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दरभंगा: शिक्षकों की कमी के कारण इस स्कूल में पढ़ाते हैं बच्चे, दो टीचर के भरोसे 239 छात्रों का भविष्य

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Published : Feb 24, 2022, 12:31 PM IST

दरभंगा का राजकीय बुनियादी विद्यालय गोदाईपट्टी पिछले 6 साल से शिक्षकों की कमी (Shortage Of Teachers In Darbhanga ) का दंश झेल रहा है. 2 शिक्षकों पर 239 बच्चों का भविष्य है. ऐसे में स्कूल के छात्र ही अपने जूनियर क्लास के बच्चों को पढ़ाते हैं. पढ़ें पूरी खबर..

shortage of teachers in Rajakiya Buniyadi Vidyalaya godaipatti Darbhanga
shortage of teachers in Rajakiya Buniyadi Vidyalaya godaipatti Darbhanga

दरभंगा: सरकार शिक्षा व्यवस्था सुदृढ़ होने के लाख दावे कर ले लेकिन हुक्मरानों की गलत नीतियों व शिथिल रवैया के कारण व्यवस्था में समुचित सुधार नहीं दिख रहा है. इसका प्रत्यक्ष प्रमाण जिले के हनुमाननगर प्रखंड का एकमात्र मॉडल स्कूल राजकीय बुनियादी विद्यालय गोदाईपट्टी (Rajakiya Buniyadi Vidyalaya godaipatti ) है. यह विद्यालय अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. शिक्षकों के अभाव के कारण बच्चे ही अपने से जूनियर क्लास के बच्चों को शिक्षा प्रदान करते हैं.

पढ़ें- बिहार में उच्च शिक्षा बदहाल, हजारों नेट पास छात्रों को नहीं मिल रहे गाइड

शिक्षकों की कमी के कारण इस स्कूल में पढ़ाते हैं बच्चे

इस विद्यालय में नियमित शिक्षक नहीं है. सिर्फ 2 प्रतिनियुक शिक्षकों के सहारे 239 बच्चों को शिक्षा प्रदान की जाती है. यहां पढ़ाई लिखाई से जुड़ी सुविधाओं का घोर अभाव है. विद्यालय के पास अपनी पर्याप्त भूमि होते हुए भी साधन एवं संसाधन की घोर कमी है. संसाधनों की कमी के कारण प्रभारी प्रधानाध्यापिका को हमेशा परेशानी होती है. ग्रामीणों की ओर से इस समस्या के निदान के लिए कई बार स्थानीय जनप्रतिनिधियों और विभागीय अधिकारियों से आग्रह किया गया. लेकिन इसके सुधार के लिए आज तक कोई सार्थक पहल नहीं किया जा सका.

पढ़ें-Bihar Education: बिहार के स्कूल और कॉलेज गेस्ट टीचर्स के भरोसे, नियमित शिक्षकों का टोटा

स्कूल में छात्रों की औसत उपस्थिति 70 से 80 प्रतिशत रहती है. इस विद्यालय में पढ़ने वाले अधिकांश छात्र दलित और पिछड़े समुदाय से आते हैं. बिहार राज्य शैक्षणिक आधारभूत संरचना विकास निगम लिमिटेड की ओर से वर्ष 2015 की 16 जुलाई को करीब 3 करोड़ रुपए की लागत से इस मॉडल स्कूल भवन की नींव रखी गई थी. स्कूल का नया भवन बनकर तैयार होने के 6 साल बाद भी इस क्षेत्र के बच्चों को 12वीं कक्षा तक शिक्षा मुहैया कराने का सरकारी फरमान धरातल पर नहीं उतर पाया है.

आज भी इस स्कूल में 8वीं कक्षा तक की ही पढ़ाई होती है. करीब 5 वर्ष पूर्व एक कार्यक्रम में यहां के सैंकड़ों ग्रामीणों से तत्कालीन डीएम डॉ चंद्रशेखर सिंह की ओर से स्कूल में शिक्षकों की कमी और 12वीं कक्षा तक तालिम मुहैया कराने का वादा किया गया था, जिसे आजतक पूरा नहीं किया गया है. इस समस्या को लेकर जब जिला शिक्षा पदाधिकारी से बात की गई तो उन्होंने नियोजन का हवाला देते हुए 27 फरवरी के बाद किसी भी तरह के बयान देने की बात कही है.

पढ़ें- बिहार शिक्षा विभाग 10 महिला समेत 20 शिक्षकों को करेगा सम्मानित, देखें सूची

प्रभारी प्रधानाध्यापिका शर्मिला कुमारी ने बताया कि स्कूल की इस समस्या से प्रखंड से लेकर जिला के प्रतिनिधि व अधिकारी भी वाकिफ हैं. लेकिन उन लोगों की ओर से आज तक इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया. वहीं स्कूल की छात्रा वैष्णवी ने बताया कि शिक्षकों की कमी के कारण जूनियर क्लास को हम पढ़ाते हैं ताकि किसी का भी समय बर्बाद न हो.

"शिक्षकों की कमी के बारे अधिकारियों को स्कूल की ओर से और ग्रामीणों की तरफ से भी बताया जाता है. यहां लगभग 250 बच्चे हर सत्र में रहते हैं. 6 वीं से 8 वीं तक की कक्षा में एक ही शिक्षक संस्कृत विषय के हैं. हम यहां कंबाइंड क्लास चलाते हैं. हर क्लास में दो दो क्लास के बच्चे बैठते हैं. जूनियर क्लास के बच्चों को सीनियर क्लास के बच्चे पढ़ाते हैं."- शर्मिला कुमारी , प्रभारी प्रधानाध्यापिका

हमारे स्कूल में दो ही टीचर है. दोनों शिक्षक हमारे क्लास को पढ़ाते हैं. और हम जूनियर क्लास के बच्चों को पढ़ाते हैं. ऐसे में किसी का भी समय बर्बाद नहीं होता है. हर एक घंटी में अलग अलग छात्र जाकर जूनियर क्लास के बच्चों को पढ़ाता है.- वैष्णवी, छात्रा

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शिक्षकों की कमी के कारण इस स्कूल में पढ़ाते हैं बच्चे

इस विद्यालय में नियमित शिक्षक नहीं है. सिर्फ 2 प्रतिनियुक शिक्षकों के सहारे 239 बच्चों को शिक्षा प्रदान की जाती है. यहां पढ़ाई लिखाई से जुड़ी सुविधाओं का घोर अभाव है. विद्यालय के पास अपनी पर्याप्त भूमि होते हुए भी साधन एवं संसाधन की घोर कमी है. संसाधनों की कमी के कारण प्रभारी प्रधानाध्यापिका को हमेशा परेशानी होती है. ग्रामीणों की ओर से इस समस्या के निदान के लिए कई बार स्थानीय जनप्रतिनिधियों और विभागीय अधिकारियों से आग्रह किया गया. लेकिन इसके सुधार के लिए आज तक कोई सार्थक पहल नहीं किया जा सका.

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स्कूल में छात्रों की औसत उपस्थिति 70 से 80 प्रतिशत रहती है. इस विद्यालय में पढ़ने वाले अधिकांश छात्र दलित और पिछड़े समुदाय से आते हैं. बिहार राज्य शैक्षणिक आधारभूत संरचना विकास निगम लिमिटेड की ओर से वर्ष 2015 की 16 जुलाई को करीब 3 करोड़ रुपए की लागत से इस मॉडल स्कूल भवन की नींव रखी गई थी. स्कूल का नया भवन बनकर तैयार होने के 6 साल बाद भी इस क्षेत्र के बच्चों को 12वीं कक्षा तक शिक्षा मुहैया कराने का सरकारी फरमान धरातल पर नहीं उतर पाया है.

आज भी इस स्कूल में 8वीं कक्षा तक की ही पढ़ाई होती है. करीब 5 वर्ष पूर्व एक कार्यक्रम में यहां के सैंकड़ों ग्रामीणों से तत्कालीन डीएम डॉ चंद्रशेखर सिंह की ओर से स्कूल में शिक्षकों की कमी और 12वीं कक्षा तक तालिम मुहैया कराने का वादा किया गया था, जिसे आजतक पूरा नहीं किया गया है. इस समस्या को लेकर जब जिला शिक्षा पदाधिकारी से बात की गई तो उन्होंने नियोजन का हवाला देते हुए 27 फरवरी के बाद किसी भी तरह के बयान देने की बात कही है.

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प्रभारी प्रधानाध्यापिका शर्मिला कुमारी ने बताया कि स्कूल की इस समस्या से प्रखंड से लेकर जिला के प्रतिनिधि व अधिकारी भी वाकिफ हैं. लेकिन उन लोगों की ओर से आज तक इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया. वहीं स्कूल की छात्रा वैष्णवी ने बताया कि शिक्षकों की कमी के कारण जूनियर क्लास को हम पढ़ाते हैं ताकि किसी का भी समय बर्बाद न हो.

"शिक्षकों की कमी के बारे अधिकारियों को स्कूल की ओर से और ग्रामीणों की तरफ से भी बताया जाता है. यहां लगभग 250 बच्चे हर सत्र में रहते हैं. 6 वीं से 8 वीं तक की कक्षा में एक ही शिक्षक संस्कृत विषय के हैं. हम यहां कंबाइंड क्लास चलाते हैं. हर क्लास में दो दो क्लास के बच्चे बैठते हैं. जूनियर क्लास के बच्चों को सीनियर क्लास के बच्चे पढ़ाते हैं."- शर्मिला कुमारी , प्रभारी प्रधानाध्यापिका

हमारे स्कूल में दो ही टीचर है. दोनों शिक्षक हमारे क्लास को पढ़ाते हैं. और हम जूनियर क्लास के बच्चों को पढ़ाते हैं. ऐसे में किसी का भी समय बर्बाद नहीं होता है. हर एक घंटी में अलग अलग छात्र जाकर जूनियर क्लास के बच्चों को पढ़ाता है.- वैष्णवी, छात्रा

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