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बाढ़ विस्थापितों का दर्द : दो दिन मिली सरकारी खिचड़ी, अब भविष्य अधर में लटका है - जिलाधिकारी रमन कुमार

सरकारी मदद की उपेक्षा का शिकार हो रहे बाढ़ पीड़ित अपना सब कुछ लूटाने के बाद रेलवे स्टेशन को आशियाना बना रखे हैं. तमाम दावे के बाद भी इन महादलित परिवार का सुध लेने वाला कोई नहीं है.

स्टेशन पर दिन गुजार रहे बाढ़ पीड़ित
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Published : Jul 30, 2019, 11:15 AM IST

मोतिहारी: बाढ़ से पूर्वी चंपारण जिला हर साल प्रभावित होता है. बाढ़ पीड़ितों तक सहायता पहुंचाने का प्रशासन दावा भी करता है. इस बार भी परस्थितियां पिछले साल की तरह ही है. आलम यह है कि बाढ़ प्रभावित अपना सबकुछ गंवा कर रेलवे स्टेशन पर टेंट लगाकर जीवन गुजारने को विवश हैं.

बाढ़ पीड़ित लोगों का दर्द

पिछले साल बाढ़ ने पूर्वी चंपारण में जमकर तबाही मचाई थी. साल बदले, लेकिन हालात नहीं. प्रशासनिक दावों में भी कोई बलदाव नहीं हो पाया. आठ जुलाई से शुरु हुई बारिश और नेपाल से आयी बाढ़ ने जमकर तबाही मचाई. ढाका प्रखंड स्थित भारत नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र गुरहनवा गांव के घरों में पानी घुस गया. अपनी जान बचाकर किसी तरह गांव के लोग गुरहेनवा रेलवे स्टेशन के पास पहुंचे. जहां टेंट लगाकर जीवन-यापन कर रहे हैं. जिला मुख्यालय से लगभग 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इन लोगों का सुध लेने वाला कोई नहीं है.

उधार लेकर पेट पाल रहे बाढ़ पीड़ित
बाढ़ पीड़ित वैद्यनाथ पासवान ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि स्थानीय बीडीओ और अन्य अधिकारी हालचाल जानने आये थे. सरकारी मदद का आश्वासन दिया गया. दो दिन खाना भी बनाया गया. उसके बाद से सरकारी सहायता से वंचित हैं. कोई भी अधिकारी हमारा हाल दुबारा आज तक जानने नहीं आये. घर से जो कुछ भी लाया, उससे पेट भर रहे हैं. अब तो पैसे उधार लेकर खाने के लिए अनाज खरीदना पड़ रहा है.

flood victims in east champaran
बाढ़ पीड़ित वैद्यनाथ पासवान

अब तक नहीं मिली 6 हजार की सहायती राशि
सैलाब में अपना सब कुछ को चुके लोग प्लास्टिक के झोपड़े में किसी तरह गुजर बसर कर रहे हैं. न रहने का साधन, न ठीक से खाने का. दो दिन की सरकारी खिचड़ी ने अपना काम पूरा कर दिया. ये बाढ़ पीड़ित 6 हजार की सहायता राशि से अब तक वंचित हैं.

flood victims time spend in plastic tentn on railway station
प्लास्टिक के टेंट में गुजर-बसर कर रहे लोग

बाढ़ में सब कुछ बर्बाद हो गया
बाढ़ में गांव का का जिक्र करते हुए पीड़ित सुनीता देवी का गला रूंध जाता है. ईटीवी भारत को अपना दुखड़ा सुनाते हुए कहती हैं, दो दिन खिचड़ी सरकार की तरफ से मिला. अब तो वो भी बंद है. सब कुछ खत्म हो गया है. 600 का प्लास्टिक खरीद कर सिर ढक रखे हैं. बाढ़ खत्म होगा उसके बाद क्या होगा? बाढ़ के पानी में घर गिर गया है. न पैसे हैं घर बनाने के और न ही खाने के लिए अनाज. अपने घर पर भी प्लास्टिक तान कर ही गुजारा करना पड़ेगा. हालांकि उन्हें आज भी सरकारी मदद की आस है.

flood victim suneetee devi
सुनीती देवी का सवाल बाढ़ के बाद क्या होगा

सरकारी सहायता से वंचित हैं पीड़ित
जिला प्रशासन के तरफ से बाढ़ पीड़ित को सरकारी मदद और अनुग्रह अनुदान राशि देने का दावा किया जाता है. लेकिन इन परिवारों पर जिला प्रशासन की नजर नहीं पहुंच पायी है. तमाम बाढ पीड़ित अबतक सरकारी सहायता से वंचित हैं.सरकारी मदद की आस छोड़ चुके हैं. ईटीवी भारत की टीम के पहुंचने से सरकारी मदद की आस जगी है.

मोतिहारी: बाढ़ से पूर्वी चंपारण जिला हर साल प्रभावित होता है. बाढ़ पीड़ितों तक सहायता पहुंचाने का प्रशासन दावा भी करता है. इस बार भी परस्थितियां पिछले साल की तरह ही है. आलम यह है कि बाढ़ प्रभावित अपना सबकुछ गंवा कर रेलवे स्टेशन पर टेंट लगाकर जीवन गुजारने को विवश हैं.

बाढ़ पीड़ित लोगों का दर्द

पिछले साल बाढ़ ने पूर्वी चंपारण में जमकर तबाही मचाई थी. साल बदले, लेकिन हालात नहीं. प्रशासनिक दावों में भी कोई बलदाव नहीं हो पाया. आठ जुलाई से शुरु हुई बारिश और नेपाल से आयी बाढ़ ने जमकर तबाही मचाई. ढाका प्रखंड स्थित भारत नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र गुरहनवा गांव के घरों में पानी घुस गया. अपनी जान बचाकर किसी तरह गांव के लोग गुरहेनवा रेलवे स्टेशन के पास पहुंचे. जहां टेंट लगाकर जीवन-यापन कर रहे हैं. जिला मुख्यालय से लगभग 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इन लोगों का सुध लेने वाला कोई नहीं है.

उधार लेकर पेट पाल रहे बाढ़ पीड़ित
बाढ़ पीड़ित वैद्यनाथ पासवान ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि स्थानीय बीडीओ और अन्य अधिकारी हालचाल जानने आये थे. सरकारी मदद का आश्वासन दिया गया. दो दिन खाना भी बनाया गया. उसके बाद से सरकारी सहायता से वंचित हैं. कोई भी अधिकारी हमारा हाल दुबारा आज तक जानने नहीं आये. घर से जो कुछ भी लाया, उससे पेट भर रहे हैं. अब तो पैसे उधार लेकर खाने के लिए अनाज खरीदना पड़ रहा है.

flood victims in east champaran
बाढ़ पीड़ित वैद्यनाथ पासवान

अब तक नहीं मिली 6 हजार की सहायती राशि
सैलाब में अपना सब कुछ को चुके लोग प्लास्टिक के झोपड़े में किसी तरह गुजर बसर कर रहे हैं. न रहने का साधन, न ठीक से खाने का. दो दिन की सरकारी खिचड़ी ने अपना काम पूरा कर दिया. ये बाढ़ पीड़ित 6 हजार की सहायता राशि से अब तक वंचित हैं.

flood victims time spend in plastic tentn on railway station
प्लास्टिक के टेंट में गुजर-बसर कर रहे लोग

बाढ़ में सब कुछ बर्बाद हो गया
बाढ़ में गांव का का जिक्र करते हुए पीड़ित सुनीता देवी का गला रूंध जाता है. ईटीवी भारत को अपना दुखड़ा सुनाते हुए कहती हैं, दो दिन खिचड़ी सरकार की तरफ से मिला. अब तो वो भी बंद है. सब कुछ खत्म हो गया है. 600 का प्लास्टिक खरीद कर सिर ढक रखे हैं. बाढ़ खत्म होगा उसके बाद क्या होगा? बाढ़ के पानी में घर गिर गया है. न पैसे हैं घर बनाने के और न ही खाने के लिए अनाज. अपने घर पर भी प्लास्टिक तान कर ही गुजारा करना पड़ेगा. हालांकि उन्हें आज भी सरकारी मदद की आस है.

flood victim suneetee devi
सुनीती देवी का सवाल बाढ़ के बाद क्या होगा

सरकारी सहायता से वंचित हैं पीड़ित
जिला प्रशासन के तरफ से बाढ़ पीड़ित को सरकारी मदद और अनुग्रह अनुदान राशि देने का दावा किया जाता है. लेकिन इन परिवारों पर जिला प्रशासन की नजर नहीं पहुंच पायी है. तमाम बाढ पीड़ित अबतक सरकारी सहायता से वंचित हैं.सरकारी मदद की आस छोड़ चुके हैं. ईटीवी भारत की टीम के पहुंचने से सरकारी मदद की आस जगी है.

Intro:मोतिहारी।पूर्वी चंपारण जिले में आई बाढ़ से उत्पन्न परिस्थिति और पीड़ितों को हर संभव मदद करने की प्रशासनिक दावों की पोल अब खुलने लगी है।जिला मुख्यालय से लगभग 65 किलोमीटर दुर भारत नेपाल सीमा के करीब गुरहेनवा रेलवे फ्लैग पर टेंट लगाकर रह रहे बाढ़ पीड़ित प्रशासनिक दावों की हकीकत को बयान कर रहे हैं।महादलित वर्ग के इन लोगों की सुध लेने वाला कोई नहीं है।


Body:वीओ...1...जिले में आठ जुलाई से शुरु हुई बारिश और नेपाल से आये पानी ने खुब तबाही मचाई।जिले के ढाका प्रखंड स्थित भारत नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र गुरहनवा गांव में रहने वाले लोगों के घरों में पानी घुस गया।साथ हीं तेज बहाव में कई लोगों के घर बह गए तो कई घर गिर गए।रहने का कोई साधन नहीं रहने के वजह से लोग रेलवे फ्लैग पर प्लास्टिक तान कर किसी तरह गुजर बसर कर रहे हैं।प्रशासनिक मदद के नाम पर इन परिवार के लोगों को केवल दो दिन सरकारी खिचड़ी मिली और उसके बाद किसी तरह ये लोग अपनी और अपने परिवार के जिंदगी की गाड़ी को खींच रहे हैं।
बाईट.....वैद्यनाथ पासवान
बाईट.....मुसमात हीरामनी देवी...सर पर पल्लू रखे


Conclusion:वीओ...2....रेलवे फ्लैग पर प्लास्टिक का तंबू तानकर रह रहे परिवार के लोगो से पानी घटने पर लौटने की बात जब पूछा गया।तो वे भावुक गए और अपने हीं जमीन पर हीं जाकर तंबू तानकर रहने की बात कहते हैं।
बाईट.....सुनीती देवी...तंबू में बैठे हुए
वीओएफ...जबकि जिला प्रशासन हर बाढ़ पीड़ित को सरकारी मदद और अनुग्रह अनुदान की राशि देने का दावा तो करती है।लेकिन इन परिवारों तक शायद जिला प्रशासन की नजर नहीं पहुंची है।इसी कारण ये बाढ पीड़ित अबतक सरकारी सहायता से वंचित हैं।जरुरत है इन लोगों को सरकारी मदद की।जिसकी आस इन लोगों ने तो छोड़ हीं दी है।लेकिन ईटीवी के संवाददाता के पहुंचने पर उनको अब विश्वास हुआ है कि अब कहीं सरकारी मदद का हाथ उन तक पहुंच जाए।
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