बक्सर: भारत कृषि प्रधान देश है. यहां की 71% आबादी कृषि पर निर्भर है. उसके बाद भी किसानों का हाल सबसे बदहाल है. आजादी के 74 साल बाद भी अन्नदाताओं को आज भी सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए, कृषि कार्यालय के कर्मचारियों का मोहताज रहना पड़ता है. जहां कुर्सी पर बैठे छोटे साहब से लेकर, बड़े साहब किसानों से गुलामों की तरह व्यवहार करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते हैं. यही कारण है कि जिले के अधिकांश किसान कृषि कार्य छोड़कर शहरों में रोजगार की तलाश करने के लिए पलायन कर रहे हैं
दरअसल, प्रदेश के कृषि मंत्री अमरेंद्र प्रताप सिंह ( Agriculture Minister Amarendra Pratap Singh ) के गृह जिले बक्सर में धड़ल्ले से उर्वरक की कालाबाजारी ( Fertilizer Black Marketing ) का खेल जारी है. 1200 रुपये का डीएपी 1900 रुपये में किसानों को दुकानदारों के द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा है. जिसके कारण अधिकांश किसान बिहार से उत्तर प्रदेश में जाकर उरवर्क ला रहे हैं. उसके बाद भी अधिकारियों ने चुप्पी साध रखी है. यही कारण है कि आज भी जिले के किसान खुद को गुलाम महसूस कर रहे हैं. जहां उरवर्क से लेकर, सरकार की प्रत्येक योजनाओं का लाभ लेने के लिए अन्नदाताओं को अधिकारियों के दया का मोहताज रहना पड़ता है.
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उर्वरक की कालाबाजारी एवं किसानों की परेशानी ( Bihar Me Khad ki Samasya ) को लेकर ईटीवी भारत की टीम जिला कृषि पदाधिकारी मनोज कुमार से मिलने कृषि कार्यालय पहुंची. जिला कृषि पदाधिकारी के द्वारा ऑफ द रिकॉर्ड कई जानकारियां साझा की गई. हालांकि इस दौरान उन्होंने कहा कि जब तक जिला अधिकारी के द्वारा मुझे बोलने के लिए नहीं कहा जाएगा, तब तक कोई भी जानकारी में शेयर नहीं कर सकता हूं. उन्होंने कहा कि मेरे द्वारा यह प्रयास किया जा रहा है कि जल्द से जल्द सरकार जिले में उर्वरक उपलब्ध कराएं. जिससे किसानों को राहत मिले.
बता दें कि जिले के 2 लाख 9 हजार किसानों के द्वारा 1 लाख 6 हजार हेक्टेयर भूमि पर रबी फसल बुवाई करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.
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उर्वरक की कमी के कारण जिले के किसानों के द्वारा अब तक मात्र 7-8 प्रतिशत भूमि पर ही रवि फसल की बुवाई की गई है. किसानों एवं कृषि वैज्ञानिकों की माने तो 15 नवंबर से 25 नवंबर तक रबी फसल बुवाई के लिए सबसे उत्तम माना जाता है. लेकिन दिसंबर माह के पहले सप्ताह खत्म होने के बाद भी सरकार एवं जिला प्रशासन के अधिकारी, किसानों को उर्वरक उपलब्ध कराने में नाकाम है.
यही कारण है कि पूरे जिले में उर्वरकों को लेकर हाहाकार मचा हुआ है. किसान रात्रि में 2 बजे से ही उरवर्क दुकानों के सामने लाइन में लगकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं और अधिकारी कागजों पर ही सब कुछ बेहतर होने का दावा कर रहे हैं, लेकिन इन आंकड़ों को देखकर कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि जरूरत के अनुपात में जिले को कितना उर्वरक उपलब्ध कराया गया है और कालाबाजारी कराने के पीछे किसका हाथ है.
डीएपी की कालाबाजारी को देखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ मांधाता सिंह ने किसानों से अपील करते हुए कहा कि डीएपी को छोड़कर, यूरिया, फास्फेट, पोटाश का मिक्चर कर किसान खेतों में रवि फसल की बुवाई शुरू कर दें. समय से जिस फसल की बुवाई हो जाएगी, उस फसल की उपज भी अच्छी होगी. डीएपी के इंतजार में फसल पिछड़ जाएगी तो किसानों को आगे चलकर कई परेशानियो का सामना करना पड़ेगा.
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वहीं, जिले के किसानों ने अपनी समस्याओं को बताते हुए बताया कि उर्वरक दुकानदार 1200 के डीएपी 1900 में उपलब्ध करा रहे हैं, जो किसान अधिक पैसे की भुगतान नहीं कर रहे हैं, उनको उरवर्क नही दिया जा रहा है.
'उत्तरप्रदेश के बलिया, गाजीपुर, भरौली का हम लोग चक्कर लगा रहे हैं, और वहां से उर्वरक लाने के लिए बॉर्डर पर तैनात सुरक्षकर्मियों को नजराना भी देना पड़ता है.'- किसान
इधर, किसानों की परेशानी और यूरिया की कालाबाजारी को लेकर कांग्रेस के नेता पूरी तरह से मुखर हो गए हैं. कांग्रेस जिला अध्यक्ष तथागत हर्षवर्धन ने कहा कि उत्तरप्रदेश और पंजाब में चुनावी लाभ लेने के लिए केंद्र की सरकार बिहार के उर्वरक कोटे में कटौती कर दोनों प्रदेश में दे दी है. यदि अधिकारी उर्वरक की कालाबाजारी रोकने के साथ ही किसानों को उर्वरक उपलब्ध नहीं कराएंगे तो कांग्रेस के एक-एक कार्यकर्ता सड़क पर उतरकर किसानों के हक के लिए आंदोलन करेंगे.
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गौरतलब है कि पूरे जिले में उर्वरक के लिए हाहाकार मचा हुआ है. उर्वरक की किल्लत को देखते हुए, विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से डीलरों एवं उर्वरक विक्रेताओं के द्वारा मनमाने दाम पर डीएपी की बिक्री की जा रही है. जिसके कारण किसान परेशान हैं.
हैरानी की बात है कि रवि फसल बुवाई नहीं होने से परेशान किसान की समस्याओं को दूर करने के बजाए, अधिकारी मौन साधे हुए हैं और किसान उत्तरप्रदेश से बिहार और बिहार से उत्तर प्रदेश की चक्कर लगाने के बाद अपने भाग्य को कोसने में लगे हुए हैं.
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