दरभंगा: उत्तर बिहार के सबसे बड़े अस्पताल डीएमसीएच में बर्न वार्ड बना तो है, लेकिन वहां मरीजों के इलाज की व्यवस्था नहीं है. यहां इलाज करवाने आये मरीजों को प्राथमिक उपचार के बाद पीएमसीएच रेफर कर दिया जाता है. ऐसे में कुछ मरीज ही पीएमसीएच जा पाते हैं. कुछ तो रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं. वहीं, अस्पताल के इस व्यवस्था को लेकर अस्पताल प्रशासन बिल्कुल भी गंभीर नहीं है.
वार्ड में नहीं है विशेषज्ञ डॉक्टर
स्वास्थ्य विभाग के गाइडलाइन के अनुसार झुलसे मरीजों के लिए अस्पताल में अलग वार्ड का रहना जरूरी है. लेकिन यहां ऐसे मरीजों का इलाज जेनरल वार्ड के मरीजों के साथ होता है. इसके कारण ऐसे मरीजों के स्वास्थ्य में सुधार होने की बजाय और हालत बिगड़ जाती है. बतातें चलें कि डीएमसीएच के सर्जिकल भवन में 1982 से बर्न वार्ड स्वीकृत है. लेकिन विभाग की तरफ से यहां पर विशेषज्ञ डॉक्टर, पारा मेडिकल कर्मी और इलाज से संबंधित कोई उपकरण मुहैया नहीं करवाया गया है. जिसके कारण 10 बेडों के बने बर्न वार्ड में बरसों से ताला लटक रहा है. इस ओर अस्पताल प्रशासन भी ध्यान नहीं दे रहा है. लेकिन यह यूनिट आज भी मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के रिकॉर्ड में चालू है.
वार्ड के दरवाजे पर लटके हैं ताले
मरीज के परिजन ने बताया कि इस अस्पताल में बर्न यूनिट तो बना है. लेकिन वार्ड के दरवाजे पर ताला लटका हुआ है. यहां पर किसी डॉक्टर और नर्स को भी नहीं देखा है. वार्ड में बेड तो नजर आ रहे हैं, लेकिन इलाज की कोई व्यवस्था नहीं है. अंदर की स्थिति देखने से गोदाम की तरह लग रहा है.
जेनरल वार्ड में होता है इलाज
वहीं, अस्पताल अधीक्षक डॉ. राज रंजन प्रसाद ने कहा कि बर्न यूनिट का स्थापना 1982 ई. में हुआ था और उस समय यह चल रहा था. इधर कुछ वर्षों से वहां कोई बर्न स्पेशलिस्ट नहीं है. साथ ही वर्न मरीजों के इलाज के लिए जो पूरे यूनिट होते हैं, सिस्टर, प्लास्टिक सर्जन या फिर अन्य कर्मचारी, उन सबों के नहीं रहने के कारण अब यहां पर कोई बर्न वार्ड अलग से नहीं है. अभी जो बर्न के मरीज यहां आते हैं. उसका इलाज सर्जरी वार्ड में ही होता है. 30 से 40 प्रतिशत बर्न के मरीज का इलाज सर्जरी वार्ड में होता है. अगर उससे ज्यादा हो तो उन्हें बाहर रेफर किया जाता है.