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बक्सरः लॉकडाउन के कारण भुखमरी के कगार पर छोटे व्यवसायी, रोजगार पर लगा ग्रहण - DDC Arvind Kumar

फुटपाथ पर रोजगार करने वाली फुलमतिया देवी ने बताया कि हमारी कई पीढ़ियां इसी व्यवसाय से अच्छी आमदनी कर, अपना जीवन यापन करती थी. साथ ही बेटा-बेटियों की शादी विवाह भी करते थे. लेकिन इस लॉकडाउन ने तो हमारे रोजगार पर ऐसा ग्रहण लगाया की सामानों की बिक्री ही नहीं हो रही है.

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Published : Jun 16, 2020, 1:22 PM IST

बक्सरः कोरोना वैश्विक आपदा के कारण बेपटरी हुई जिंदगी को पटरी पर लाने की हर कोशिश अभी नाकाम दिख रही है. एक जून से सभी दुकानों को खोलने की छूट मिलने के बाद यह कयास लगाई जा रही थी कि हालात धीरे-धीरे सामान्य ही जाएंगी. लेकिन परेशानियां कम होती नहीं दिखाई दे रही हैं.

नहीं हो रही सामानों की बिक्री
नगर थाना क्षेत्र के सिंडिकेट गोलंबर, रामरेखा घाट दलित बस्ती, शांति नगर, किला मैदान, पिपरपाती रोड समेत दर्जनों इलाकों में फुटपाथ और झोपड़पट्टी में रहने वाले लोग, बांस के बना पंखा, सुप, दउरा और डालियों को बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण करते थे. लेकिन कोरोना के डर से अभी ग्रामीण इलाके के लोग शहर में नहीं जा रहे हैं. जिसके कारण उनके सामानों की बिक्री नहीं हो रही हैं.

देखें पूरी रिपोर्ट

क्या कहते हैं लोग
वहीं, फुटपाथ पर रोजगार करने वाली फुलमतिया देवी ने बताया कि हमारी कई पीढ़ियां इसी व्यवासय से अच्छी आमदनी कर, अपना जीवन यापन करती थी. साथ ही बेटा-बेटियों की शादी विवाह भी करते थे. लेकिन इस लॉकडाउन ने तो हमारे रोजगार पर ऐसा ग्रहण लगाया कि सामानों की बिक्री ही नहीं हो रही है. जिससे कर्ज लेकर रोजगार शुरू किए हैं. वह अपना कर्ज वापस मांग रहा है. हम कहां से दें?

क्या कहते हैं अधिकारी
वहीं, डीडीसी अरविंद कुमार ने बताया कि कोरोना वैश्विक आपदा को लेकर उत्पन्न हुई स्थिति को सामान्य करने के लिए जिला प्रशासन प्रयासरत है. सभी जरूरतमन्दों को राशन उपलब्ध कराने के साथ ही मनरेगा के तहत रोजगार भी दिया जा रहा है. जिससे लोगों की परेशानियां कम हो सके.

वहीं, इस लॉकडाउन के बाद महंगाई भी अपने चरम सीमा को पार करने लगी है. सड़क किनारे बांस के बने सामान को तैयार कर बेचने वाली रीता देवी ने बताया कि जो बांस लॉकडाउन से पहले 100 रुपये में मिलता था. उसकी कीमत 300 रुपये हो गयी है. किसी तरह सामान तैयार कर रहे हैं. लेकिन कोई खरीदने नहीं आ रहा है.

बक्सरः कोरोना वैश्विक आपदा के कारण बेपटरी हुई जिंदगी को पटरी पर लाने की हर कोशिश अभी नाकाम दिख रही है. एक जून से सभी दुकानों को खोलने की छूट मिलने के बाद यह कयास लगाई जा रही थी कि हालात धीरे-धीरे सामान्य ही जाएंगी. लेकिन परेशानियां कम होती नहीं दिखाई दे रही हैं.

नहीं हो रही सामानों की बिक्री
नगर थाना क्षेत्र के सिंडिकेट गोलंबर, रामरेखा घाट दलित बस्ती, शांति नगर, किला मैदान, पिपरपाती रोड समेत दर्जनों इलाकों में फुटपाथ और झोपड़पट्टी में रहने वाले लोग, बांस के बना पंखा, सुप, दउरा और डालियों को बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण करते थे. लेकिन कोरोना के डर से अभी ग्रामीण इलाके के लोग शहर में नहीं जा रहे हैं. जिसके कारण उनके सामानों की बिक्री नहीं हो रही हैं.

देखें पूरी रिपोर्ट

क्या कहते हैं लोग
वहीं, फुटपाथ पर रोजगार करने वाली फुलमतिया देवी ने बताया कि हमारी कई पीढ़ियां इसी व्यवासय से अच्छी आमदनी कर, अपना जीवन यापन करती थी. साथ ही बेटा-बेटियों की शादी विवाह भी करते थे. लेकिन इस लॉकडाउन ने तो हमारे रोजगार पर ऐसा ग्रहण लगाया कि सामानों की बिक्री ही नहीं हो रही है. जिससे कर्ज लेकर रोजगार शुरू किए हैं. वह अपना कर्ज वापस मांग रहा है. हम कहां से दें?

क्या कहते हैं अधिकारी
वहीं, डीडीसी अरविंद कुमार ने बताया कि कोरोना वैश्विक आपदा को लेकर उत्पन्न हुई स्थिति को सामान्य करने के लिए जिला प्रशासन प्रयासरत है. सभी जरूरतमन्दों को राशन उपलब्ध कराने के साथ ही मनरेगा के तहत रोजगार भी दिया जा रहा है. जिससे लोगों की परेशानियां कम हो सके.

वहीं, इस लॉकडाउन के बाद महंगाई भी अपने चरम सीमा को पार करने लगी है. सड़क किनारे बांस के बने सामान को तैयार कर बेचने वाली रीता देवी ने बताया कि जो बांस लॉकडाउन से पहले 100 रुपये में मिलता था. उसकी कीमत 300 रुपये हो गयी है. किसी तरह सामान तैयार कर रहे हैं. लेकिन कोई खरीदने नहीं आ रहा है.

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