दरभंगा : बिहार के दरभंगा में एक ऐसा स्कूल है जो गांव की सड़क पर खुलेआम चलता है. जब कोई गांव वाला गांव में घुसता है तो उसको इन बच्चों के बीच से होकर गांव की ओर जाना पड़ता है. अच्छी बात ये है कि स्कूल में शिक्षकों की संख्या संतोषजनक है, लेकिन अभी तक भवन और शौचालय का कोई अता-पता न होने के चलते बच्चे भी मायूस हैं.
दरभंगा में सड़क पर स्कूल : मजबूरी में सड़क को ही शिक्षकों ने स्कूल बना दिया. पॉलीथीन टांगकर थोड़ी छाया कर दी. बोर्ड को टांगने का इंतजाम कर लिया और सड़क पर ही पढ़ाई शुरू कर दी. हालांकि विद्यालय को लेकर स्कूल के हेडमास्टर ने प्रशासन को कई बार भवन के लिए अवगत भी कराया लेकिन अभी तक इसको लेकर कोई हलचल नहीं है.
'देख रहे हैं केके पाठक जी..?' : केके पाठक भी अक्सर ऐसे विद्यालयों पर दौरा करते हैं जहां इंतजामों की कोई कमी नहीं. लेकिन कीरतपुर प्रखंड के रसियारी पंचायत के सिरसिया गांव का ये स्कूल अभी तक अफसरों की मेहरबानी से अछूता है. खुशी की बात ये है कि यहां पर हाल ही यूपीएससी से आए शिक्षक विशाल कुमार भी तैनात हुए हैं. उनसे जब इसको लेकर पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उम्मीद से भी यहां की व्यवस्था खराब है.
क्या सोचते हैं BPSC से चयनित गुरुजी? : नई ज्वाइनिंग वाले शिक्षकों से व्यवस्था को लेकर सवाल पूछा गया तो वो भी झेंप गए. बीपीएससी कम्पटीट करके आपको ऐसा स्कूल मिला. आपने सोचा था कि आपको ऐसी व्यवस्था में काम करना होगा. ये सवाल सुनते ही माथे पर थोड़ी चिंता की लकीरें खिंच आईं. लेकिन खुद को संभालते हुए नए मास्टर जी ने कहा- ''हां ये तो है पर ऐसा भी नहीं सोचा था, फिर भी हम इस व्यवस्था में भी इसको सुधारने के लिए काम कर रहे हैं. जो मिला है, उसी को ठीक करेंगे.''
इससे भी खराब व्यवस्था हो सकती है क्या? : शिक्षा में गुणवत्ता की बात और मिड डे मील का अनुपालन कैसे होता है इन तस्वीरों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है. ज्यादातर बच्चे आने जाने वालों से परेशान रहते हैं. उन्हें बार-बार अपना सामान बटोरना पड़ता है. गांव के ही एक शख्स ने स्कूल के लिए तीन कट्ठा जमीन भी दान दी है. लेकिन अभी तक उसको लेकर भी शिक्षा विभाग की ओर से कोई हलचल दिखाई नहीं देती.
खुले आसमान के नीचे सड़क पर बच्चे : पन्नी की छत के नीचे 174 बच्चे पढ़ते हैं. जिसमें 98 लड़के नामांकित हैं जबकि 76 लड़कियां भी पढ़ने आती हैं. इन बच्चों के लिए जो मिड डे मील बनता है वो पशु खटाल में बनता है. सड़क के किनारों पर दोनों ओर बच्चे बैठकर पढ़ाई और भोजन दोनों करते हैं. शौचालय कहां जाते हैं ये सवाल पूछने पर छात्राएं सिर झुकाकर उंगली से खेत की ओर इशारा करती हैं.
''स्कूल के सफल संचालन के लिए 5 शिक्षक हैं, जिसमें से 2 महिला और 3 पुरुष शिक्षक हैं. बिहार लोक सेवा आयोग से चयानित 2 और नियोजन से 3 शिक्षक कार्यरत हैं. यहां स्कूल को जमीन देने के लिए दाता लगभग 3 साल से तैयार हैं. लेकिन एनओसी नहीं मिल पायी है. यहां के लोगो को कोई समस्या नहीं है. हमलोग ने लिख कर विभाग को दिया है. अभी तक कुछ नहीं हो पाया है.''- विद्यानंद प्रसाद, प्रधानाध्यापक, सिरसिया प्राथमिक विद्यालय
शिक्षक हैं, स्कूल नदारद? : इस विद्यालय में 2 महिला और तीन पुरुष शिक्षक तैनात हैं. क्लास 1 से पांचवी तक संचालित है. शिक्षकों और पठन-पाठन में कोई समस्या नहीं लेकिन अपना भवन नहीं होने के चलते बच्चों को गर्मी, ठंड और बारिश में काफी जद्दोजहद करना पड़ता है. भवन निर्माण के लिए गांव के ही पुलेश्वर पांडेय ने अपनी जमीन भी दान दी है लेकिन अब तक प्रशासन नींद में है.
''स्कूल की जमीन नहीं होने के कारण हम लोगों को इस प्रकार की स्थिति में पढ़ाई लिखाई करना पड़ता है. स्कूल में भवन हो इसको लेकर हम लोगों ने कई बार अपने प्रिंसिपल से कही है, लेकिन अभी तक इसका कोई समाधान नहीं निकला है.''- अंजनी कुमारी, छात्रा