दरभंगा : बिहार का दरभंगा (Darbhanga) जिले का ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय (LNMU) अक्सर अपनी गड़बड़ियों को लेकर सुर्खियों में रहता है. कभी छात्रों की परीक्षा और डिग्री को लेकर तो कभी बड़ी वित्तीय अनियमितता की वजह से. अब एक बार फिर से बड़ी वित्तीय अनियमितता (Financial Irregularities Exposed) उजागर हुई है. करीब 97 करोड़ की गड़बड़ी का खुलासा खुद विश्वविद्यालय प्रशासन ने किया है.
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दरअसल, विश्वविद्यालय में मनमाने वेतन निर्धारण और जीआईसी के ब्याज के भुगतान की वजह से तकरीबन 97 करोड़ रुपए की गड़बड़ी सामने आई है. यहां एक आईएएस अधिकारी का ए ग्रेड का वेतनमान ग्रेड सी के क्लर्क वर्षों से ले रहे थे. आश्चर्य की बात है कि ये खेल विश्वविद्यालय की स्थापना के वर्ष 1972 के कुछ साल बाद से ही शुरू हो गया जो कुछ समय पहले तक जारी था. गड़बड़ी सामने आने के बाद विश्वविद्यालय में हड़कंप मच गया है.
वहीं कुलपति ने आनन-फानन में विश्वविद्यालय की वेतन निर्धारण समिति की एक बैठक बुलाई और मामले की समीक्षा कर पैसे की रिकवरी का निर्देश दिया है. विश्वविद्यालय के वित्त परामर्शी कैलाश राम ने बताया कि गलत वेतन निर्धारण और ग्रुप इंश्योरेंस के ब्याज के ज्यादा भुगतान की वजह से विश्वविद्यालय पर तकरीबन 97 करोड़ की देनदारी खड़ी हो गई है. जिसका भुगतान करना विश्वविद्यालय के बस की बात नहीं है. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय की स्थापना के कुछ ही साल बाद अर्थात 1980 के दशक से यह गड़बड़ी शुरू हो गई थी.
वित्त परामर्शी कैलाश राम ने कहा कि बिना उच्च शिक्षा विभाग के निर्देश के मनमाने ढंग से विश्वविद्यालय में वेतन निर्धारण किया गया. उन्होंने कहा कि एक आईएएस अधिकारी का वेतनमान 5400 रुपए होता है जो कि क्लास वन का वेतनमान है. ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के तहत काम करने वाले ग्रेड सी के कर्मियों का वेतनमान आईएएस अधिकारी के वेतनमान 5400 रुपये के बराबर निर्धारित कर दिया गया.
उन्होंने कहा कि बिहार सरकार ने वर्ष 2013 में विश्वविद्यालयों के लिए वेतन निर्धारण समिति का गठन किया था. इन गड़बड़ियों के उजागर होने के बाद जब विवि ने सरकार की वेतन निर्धारण समिति को यह मामला भेजा तो वहां से इसे गलत बताते हुए कार्रवाई करने का निर्देश दे दिया गया. वित्त परामर्शी ने यह भी कहा कि कर्मचारियों के ग्रुप इंश्योरेंस के तहत 12.5 प्रतिशत की दर से विश्वविद्यालय ब्याज का भुगतान कर रहा है. जबकि इस मद में विश्वविद्यालय को साधारण बचत खाता के रूप में 3 से साढ़े 3 प्रतिशत ब्याज ही मिलता है.
उन्होंने बताया कि बिना उच्च शिक्षा विभाग का निर्देश लिए कर्मचारियों के जीआईसी के पैसे को विश्वविद्यालय ने अलग बचत खाता खोलकर उसमें डालना शुरू कर दिया. जबकि नियम यह है कि जीआईसी का पैसा सरकार की ओर से दिए गए ट्रेजरी के खाते में जमा होगा. उन्होंने कहा कि इन्हीं गड़बड़ियों की वजह से तकरीबन 97 करोड़ की देनदारी विश्वविद्यालय पर हो गई है, जिसे चुकाने में विश्वविद्यालय सक्षम नहीं है.
वित्त परामर्शी कैलाश राम ने कहा कि ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय से अलग हुए बीएन मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा ने इसी के तहत ललित नारायण मिथिला विवि को 20 लाख रुपए का क्लेम किया है. ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के खाते में इस मद में महज 25 लाख रुपए की राशि बची है. अगर 20 लाख रुपए बीएन मंडल विश्वविद्यालय को दे दिए जाते हैं तो महज 5 लाख की राशि ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के पास बचेगी.
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वित्त परामर्शी ने कहा कि इसी वजह से विश्वविद्यालय के कुलपति ने इन सभी मामलों की समीक्षा कर वैसे कर्मियों से पैसे रिकवर करने का निर्देश जारी किया है जिन्हें ज्यादा भुगतान कर दिया गया है. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने रिकवरी की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
बता दें कि ललित नारायण मिथिला विवि में गड़बड़ियों के मामले नए नहीं हैं. इसके पहले 2018 में विवि ने एक निजी एजेंसी 'स्कूल गुरु' के साथ एक करार किया था. जिसके तहत विवि के दूर शिक्षा निदेशालय में कई कोर्स के लिए नामांकन लेने और पाठ्य सामग्री वितरित करने की जिम्मेवारी स्कूल गुरु को दे दी गई थी. इसके एवज में स्कूल गुरु को लाखों रुपये का भुगतान होना था.
ये बिहार में इस तरह का पहला मामला था. इसमें बड़ी वित्तीय अनियमितता के आरोप विवि पर लगे थे. काफी हंगामे और छात्रों के लगातार आंदोलन के बाद विवि ने आखिरकार 2020 में स्कूल गुरु के साथ ये समझौता रद्द कर दिया था. इस प्रकरण में राज्य भर में विवि की किरकिरी हुई थी. अब वेतन निर्धारण में गड़बड़ी के इस ताजा मामले के उजागर होने के बाद एक बार फिर से विवि की किरकिरी हो रही है.