दरभंगा: अपने बीमार पिता को साइकिल पर बिठा कर गुरुग्राम से दरभंगा लाने वाली बहादुर बेटी ज्योति का गांव आज विश्वभर में चर्चित हो गया है. ज्योति की चारो ओर सराहना की जा रही है. आज ज्योति पर उपहारों की बरसात हो रही है. इन सबके बीच ज्योति के गांव से चंद किलोमीटर दूर टेकटार गांव के दिव्यांग जलालुद्दीन के सपने आज भी उसके आंखों में बसे हुए हैं, जो इस तलाश में हैं कि कब उसके हौसलों और हिम्मत को भी उड़ान मिलेगी.
दिव्यांग जलालुद्दीन वो शख्स है, जिसने महज 6 साल की उम्र में ट्रेन की चपेट में आकर अपना एक पैर गंवा दिया. बावजूद इसके, उसने हिम्मत नहीं हारी और साइकिल चलाने की प्रैक्टिस करता रहा. साल 2016 में लखनऊ में आयोजित एक रेस में जलालुद्दीन ने लगातार 12 घंटे तक साइकिल चलाई. इस दौरान उसने 300 किलोमीटर साइकिल चलाकर रिकॉर्ड कायम किया था. तब यूपी के तत्कालीन कैबिनेट मंत्री राजेंद्र चौधरी ने उसे पुरस्कृत किया.
दयनीय स्थिति में परिवार
हौसला और हिम्मत तभी रंग लाते हैं, जब किस्मत अच्छी हो. लेकिन गरीबी की छांव में जी रहे जलालुद्दीन आज उस मुकाम तक नहीं पहुंच सके, जो उन्हें मिलना चाहिए था. मां बिस्किट बेच कर परिवार चलाती है. वहीं, दिव्यांग जलालुद्दीन अपनी पुरानी साइकिल पर अपना एक पांव से प्रैक्टिस जारी रखे हुए है. वो आज भी एक अच्छी साइकिल के लिए तरस रहा है.
- वर्ष 2019 में इंडोनेशिया में दिव्यांगों के लिए हुई अंतरराष्ट्रीय साइक्लिंग प्रतियोगिता में चयनित होने के बाद भी संसाधनों के अभाव में वह देश का प्रतिनिधित्व नहीं कर सका.
- 2011 में दरभंगा जिला स्थापना दिवस पर आयोजित साइक्लिंग प्रतियोगिता में 600 सामान्य बच्चों के बीच दिव्यांग जलालुद्दीन को 14वां स्थान मिला.
- उसके बाद तो उसके जैसे पंख लग गए. मुजफ्फरपुर, पटना, अहमदाबाद, हैदराबाद और लखनऊ में उसने अपनी साधारण सी पुरानी साइकिल से कई प्रतियोगिताएं जीती.
- गरीबी की वजह और संसाधनों की कमी ने उसे और आगे नहीं बढ़ने दिया.
ईटीवी भारत से बात करते हुए जलालुद्दीन ने कहा कि उसे मलाल है कि चयन होने के बावजूद 2019 में इंडोनेशिया में वह देश के लिए नहीं खेल सका. वह साइक्लिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया से ज्योति की तरह कुछ संसाधन उपलब्ध कराने की गुजारिश करता है, ताकि वह भी साइक्लिंग में देश का नाम रोशन कर सके.
मां ने की सरकार से मांग
जलालुद्दीन की मां रजिया खातून सरकार से मांग करती हैं कि बहादुर बेटी ज्योति की तरह उनके बेटे को भी संसाधन उपलब्ध कराए जाएं ताकि वह दुनिया में भारत का नाम साइक्लिंग में रोशन कर सके. उनका कहना है कि जलालुद्दीन में बहुत हौसला है. उनके परिवार की गरीबी उसके आगे बढ़ने में बाधक बन रही है. अगर, थोड़ी भी मदद मिले तो वह आसमान की ऊंचाई छू सकता है.
- बिहार में ऐसी कई प्रतिभाएं हैं, जो देश का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम हैं. ईटीवी भारत ऐसी तमाम खबरों को लगातार प्रकाशित कर रहा है.
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