़ को काट देती थी, जिससे वन को काफी नुकसान पहुंच रहा था. अब इन सभी महिलाओं को फूल से अगरबत्ती बनाने का काम सिखाया गया है, जिससे इनकी आय में बढ़ोतरी हुई और जंगल भी बच गया.''- हनी कुमार, स्थानीय

वन विभाग वन को संरक्षित करने के साथ ही वनवासियों के विकास लिए काम कर रही हैं. वन विभाग ने डुंगेश्वरी पहाड़ पर रहने वाली महिला वनवासी के लिए एक रोजगार का साधन उपलब्ध कराया है. डीएफओ अभिषेक कुमार ने बताया कि बिहार की धार्मिक नगरी गया है. यहां भारी मात्रा में भगवान को फूल चढ़ाया जाता है. इन मंदिरों में चढ़ाए गए फूलों को डिस्पोजल करना भी बड़ी समस्या थी. वन विभाग ने फूलों को लेकर दो बड़े काम शुरू किए.

''वन विभाग ने कूड़े में जाने वाले फूल से अगरबत्ती बनाई दूसरा वनवासी महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराया. इन महिलाओं को कौशल विकास प्रशिक्षण दिया गया है. ये महिलाएं हाथों और मशीन से अगरबत्ती बना रही हैं. अगरबत्ती बनाने के लिए दोनो मंदिरों के फूल को अलग रखा जाता है. विष्णुपद मंदिर का फूल से अगरबत्ती अलग बनाया जाता है, उसका पैकिंग अलग होती है और महाबोधि मंदिर के फूलों से बनी अगरबत्ती की अलग पैकिंग की जा रही है. इस तरह का प्रयोग पहली बार किया जा रहा है. जो व्यक्ति दोनों में से जिस धर्म को मानता हो उस धर्म के संबंधित मन्दिर के फूल से बनी अगरबत्ती लेंगे''- अभिषेक कुमार, डीएफओ

ये भी पढ़ें- कोरोना काल में इस साल भी नहीं लगेगा पितृपक्ष मेला, लेकिन कर सकेंगे पिंडदान

बता दें कि महाबोधि मंदिर से फूल बीटीएमसी कार्यालय के द्वारा वन विभाग को उपलब्ध कराया जाता है. वहीं, विष्णुपद मंदिर के फूल नगर गया नगर निगम वन विभाग को उपलब्ध कराती है. कोरोना काल में दोनों मंदिर बंद होने की वजह से फूलों से अगरबत्ती बनाने का काम प्रशिक्षण और पायलट प्रोजेक्ट के तहत शुरू किया गया था. वन विभाग ने फूल से बना अगरबत्ती को बड़े पैमाने पर उत्पादन कर बाजारों और विदेशों तक भेजने की मुकम्मल तैयारी कर रही है.

गया जिले में दो बड़े मंदिर होने के कारण यहां कभी भी फूलों की कमी नहीं होगी, लेकिन कोरोना काल जैसे आपदा आने से यहां फूलों का संकट गहरा जाता है. कोरोना काल के पहले महाबोधि मंदिर में सामान्य दिन में 5 हजार से 10 हजार लोग भगवान बुद्ध का दर्शन करने के लिए आते हैं. इसमें से बौद्ध धर्म के अनुयायी फूल अर्पित करते हैं. पर्यटन सीजन में पूरा महाबोधि मंदिर फूलों से सजा दिया जाता है और पूरे पर्यटन सीजन में विभिन्न देशों का विशेष पूजा आयोजन होता है.

ये भी पढ़ें- गया में तर्पण के लिए नहीं होगी पानी की कमी, 277 करोड़ रुपये की लागत से बन रहे रबर डैम का 25 फीसदी कार्य पूरा

इस दौरान महाबोधि मंदिर में हर दिन लगभग 200 किलो के आसपास फूल चढ़ाए जाते हैं. वहीं, विष्णुपद मन्दिर में सामान्य दिनों में तीन से 5 हजार लोग आते हैं. यहां आने वाले 90 फीसदी लोग फूल अर्पित करते हैं. साल में तीन पितृपक्ष में हर दिन लगभग दस हजार लोग पिंडदान करने आते है. जिसमें सभी लोग पुष्प चढ़ाते है. इस दौरान हर दिन 100 किलो फूल चढ़ाया जाता है.

विष्णुपद मंदिर में स्थित विष्णु चरण पर सफेद फूल, गेंदे के फूल और गुलाब के फूल चढ़ाए जाते हैं. वहीं, महाबोधि मंदिर में भगवान बुद्ध को गुलाब, कमल का फूल, गेंदे का फूल ज्यादातर चढ़ाया जाता है, इसके अलावा विभिन्न देशों के भी फूल चढ़ाए जाते हैं.

गया: बिहार की धार्मिक नगरी गया (Gaya) में दो विश्व प्रसिद्ध मंदिर विष्णुपद मंदिर (Vishnupad Temple) और महाबोधि मंदिर (Mahabodhi Temple) हैं. इन दोनों मंदिरों में हर दिन हजारों लोग भगवान विष्णु और बुद्ध के चरण पर पुष्प अर्पित करते थे. कुछ दिन पहले तक अर्पित फूल कूड़े में फेंक दिए जाते थे. अब जिला वन विभाग इन दोनों मंदिरों से निकलने वाली फूल से अगरबत्ती बना रहा है.

ये भी पढ़ें- कोरोना ने महाबोधि मंदिर के गुंबद की चमक को किया फीका, 289 किलो सोने से बने हैं ये कलश

अब विष्णुपद और महाबोधि मंदिर में पूजा के दौरान चढ़ाए जाने वाले फूलों की महक अब लोग अपने घरों में भी ले सकेंगे. वन विभाग इन फूलों से बनी अगरबत्ती को विदेशों तक भेजने की तैयारी कर रही है.

देखें रिपोर्ट

दरअसल, पूरे देश में इन दिनों कूड़ा एक बड़ा संकट हो गया है. अब कूड़े को रिसाइक्लिंग और अन्य उपयोग करने पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है. इसी के तहत वन विभाग ने गया जिले में खास पहल की है. वह विभाग डुंगेश्वरी वन समिति और फॉरेस्ट डेवलपमेंट एजेंसी की मदद से विष्णुपद और महाबोधि मंदिर से पूजा के बाद निकलने वाले फूलों से अगरबत्ती निर्माण शुरू कर दिया है. इससे मंदिरों में फूलों से लगने वाले कूड़े सा निदान मिल गया. वहीं, दर्जनों वनवासी को रोजगार साधन उपलब्ध हुआ है.

ये भी पढ़ें- वैष्णो देवी की तर्ज पर गया के विष्णुपद में भी श्रद्धालुओं को मिलेगी सुविधा, और खूबसूरत दिखेगा मंदिर

''यह अगरबत्ती पूरी तरह से चारकोल फ्री है. इसमें कोयले का प्रयोग नहीं किया गया है. 30 पीस अगरबत्ती वाले पैकेट का बाजार मूल्य 50 रुपए है. अगरबत्ती दो प्रकार के पैकेट में है. एक पैकेट पर विष्णुपद मंदिर की तस्वीर है, जिस पर मंदिर के महत्व की जानकारी भी दी गई है और उसी मंदिर के फूल से इस अगरबत्ती को बनाया गया है. वहीं, दूसरे पैकेट पर महाबोधि मंदिर की तस्वीर और महत्व को प्रदर्शित है. उस पैकेट में महाबोधि मंदिर के फूल से बनाए गए अगरबत्ती को पैक किया गया है. अगरबत्ती बनाने के काम में वनवासी महिलाओं को शामिल किया गया है, इसमें सारा काम महिलाएं ही करती हैं.''- मिथलेश कुमार, अध्यक्ष, डुंगेश्वरी वन समिति

''इस क्षेत्र की महिलाएं पहले जंगल में दिनभर मेहनत कर अपने जीविकोपार्जन के लिए हरे भरे पेड़ को काट देती थी, जिससे वन को काफी नुकसान पहुंच रहा था. अब इन सभी महिलाओं को फूल से अगरबत्ती बनाने का काम सिखाया गया है, जिससे इनकी आय में बढ़ोतरी हुई और जंगल भी बच गया.''- हनी कुमार, स्थानीय

वन विभाग वन को संरक्षित करने के साथ ही वनवासियों के विकास लिए काम कर रही हैं. वन विभाग ने डुंगेश्वरी पहाड़ पर रहने वाली महिला वनवासी के लिए एक रोजगार का साधन उपलब्ध कराया है. डीएफओ अभिषेक कुमार ने बताया कि बिहार की धार्मिक नगरी गया है. यहां भारी मात्रा में भगवान को फूल चढ़ाया जाता है. इन मंदिरों में चढ़ाए गए फूलों को डिस्पोजल करना भी बड़ी समस्या थी. वन विभाग ने फूलों को लेकर दो बड़े काम शुरू किए.

''वन विभाग ने कूड़े में जाने वाले फूल से अगरबत्ती बनाई दूसरा वनवासी महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराया. इन महिलाओं को कौशल विकास प्रशिक्षण दिया गया है. ये महिलाएं हाथों और मशीन से अगरबत्ती बना रही हैं. अगरबत्ती बनाने के लिए दोनो मंदिरों के फूल को अलग रखा जाता है. विष्णुपद मंदिर का फूल से अगरबत्ती अलग बनाया जाता है, उसका पैकिंग अलग होती है और महाबोधि मंदिर के फूलों से बनी अगरबत्ती की अलग पैकिंग की जा रही है. इस तरह का प्रयोग पहली बार किया जा रहा है. जो व्यक्ति दोनों में से जिस धर्म को मानता हो उस धर्म के संबंधित मन्दिर के फूल से बनी अगरबत्ती लेंगे''- अभिषेक कुमार, डीएफओ

ये भी पढ़ें- कोरोना काल में इस साल भी नहीं लगेगा पितृपक्ष मेला, लेकिन कर सकेंगे पिंडदान

बता दें कि महाबोधि मंदिर से फूल बीटीएमसी कार्यालय के द्वारा वन विभाग को उपलब्ध कराया जाता है. वहीं, विष्णुपद मंदिर के फूल नगर गया नगर निगम वन विभाग को उपलब्ध कराती है. कोरोना काल में दोनों मंदिर बंद होने की वजह से फूलों से अगरबत्ती बनाने का काम प्रशिक्षण और पायलट प्रोजेक्ट के तहत शुरू किया गया था. वन विभाग ने फूल से बना अगरबत्ती को बड़े पैमाने पर उत्पादन कर बाजारों और विदेशों तक भेजने की मुकम्मल तैयारी कर रही है.

गया जिले में दो बड़े मंदिर होने के कारण यहां कभी भी फूलों की कमी नहीं होगी, लेकिन कोरोना काल जैसे आपदा आने से यहां फूलों का संकट गहरा जाता है. कोरोना काल के पहले महाबोधि मंदिर में सामान्य दिन में 5 हजार से 10 हजार लोग भगवान बुद्ध का दर्शन करने के लिए आते हैं. इसमें से बौद्ध धर्म के अनुयायी फूल अर्पित करते हैं. पर्यटन सीजन में पूरा महाबोधि मंदिर फूलों से सजा दिया जाता है और पूरे पर्यटन सीजन में विभिन्न देशों का विशेष पूजा आयोजन होता है.

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इस दौरान महाबोधि मंदिर में हर दिन लगभग 200 किलो के आसपास फूल चढ़ाए जाते हैं. वहीं, विष्णुपद मन्दिर में सामान्य दिनों में तीन से 5 हजार लोग आते हैं. यहां आने वाले 90 फीसदी लोग फूल अर्पित करते हैं. साल में तीन पितृपक्ष में हर दिन लगभग दस हजार लोग पिंडदान करने आते है. जिसमें सभी लोग पुष्प चढ़ाते है. इस दौरान हर दिन 100 किलो फूल चढ़ाया जाता है.

विष्णुपद मंदिर में स्थित विष्णु चरण पर सफेद फूल, गेंदे के फूल और गुलाब के फूल चढ़ाए जाते हैं. वहीं, महाबोधि मंदिर में भगवान बुद्ध को गुलाब, कमल का फूल, गेंदे का फूल ज्यादातर चढ़ाया जाता है, इसके अलावा विभिन्न देशों के भी फूल चढ़ाए जाते हैं.

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