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पंचकोशी यात्रा के अंतिम दिन श्रद्धालुओं ने बनाया लिट्टी चोखा का प्रसाद, भगवान राम से जुड़ा है इतिहास

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Published : Nov 21, 2019, 9:32 PM IST

मान्यता है कि त्रेता युग में जब भगवान राम विश्वामित्र की इस पावन नगरी में पधारे थे, तो उन्होंने ताड़का, सुबाहु जैसे राक्षसों का वध करने के बाद, 5 कोस की यात्रा शुरू की थी.

पंचकोशी यात्रा

बक्सर: विश्व प्रसिद्ध पंचकोशी यात्रा के अंतिम पड़ाव पर स्थानीय लोगों के साथ ही पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश, झारखंड से पहुंचे हजारों श्रद्धालुओं ने बक्सर स्थित चरित्र वन में लिट्टी चोखा का प्रसाद तैयार कर ग्रहण किया.

भगवान राम ने शुरु की पंचकोशी यात्रा
मान्यता है कि त्रेता युग में जब भगवान राम विश्वामित्र की इस पावन नगरी में पधारे थे, तो उन्होंने ताड़का, सुबाहु जैसे राक्षसों का वध करने के बाद, 5 कोस की यात्रा शुरू की थी. सबसे पहले भगवान राम ने अहिल्या की तपोभूमि अहिरौली में जाकर उनका उद्धार किया और वहां पूड़ी-पकवान का भोग लगाया. अपने दूसरे पड़ाव में राम ने नारद मुनि के आश्रम नदाव में खिचड़ी खाई.

panchkoshi yatra in buxar
रामरेखा घाट पर स्नान करते श्रद्धालु

भगवान राम ने अपने हाथों से बनाया लिट्टी चोखा
तीसरे पड़ाव में भगवान राम भार्गव ऋषि के आश्रम भभुअर पहुंचे और दही चूड़ा खाया. अपने चौथे पड़ाव में वे उनवास पहुंचे जहां सत्तू मूली खाने के बाद इस पंचकोशी यात्रा के अंतिम पड़ाव में बक्सर पहुंचे. यहां के चरित्र वन में विश्वामित्र मुनि के आश्रम के पास भगवान राम ने अपने हाथों से लिट्टी चोखा तैयार कर खाया और फिर यहां से मां सीता की खोज में निकल पड़े. तब से पंचकोशी यात्रा की यह परंपरा चली आ रही है

panchkoshi yatra in buxar
लिट्टी चोखा बनाती महिलाएं

लोग निभा रहे त्रेता युग चली आ रही परंपरा
यात्रा में आये श्रद्धालुओ ने बताया कि वह अपने घर से ही लिट्टी चोखा का सारा सामान लेकर यहां आते है, और प्रसाद तैयार कर खाते है. आज विश्व के हर कोने में जहां भी बक्सर और बिहारवासी होंगे, वहां आज लिट्टी चोखा जरूर बनाया जाएगा. त्रेता युग से चली आ रही परंपरा का निर्वहण लोग आज भी कर रहे है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

कार्तिक महीने से शुरू होती है पंचकोशी यात्रा की तैयारी
बता दें कि पंचकोशी यात्रा के लिए लोग कार्तिक महीने से ही तैयारियां शुरू कर देते हैं. अगहन के महीने में जैसे यह पंचकोशी यात्रा शुरू होती है लोग अपने घर से पांचों जगह के लिए यात्रा पर निकल जाते है.

बक्सर: विश्व प्रसिद्ध पंचकोशी यात्रा के अंतिम पड़ाव पर स्थानीय लोगों के साथ ही पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश, झारखंड से पहुंचे हजारों श्रद्धालुओं ने बक्सर स्थित चरित्र वन में लिट्टी चोखा का प्रसाद तैयार कर ग्रहण किया.

भगवान राम ने शुरु की पंचकोशी यात्रा
मान्यता है कि त्रेता युग में जब भगवान राम विश्वामित्र की इस पावन नगरी में पधारे थे, तो उन्होंने ताड़का, सुबाहु जैसे राक्षसों का वध करने के बाद, 5 कोस की यात्रा शुरू की थी. सबसे पहले भगवान राम ने अहिल्या की तपोभूमि अहिरौली में जाकर उनका उद्धार किया और वहां पूड़ी-पकवान का भोग लगाया. अपने दूसरे पड़ाव में राम ने नारद मुनि के आश्रम नदाव में खिचड़ी खाई.

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रामरेखा घाट पर स्नान करते श्रद्धालु

भगवान राम ने अपने हाथों से बनाया लिट्टी चोखा
तीसरे पड़ाव में भगवान राम भार्गव ऋषि के आश्रम भभुअर पहुंचे और दही चूड़ा खाया. अपने चौथे पड़ाव में वे उनवास पहुंचे जहां सत्तू मूली खाने के बाद इस पंचकोशी यात्रा के अंतिम पड़ाव में बक्सर पहुंचे. यहां के चरित्र वन में विश्वामित्र मुनि के आश्रम के पास भगवान राम ने अपने हाथों से लिट्टी चोखा तैयार कर खाया और फिर यहां से मां सीता की खोज में निकल पड़े. तब से पंचकोशी यात्रा की यह परंपरा चली आ रही है

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लिट्टी चोखा बनाती महिलाएं

लोग निभा रहे त्रेता युग चली आ रही परंपरा
यात्रा में आये श्रद्धालुओ ने बताया कि वह अपने घर से ही लिट्टी चोखा का सारा सामान लेकर यहां आते है, और प्रसाद तैयार कर खाते है. आज विश्व के हर कोने में जहां भी बक्सर और बिहारवासी होंगे, वहां आज लिट्टी चोखा जरूर बनाया जाएगा. त्रेता युग से चली आ रही परंपरा का निर्वहण लोग आज भी कर रहे है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

कार्तिक महीने से शुरू होती है पंचकोशी यात्रा की तैयारी
बता दें कि पंचकोशी यात्रा के लिए लोग कार्तिक महीने से ही तैयारियां शुरू कर देते हैं. अगहन के महीने में जैसे यह पंचकोशी यात्रा शुरू होती है लोग अपने घर से पांचों जगह के लिए यात्रा पर निकल जाते है.

Intro:विश्व परषिद पंचकोशी यात्रा के अंतिम दिन हजारो श्रद्धालुओ ने बक्सर चरित्र बन में अपने हाथों से तैयार किया लिटि चोखा का प्रसाद, बक्सर के हर घर मे आज लिटि बनाने की है,परम्परा।


Body:विश्व प्रसिद्ध पंचकोशी यात्रा के अंतिम पड़ाव में, बक्सर ही नहीं उत्तर प्रदेश ,झारखंड ,से पहुंचे हजारों श्रद्धालुओं ने बक्सर चरित्र वन में लिटी चोखा का प्रसाद अपने हाथों से तैयार कर ग्रहण किया, इस दौरान बक्सर में लिटी चोखा लगा रहे श्रद्धालुओं ने बताया कि, त्रेता युग में जब भगवान राम विश्वामित्र के इस पावन नगरी में पधारे थे, तो उन्होंने ताड़का, सुबाहु जैसे राक्षसों का वध करने के बाद, 5 कोस की यात्रा प्रारंभ की थी, जहां सबसे पहले भगवान राम अहिल्या की तपोभूमि अहिरौली में जाकर अहिल्या का उद्धार किया था, और वहां पर पूड़ी पकवान खाए थे, अपने दूसरे पड़ाव में नारद मुनि के आश्रम नदाव में खिचड़ी खा कर, तीसरे पड़ाव में भार्गव ऋषि आश्रम भभुअर में भगवान राम दही चूड़ा खाने के बाद ,अपने चौथे पड़ाव में उनवास पहुंचे ,जहां सत्तू मूली खाने के बाद, इस पंचकोशी यात्रा के अंतिम पड़ाव में भगवान राम बक्सर के चरित्र बन में विश्वामित्र मुनि के आश्रम के पास अपने हाथों से लिट्टी चोखा का प्रसाद तैयार कर खाया एवं यहां से प्रस्थान किया, तब से यह परंपरा चली आ रही है

byte वाकथ्रू

वही इस पंचकोशी यात्रा में आये श्रद्धालुओ ने बताया कि, वह अपने घर से ही लिटि चोखा के सारा सामान लेकर यहाँ आते है,और अपने हाथों से लिटि चोखा का प्रसाद तैयार कर खाते है,आज विश्व के हर कोने में जंहा भी बक्सर वासी एवं बिहारी होंगे वहां आज लिटि चोखा जरूर बनेगा सदियों से चली आ रही परम्परा की निर्वाहन आज भी हम लोग कर रहे है।

byte- श्रद्धालु


Conclusion:गौरतलब है कि पंचकोशी यात्रा को लेकर कार्तिक महीना से ही लोग तैयारियां करना शुरू कर देते है,और जैसे ही अगहन मास में यह पंचकोशी यात्रा शुरू होता है,लोग अपने घर से पांचों जगह के लिए परम्परानुसार समाग्री तैयार कर पंचकोशी यात्रा पर निकल जाते है।
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