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बक्सर: 6 माह से अधिक उम्र के शिशुओं का किया गया अन्नप्राशन

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Published : Jan 19, 2021, 8:52 PM IST

बक्सर के आंगनबाड़ी केन्द्रों पर अन्नप्राशन दिवस का आयोजन हुआ. इस दौरान 6 माह से ऊपर के शिशुओं को खीर खिलाया गया. माताओं को भी पूरक पोषाहार और सफाई के बारे में जानकारी दी गई.

Buxar Babies
बक्सर अन्नप्राशन

बक्सर: कुपोषण पर लगाम लगाने के लिए सरकार द्वारा कई कदम उठाए जा रहे हैं. सभी को पोषित करने और पोषण का संदेश घर-घर तक पहुंचाने के लिए जनवरी माह को पोषण माह के रूप में मनाया जाता है. इसी क्रम में मंगलवार को जिले के आंगनबाड़ी केन्द्रों पर 6 माह से ऊपर के शिशुओं का अन्नप्राशन किया गया. शिशुओं को खीर खिलाकर इसकी शुरुआत की गई. माताओं को भी पूरक पोषाहार और सफाई के बारे में जानकारी दी गई.

स्तनपान के साथ पूरक पोषाहार जरूरी
जिला कार्यक्रम पदाधिकारी तरणी कुमारी ने बताया "बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए 6 माह तक सिर्फ स्तनपान और इसके बाद स्तनपान के साथ पूरक पोषाहार बहुत जरूरी है. पूरक आहार शिशु के आने वाले जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. 6 माह से 23 माह तक के बच्चों के लिए यह अति आवश्यक है. 6 से 8 माह के बच्चों को दिन भर में 2 से 3 बार और 9 से 11 माह के बच्चों को 3 से 4 बार पूरक आहार देना चाहिए. 12 माह से 2 साल तक के बच्चों को घर में पकने वाला भोजन भी देना चाहिए. इस दौरान शरीर और दिमाग का विकास तेजी से होना शुरू होता है, जिसके लिए स्तनपान के साथ ऊपरी आहार की भी जरूरत होती है."

डुमरांव प्रखंड के आंगनबाड़ी केंद्र संख्या 14 की सेविका संगीता कुमारी ने बताया कि सभी बच्चों के माताओं को पूरक आहार के महत्त्व के बारे में जानकारी दी गई. उन्हें बताया गया कि घर में उपलब्ध सामग्रियों से ही शिशु को पूरी तरह पोषित रखा जा सकता है.

यह भी पढ़ें- 4 माह से पोषण पुनर्वास केंद्र पर लटका है ताला, बच्चों को निजी अस्पताल ले जाने को मजबूर हैं लोग

ऐसे दें बच्चों को पूरक आहार
6 माह से 8 माह के बच्चों के लिए नरम दाल, दलिया, दाल-चावल, दाल में रोटी मसलकर अर्ध ठोस (चम्मच से गिराने पर सरके, बहे नहीं), खूब मसले साग और फल प्रतिदिन दो बार 2 से 3 भरे हुए चम्मच देना चाहिए. ऐसे ही 9 माह से 11 माह तक के बच्चों को प्रतिदिन 3 से 4 बार और 12 माह से 2 वर्ष की अवधि में घर पर पका पूरा खाना और धुले व कटे फल प्रतिदिन भोजन व नास्ते में देना चाहिए.

पूरक पोषाहार है जरूरी
समेकित बाल विकास योजना के अंतर्गत 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों के बेहतर पोषण के लिए पोषाहार वितरित किया जाता है. पूरक पोषाहार के विषय में सामुदायिक जागरूकता के आभाव में बच्चे कुपोषण का शिकार होते हैं. इससे बच्चे की शारीरिक विकास के साथ मानसिक विकास भी अवरुद्ध होती है.

यह भी पढ़ें- बक्सर: कोरोना टीकाकरण अभियान में महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर लिया हिस्सा

बक्सर: कुपोषण पर लगाम लगाने के लिए सरकार द्वारा कई कदम उठाए जा रहे हैं. सभी को पोषित करने और पोषण का संदेश घर-घर तक पहुंचाने के लिए जनवरी माह को पोषण माह के रूप में मनाया जाता है. इसी क्रम में मंगलवार को जिले के आंगनबाड़ी केन्द्रों पर 6 माह से ऊपर के शिशुओं का अन्नप्राशन किया गया. शिशुओं को खीर खिलाकर इसकी शुरुआत की गई. माताओं को भी पूरक पोषाहार और सफाई के बारे में जानकारी दी गई.

स्तनपान के साथ पूरक पोषाहार जरूरी
जिला कार्यक्रम पदाधिकारी तरणी कुमारी ने बताया "बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए 6 माह तक सिर्फ स्तनपान और इसके बाद स्तनपान के साथ पूरक पोषाहार बहुत जरूरी है. पूरक आहार शिशु के आने वाले जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. 6 माह से 23 माह तक के बच्चों के लिए यह अति आवश्यक है. 6 से 8 माह के बच्चों को दिन भर में 2 से 3 बार और 9 से 11 माह के बच्चों को 3 से 4 बार पूरक आहार देना चाहिए. 12 माह से 2 साल तक के बच्चों को घर में पकने वाला भोजन भी देना चाहिए. इस दौरान शरीर और दिमाग का विकास तेजी से होना शुरू होता है, जिसके लिए स्तनपान के साथ ऊपरी आहार की भी जरूरत होती है."

डुमरांव प्रखंड के आंगनबाड़ी केंद्र संख्या 14 की सेविका संगीता कुमारी ने बताया कि सभी बच्चों के माताओं को पूरक आहार के महत्त्व के बारे में जानकारी दी गई. उन्हें बताया गया कि घर में उपलब्ध सामग्रियों से ही शिशु को पूरी तरह पोषित रखा जा सकता है.

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ऐसे दें बच्चों को पूरक आहार
6 माह से 8 माह के बच्चों के लिए नरम दाल, दलिया, दाल-चावल, दाल में रोटी मसलकर अर्ध ठोस (चम्मच से गिराने पर सरके, बहे नहीं), खूब मसले साग और फल प्रतिदिन दो बार 2 से 3 भरे हुए चम्मच देना चाहिए. ऐसे ही 9 माह से 11 माह तक के बच्चों को प्रतिदिन 3 से 4 बार और 12 माह से 2 वर्ष की अवधि में घर पर पका पूरा खाना और धुले व कटे फल प्रतिदिन भोजन व नास्ते में देना चाहिए.

पूरक पोषाहार है जरूरी
समेकित बाल विकास योजना के अंतर्गत 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों के बेहतर पोषण के लिए पोषाहार वितरित किया जाता है. पूरक पोषाहार के विषय में सामुदायिक जागरूकता के आभाव में बच्चे कुपोषण का शिकार होते हैं. इससे बच्चे की शारीरिक विकास के साथ मानसिक विकास भी अवरुद्ध होती है.

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