मोतिहारी(बंजरिया): पारिवारिक समस्याओं के कारण एमबीए करने के बाद मल्टीनेशनल कम्पनी में काम कर रहे युवक को जब नौकरी छोड़कर घर वापस आना पड़ा, तो उसके सामने सबसे बड़ी समस्या थी कि परम्परागत खेती से केवल घर परिवार का हीं पेट भर सकता था. बंजरिया प्रखंड के बकुलहर गांव के रहने वाले युवक प्रभात रंजन ने काफी सोच विचार करने के बाद अपने चाचा से औषधीय खेती करने के बारे में चर्चा की. लेकिन बाढ़ग्रस्त क्षेत्र होने के कारण प्रभात के लिए अपने पैतृक गांव में औषधीय खेती करना मुश्किल था.
जिस कारण चाचा-भतीजा ने साथ मिलकर 15 एकड़ की जमीन लीज पर ली और उस जमीन पर औषधीय खेती शुरू कर दी. चाचा-भतीजा की मेहनत रंग लाई. उनके औषधीय खेती को देखने के लिए विभागीय अधिकारी तक खेतों पर पहुंच रहे हैं. साथ ही आसपास के किसान इनके औषधीय खेतों को देखने और खेती के गुर सिखने आते हैं.
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MNC की नौकरी छोड़ शुरू की औषधीय खेती
प्रभात रंजन ने एबीए करने के बाद कई कम्पनियों में अच्छे पैकेज पर नौकरी की है. लेकिन पिता की मौत के बाद पारिवारिक जिम्मेवारी को देखते हुए प्रभात को नौकरी छोड़कर घर आना पड़ा. यहां परम्परागत खेती को छोड़कर प्रभात ने गन्ना की खेती शुरू की. लेकिन गन्ना की खेती में मन मुताबिक फायदा उन्हें नहीं मिला. जिसके बाद उन्होंने औषधीय खेती की तरफ रूख किया. प्रभात बताते हैं कि वैकल्पिक खेती से जिले में अपनी पहचान बनाना उनका मकसद था. उन्होंने कहा कि इससे अच्छी आमदनी भी हो रही है.
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औषधीय पौधों को पशु नहीं पहुंचाते हैं नुकसान
प्रभात रंजन के साथ मिलकर औषधीय खेती कर रहे उनके चाचा आनंद कुमार का अपना मेडिकल स्टोर भी है. लेकिन अपने भतीजे के साथ औषधीय खेती में रम गए. आनंद कुमार बताते हैं कि औषधीय खेती का फायदा यह है कि नीलगाय या अन्य जानवर इसको नुकसान नहीं पहुंचाते हैं और इसमें मुनाफा भी ज्यादा है.
किसान लेने आते हैं औषधीय खेती की जानकारी
प्रभात रंजन और उनके चाचा के औषधीय खेती के बारे में सुनकर आसपास के किसान उनके खेती को देखने आते हैं. साथ ही खेती करने के तरीकों के अलावा लागत और आमदनी की जानकारी भी लेते हैं. अजगरी गांव से प्रभात के औषधीय खेती को देखने आए ब्रज किशोर पांडेय ने बताया कि वह बाढ़ग्रस्त क्षेत्र के रहने वाले हैं. वह यहां वैकल्पिक खेती देखने आए हैं. साथ ही खेती करने का तरीका और लगने वाली लागत के बारे में जानकारी ले रहें हैं.
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जिला के लिए दोनो हैं प्रेरणास्रोत
प्रभात रंजन के औषधीय खेती का जायजा लेने पहुंचे कृषि विज्ञान केंद्र पिपराकोठी के वैज्ञानिक डॉ. अरविन्द कुमार ने कहा कि प्रभात रंजन और आनंद कुमार जिले के किसानों के लिए प्रेरणास्रोत हैं. उन्होंने बताया कि इन लोगों को फोन पर भी तकनीकी सहायता देते हैं.
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सरकार 20 हजार प्रति हेक्टेयर देती है अनुदान
जिला बागवानी पदाधिकारी डॉ. श्रीकांत ने बताया कि जिले में 200 हेक्टेयर में औषधीय पौधों की खेती हो रही है. इसके लिए सरकार से 20 हजार प्रति हेक्टेयर किसानों को अनुदान दिया जाता है. उन्होंने बताया कि इस जिला के लिए नीलगाय एक बड़ी समस्या है. लेकिन औषधीय खेती में रासायनिक खाद का खर्च बचता है और नीलगाय भी नुकसान नहीं पहुंचाती है.
लीज पर ली 15 एकड़ जमीन
दरअसल, प्रभात रंजन ने अपने चाचा आनंद कुमार के साथ मिल सदर प्रखंड के चंद्रहिया गांव में 7 हजार रुपया प्रति एकड़ के हिसाब से 15 एकड़ जमीन लीज पर लिया है. जिसपर लेमन ग्रास, खश, तुलसी और मेंथा की खेती की है. जिसका डिस्टिलेशन कराने के बाद उसका तेल अच्छे कीमतों में वे बेचते हैं. बता दें कि इसमें मुनाफा भी अच्छा होता हे. व्यापारी खुद इनसे संपर्क करके इनके उत्पाद को खरीदते हैं.
खेती में लागत और आमदनी
जानकारी के मुताबिक मेंथा की खेती में प्रति एकड़ 15 से 16 हजार की लागत आती है. एक एकड़ के मेंथा से 50 किलोग्राम तेल निकलता है. जिसका बाजार मूल्य 1000 रुपया प्रति किलोग्राम है. इसी प्रकार खश की खेती में प्रति एकड़ 50 से 55 हजार की लागत है और एक एकड़ के खश से 10 किलोग्राम तेल प्राप्त होता हे. जिसका बाजार मूल्य 14500 रुपया प्रति किलोग्राम है. वहीं लेमन ग्रास के खेती में 15 से 20 हजार प्रति एकड़ का खर्च आता है. लेमन ग्रास से प्रति एकड़ 100 किलोग्राम तेल प्राप्त होता है. जिसका बाजार मूल्य 1100 रुपया प्रति एकड़ है.