मोतिहारी: बाढ़ से पूर्वी चंपारण जिला हर साल प्रभावित होता है. बाढ़ पीड़ितों तक सहायता पहुंचाने का प्रशासन दावा भी करता है. इस बार भी परस्थितियां पिछले साल की तरह ही है. आलम यह है कि बाढ़ प्रभावित अपना सबकुछ गंवा कर रेलवे स्टेशन पर टेंट लगाकर जीवन गुजारने को विवश हैं.
पिछले साल बाढ़ ने पूर्वी चंपारण में जमकर तबाही मचाई थी. साल बदले, लेकिन हालात नहीं. प्रशासनिक दावों में भी कोई बलदाव नहीं हो पाया. आठ जुलाई से शुरु हुई बारिश और नेपाल से आयी बाढ़ ने जमकर तबाही मचाई. ढाका प्रखंड स्थित भारत नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र गुरहनवा गांव के घरों में पानी घुस गया. अपनी जान बचाकर किसी तरह गांव के लोग गुरहेनवा रेलवे स्टेशन के पास पहुंचे. जहां टेंट लगाकर जीवन-यापन कर रहे हैं. जिला मुख्यालय से लगभग 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इन लोगों का सुध लेने वाला कोई नहीं है.
उधार लेकर पेट पाल रहे बाढ़ पीड़ित
बाढ़ पीड़ित वैद्यनाथ पासवान ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि स्थानीय बीडीओ और अन्य अधिकारी हालचाल जानने आये थे. सरकारी मदद का आश्वासन दिया गया. दो दिन खाना भी बनाया गया. उसके बाद से सरकारी सहायता से वंचित हैं. कोई भी अधिकारी हमारा हाल दुबारा आज तक जानने नहीं आये. घर से जो कुछ भी लाया, उससे पेट भर रहे हैं. अब तो पैसे उधार लेकर खाने के लिए अनाज खरीदना पड़ रहा है.
अब तक नहीं मिली 6 हजार की सहायती राशि
सैलाब में अपना सब कुछ को चुके लोग प्लास्टिक के झोपड़े में किसी तरह गुजर बसर कर रहे हैं. न रहने का साधन, न ठीक से खाने का. दो दिन की सरकारी खिचड़ी ने अपना काम पूरा कर दिया. ये बाढ़ पीड़ित 6 हजार की सहायता राशि से अब तक वंचित हैं.
बाढ़ में सब कुछ बर्बाद हो गया
बाढ़ में गांव का का जिक्र करते हुए पीड़ित सुनीता देवी का गला रूंध जाता है. ईटीवी भारत को अपना दुखड़ा सुनाते हुए कहती हैं, दो दिन खिचड़ी सरकार की तरफ से मिला. अब तो वो भी बंद है. सब कुछ खत्म हो गया है. 600 का प्लास्टिक खरीद कर सिर ढक रखे हैं. बाढ़ खत्म होगा उसके बाद क्या होगा? बाढ़ के पानी में घर गिर गया है. न पैसे हैं घर बनाने के और न ही खाने के लिए अनाज. अपने घर पर भी प्लास्टिक तान कर ही गुजारा करना पड़ेगा. हालांकि उन्हें आज भी सरकारी मदद की आस है.
सरकारी सहायता से वंचित हैं पीड़ित
जिला प्रशासन के तरफ से बाढ़ पीड़ित को सरकारी मदद और अनुग्रह अनुदान राशि देने का दावा किया जाता है. लेकिन इन परिवारों पर जिला प्रशासन की नजर नहीं पहुंच पायी है. तमाम बाढ पीड़ित अबतक सरकारी सहायता से वंचित हैं.सरकारी मदद की आस छोड़ चुके हैं. ईटीवी भारत की टीम के पहुंचने से सरकारी मदद की आस जगी है.