बक्सर: विश्व प्रसिद्ध पंचकोशी यात्रा के अंतिम पड़ाव पर स्थानीय लोगों के साथ ही पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश, झारखंड से पहुंचे हजारों श्रद्धालुओं ने बक्सर स्थित चरित्र वन में लिट्टी चोखा का प्रसाद तैयार कर ग्रहण किया.
भगवान राम ने शुरु की पंचकोशी यात्रा
मान्यता है कि त्रेता युग में जब भगवान राम विश्वामित्र की इस पावन नगरी में पधारे थे, तो उन्होंने ताड़का, सुबाहु जैसे राक्षसों का वध करने के बाद, 5 कोस की यात्रा शुरू की थी. सबसे पहले भगवान राम ने अहिल्या की तपोभूमि अहिरौली में जाकर उनका उद्धार किया और वहां पूड़ी-पकवान का भोग लगाया. अपने दूसरे पड़ाव में राम ने नारद मुनि के आश्रम नदाव में खिचड़ी खाई.
भगवान राम ने अपने हाथों से बनाया लिट्टी चोखा
तीसरे पड़ाव में भगवान राम भार्गव ऋषि के आश्रम भभुअर पहुंचे और दही चूड़ा खाया. अपने चौथे पड़ाव में वे उनवास पहुंचे जहां सत्तू मूली खाने के बाद इस पंचकोशी यात्रा के अंतिम पड़ाव में बक्सर पहुंचे. यहां के चरित्र वन में विश्वामित्र मुनि के आश्रम के पास भगवान राम ने अपने हाथों से लिट्टी चोखा तैयार कर खाया और फिर यहां से मां सीता की खोज में निकल पड़े. तब से पंचकोशी यात्रा की यह परंपरा चली आ रही है
लोग निभा रहे त्रेता युग चली आ रही परंपरा
यात्रा में आये श्रद्धालुओ ने बताया कि वह अपने घर से ही लिट्टी चोखा का सारा सामान लेकर यहां आते है, और प्रसाद तैयार कर खाते है. आज विश्व के हर कोने में जहां भी बक्सर और बिहारवासी होंगे, वहां आज लिट्टी चोखा जरूर बनाया जाएगा. त्रेता युग से चली आ रही परंपरा का निर्वहण लोग आज भी कर रहे है.
कार्तिक महीने से शुरू होती है पंचकोशी यात्रा की तैयारी
बता दें कि पंचकोशी यात्रा के लिए लोग कार्तिक महीने से ही तैयारियां शुरू कर देते हैं. अगहन के महीने में जैसे यह पंचकोशी यात्रा शुरू होती है लोग अपने घर से पांचों जगह के लिए यात्रा पर निकल जाते है.