बक्सर: लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान के तहत राज्य में गरीब लोगों को शौचालय बनाने के लिए प्रोत्साहन राशि दी जा रही है. ग्रामीण क्षेत्रों को खुले में शौच मुक्त बनाने के लिए यह मिशन केंद्र प्रायोजित स्वच्छ भारत के अंतर्गत चल रहा है.
स्वच्छ भारत मिशन एवं राज्य सम्पोषित लोहिया स्वच्छता योजना के तहत 2 अक्टूबर 2019 तक राज्य को खुले में शौच मुक्त करने का टारगेट रखा गया है. इसके लिए राज्य सरकार प्रोत्साहन राशि के रूप में 12 हजार रुपये देती है. इस मिशन के अन्तर्गत बक्सर जिला में लगभग 1 लाख 97 हजार 471 लोगों ने अपने घरों में शौचालय का निर्माण करवाया है. हालांकि बक्सर जिले में सरकार के इस योजना पर सरकारी अधिकारी ही ग्रहण लगा रहे हैं.
22 महीने के बाद भी नहीं मिला राशि
अधिकारियों की मनमानी का आलम यह है कि 22 महीना बीत जाने के बाद भी लोगों को उनका प्रोत्साहन राशि नहीं मिल पाया है. इस संबंध में जगदीशपुर पंचायत के मुखिया अनिल कुमार ने बताया कि पंचायत में अब तक 6 हजार शौचालय का निर्माण कराया जा चुका है. आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को शौचालय निर्माण के लिए उन्हें अपनी गारंटी पर दुकान से सामग्री उधार में दिलवाया. लेकिन अब तक पंचायत के मात्र 50 लोगों को ही प्रोत्साहन राशि दिया गया है. अधिकारियों के तरफ से की गई गड़बड़डी तब उजागर हुई जब 20 लोगों को दो बार योजना का लाभ दे दिया गया. अब अधिकारी अपनी नाकामी छुपाने के लिए जनप्रतिनिधियों पर रिकवरी के लिए दबाब बनाने में लगे हैं. जबकि यह गलती उनकी है.
मुखिया जी से मिलता है सिर्फ आश्वासन
शौचालय निर्माण कर प्रोत्साहन राशि से वंचित गुड्डू कुमार ने बताया कि उसने तीन साल पहले शौचालय का निर्माण करवाया था. लेकिन अब तक एक पैसा नहीं मिला. जब भी पैसे के लिए मुखिया जी से पूछते हैं तो केवल आश्वासन देकर वापस भेज देते है.
डीडीसी ने मानी लापरवाही
इस पूरे मामले पर डीडीसी बक्सर ने प्रखण्ड विकास पदाधिकारी के स्तर पर मामले में लापरवाही बरतने की बात स्वीकार की है. उन्होंने कहा कि अगर जल्द ही लाभुक को उनकी प्रोत्साहन राशि नहीं दी गई तो अब कार्रवाई होनी तय है.
88 प्रतिशत लोग लाभ से वंचित
गौरतलब है कि सरकार के सख्त निर्देश के बाद भी प्रखण्ड विकास पदाधिकारियों की मनमानी रुकने का नाम नहीं ले रहा है. जिसके कारण अब तक जिला में शौचालय निर्माण करने वाले मात्र 12 प्रतिशत लोगों का ही भुगतान किया गया है. जबकि 88 प्रतिशत लोग अभी भी सरकारी कार्यालय के चक्कर लगाने के लिए मजबूर हैं.