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जिस मगही पान की दुनिया भर में है पहचान, लॉकडाउन के कारण उसके उत्पादक हैं परेशान - Pan producers upset due to lock down

दुनिया में पान की अनेक किस्म हैं. जिनमें सबसे प्रमुख और महंगी किस्म मगही पान की है. इसके रखरखाव में भी काफी मेहनत और लागत आती है. लॉकडाउन के कारण अब इसके उत्पादकों को लागत तक निकाल पाना मुश्किल हो रहा है.

मगही पान
मगही पान
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Published : May 30, 2020, 6:21 PM IST

औरंगाबादः जिले के देव प्रखंड में पान के पत्तों में सबसे महंगे मगही पान की खेती होती है. जिसकी कीमत हमेशा से ज्यादा रही है. यह पान दुनिया भर में मगध क्षेत्र की अलग पहचान बताता है. लेकिन इस बार मगही पान बेमौसम बरसात और लॉकडाउन के कारण बर्बाद हो रहा है.

लॉकडाउन में पान की बिक्री बिल्कुल नहीं हो रही है. जिसकी वजह से इसकी खेती करने वाले किसानों के सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो गई हैं. अब तो घरों में भुखमरी की नौबत तक आ गई है.

कोविड-19 महामारी को रोकने के लिए लगे लॉकडाउन में पान की बिक्री बिल्कुल रुक गई. पहले तो बारिश और आंधी की मार उस पर से लॉकडाउन के कारण पान के पत्ते खेतों में सूख गए. लॉकडाउन में शादी ब्याह और धार्मिक कामों पर रोक के कारण पान के खरीदार नहीं मिले. पान की दुकानें भी पूरी तरह बंद पड़ी हैं. जिस कारण चौरसिया समाज आज बर्बादी की कगार पर पहुंच गया है.

खेतों में बर्बाद पड़े पान
खेतों में बर्बाद पड़े पान

पानों में सबसे महंगा होता है मगही पान
पूरी दुनिया में मगही पान सबसे ज्यादा महंगा बिकता है. पान की जितनी भी क़िस्में हैं उनमें मगही पान सबसे ऊपर आते है. इस पान के पत्ते में फ्रेशनेस इस कदर ज्यादा है कि इसकी कीमत अन्य पानों के मुकाबले दोगुना होती है. इस पान की खेती हर मिट्टी में नहीं होती. इसलिए इसको सिर्फ मगध के क्षेत्र में ही उगाया जाता है. जहां की मिट्टी में यह पान काफी मात्रा में उपजता है.

खेतों में लगा पान
खेतों में लगा पान

सनातन परंपरा में पान का एक खास महत्व
पान की पत्ती को सनातन परंपरा में एक खास स्थान हासिल है. इंसान के जन्म से लेकर मृत्यु तक के संस्कार में पान की जरूरत पड़ती है. बगैर पान के शादी विवाह से लेकर के कई दूसरी रस्में नहीं हो सकती. यहां तक कि कोई भी पूजा पाठ चाहे छठ पूजा, दुर्गा पूजा, गणपति हो या फिर कोई अन्य पूजा, बगैर पान के अधूरी रहती है. आयुर्वेद में भी इसका उपयोग होता है. इसका इस्तेमाल कई तरह की बीमारियों जैसे मुख का दुर्गंध, खांसी और गले की समस्या, घाव और कई अन्य बीमारियों में होता है. भारत के प्राचीन और धार्मिक पुस्तकों में भी पान का जिक्र है.

पान के खेत में पानी डालता किसान
पान के खेत में पानी डालता किसान

देश के बाहर भी है मगही पान की मांग
पानों की कई किस्में हैं. जिनमें प्रमुख वैरायटी मगही पान की है. मगही पान का पत्ता अन्य पानों की अपेक्षा छोटा होता है. जिसका रंग गहरा होता है. मगही पान की महत्ता हिंदुस्तान की सरहद से बाहर निकल कर अन्य देशों तक फैली हुई है. इस पान की सबसे ज्यादा बिक्री पश्चिम बंगाल और बनारस में होती है. देश के बाहर भी मगही पान की खूब मांग है. लेकिन इसका उत्पादन मगध के क्षेत्र में ही होता है. इसीलिए इसका नाम मगही पड़ा है. इसके अलावे देश में बंग्ला, सांची, देशावरी, कपूरी और मीठी पत्ती आदि प्रमुख किस्में हैं. पान के पत्ते में फास्फोरस, पोटेशियम, कैलशियम, मैग्निशियम, कॉपर, जिंक, शुगर, काइनेटिक कंपाउंड आदि प्रमुख रूप से पाये जाते हैं. इसमें विटामिन ए, बी, सी भी प्रमुख रूप से पाए जाते हैं.

मगही पान की देखरेख करती कृषक
मगही पान की देखरेख करती कृषक

देव में होती है मगही पान की खेती
औरंगाबाद जिले के देव प्रखंड में पान की खेती होती है. जहां सैकड़ों सालों से इसकी परंपरागत खेती चौरसिया समाज कर रहा है. चौरसिया समाज पीढ़ी दर पीढ़ी इसकी खेती करता आ रहा है. लेकिन इस साल के आंधी तूफान और बारिश के कारण तो काफी फसलें बर्बाद हुई और उसके बाद कोरोना का कहर शुरू हो गया. जिसके बाद लगे लॉकडाउन में इसका व्यपार पूरी तरह चौपट हो गया. राज्य और देश के बाहर जाने वाले पान बाहर जाना बंद हो गए.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

पान की खेती में ज्यादा होती है लागत
मगही पान की खेती करने में एक किसान को 10 कट्ठा की जमीन पर लगभग 2 लाख रुपये तक की लागत आती है. पैन की खेती में प्रति 10 कट्ठा मजदूरी समेत 2 लाख का खर्च है. अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा और बाजार में तेजी रही तो एक साल में इतना ही मुनाफा भी आ जाता है. लेकिन इस बार उनकी पूरी जमा पूंजी खत्म हो गई है.

स्थानीय लोगों ने की मुआवजे की मांग
स्थानीय जिला परिषद सदस्य रविंद्र कुमार पासवान ने बताया कि वे इन किसानों के लिए जिला प्रशासन और कृषि विभाग से मुआवजे की मांग करते हैं, साथ ही जिला परिषद की बैठक में भी इस मुद्दे को उठाएंगे. उन्होंने कहा कि पान ना सिर्फ परंपरागत खेती है बल्कि धार्मिक आयोजन में भी बहुत जरूरी सामग्री है. ऐसे में इन किसानों को हर वर्ष सब्सिडी उपलब्ध कराई जाए और इनके बर्बाद हुई फसलों का मुआवजा दिया जाए. सनातन संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले पान की खेती को बढ़ावा देना चहिए.

ये भी पढ़ेंः अंग्रेजों के खून से सनी नवाब सिराजुद्दौला की तलवार बेगूसराय के इस गांव में है सुरक्षित

कैसे होती है पान की खेती
खेत में पान की खेती करने के लिए खेत में बहुत बड़ा झोपड़ी जैसा मचान बनाया जाता है, जिससे पूरा खेत ढका रहता है. जिसे घेरान कहते हैं. इसे पुरी तरह से बांस और सरकंडा से गूंथा जाता है. यह सरकंडा वैशाली जिले से लाया जाता है. ऊपर से भी छप्पर जैसा बनाया जाता है, जिससे कि धूप को रोका जा सके और हवा भी अंदर जा सके. जिसे बनाने में एक महीना का समय लगता है. मगही पान के पौधों को हर दिन दोपहर को सिंचाई की जाती है. जिससे कि पत्ते में ताजगी बनी रहे और जड़ के पास नए पत्ते और कली निकलती रहे । यही नई कलियां निकलने के क्रम में पत्तों का विकास होता है और नए नए पत्ते आते हैं जिन्हें बाजार में पहुंचाया जाता है.

औरंगाबादः जिले के देव प्रखंड में पान के पत्तों में सबसे महंगे मगही पान की खेती होती है. जिसकी कीमत हमेशा से ज्यादा रही है. यह पान दुनिया भर में मगध क्षेत्र की अलग पहचान बताता है. लेकिन इस बार मगही पान बेमौसम बरसात और लॉकडाउन के कारण बर्बाद हो रहा है.

लॉकडाउन में पान की बिक्री बिल्कुल नहीं हो रही है. जिसकी वजह से इसकी खेती करने वाले किसानों के सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो गई हैं. अब तो घरों में भुखमरी की नौबत तक आ गई है.

कोविड-19 महामारी को रोकने के लिए लगे लॉकडाउन में पान की बिक्री बिल्कुल रुक गई. पहले तो बारिश और आंधी की मार उस पर से लॉकडाउन के कारण पान के पत्ते खेतों में सूख गए. लॉकडाउन में शादी ब्याह और धार्मिक कामों पर रोक के कारण पान के खरीदार नहीं मिले. पान की दुकानें भी पूरी तरह बंद पड़ी हैं. जिस कारण चौरसिया समाज आज बर्बादी की कगार पर पहुंच गया है.

खेतों में बर्बाद पड़े पान
खेतों में बर्बाद पड़े पान

पानों में सबसे महंगा होता है मगही पान
पूरी दुनिया में मगही पान सबसे ज्यादा महंगा बिकता है. पान की जितनी भी क़िस्में हैं उनमें मगही पान सबसे ऊपर आते है. इस पान के पत्ते में फ्रेशनेस इस कदर ज्यादा है कि इसकी कीमत अन्य पानों के मुकाबले दोगुना होती है. इस पान की खेती हर मिट्टी में नहीं होती. इसलिए इसको सिर्फ मगध के क्षेत्र में ही उगाया जाता है. जहां की मिट्टी में यह पान काफी मात्रा में उपजता है.

खेतों में लगा पान
खेतों में लगा पान

सनातन परंपरा में पान का एक खास महत्व
पान की पत्ती को सनातन परंपरा में एक खास स्थान हासिल है. इंसान के जन्म से लेकर मृत्यु तक के संस्कार में पान की जरूरत पड़ती है. बगैर पान के शादी विवाह से लेकर के कई दूसरी रस्में नहीं हो सकती. यहां तक कि कोई भी पूजा पाठ चाहे छठ पूजा, दुर्गा पूजा, गणपति हो या फिर कोई अन्य पूजा, बगैर पान के अधूरी रहती है. आयुर्वेद में भी इसका उपयोग होता है. इसका इस्तेमाल कई तरह की बीमारियों जैसे मुख का दुर्गंध, खांसी और गले की समस्या, घाव और कई अन्य बीमारियों में होता है. भारत के प्राचीन और धार्मिक पुस्तकों में भी पान का जिक्र है.

पान के खेत में पानी डालता किसान
पान के खेत में पानी डालता किसान

देश के बाहर भी है मगही पान की मांग
पानों की कई किस्में हैं. जिनमें प्रमुख वैरायटी मगही पान की है. मगही पान का पत्ता अन्य पानों की अपेक्षा छोटा होता है. जिसका रंग गहरा होता है. मगही पान की महत्ता हिंदुस्तान की सरहद से बाहर निकल कर अन्य देशों तक फैली हुई है. इस पान की सबसे ज्यादा बिक्री पश्चिम बंगाल और बनारस में होती है. देश के बाहर भी मगही पान की खूब मांग है. लेकिन इसका उत्पादन मगध के क्षेत्र में ही होता है. इसीलिए इसका नाम मगही पड़ा है. इसके अलावे देश में बंग्ला, सांची, देशावरी, कपूरी और मीठी पत्ती आदि प्रमुख किस्में हैं. पान के पत्ते में फास्फोरस, पोटेशियम, कैलशियम, मैग्निशियम, कॉपर, जिंक, शुगर, काइनेटिक कंपाउंड आदि प्रमुख रूप से पाये जाते हैं. इसमें विटामिन ए, बी, सी भी प्रमुख रूप से पाए जाते हैं.

मगही पान की देखरेख करती कृषक
मगही पान की देखरेख करती कृषक

देव में होती है मगही पान की खेती
औरंगाबाद जिले के देव प्रखंड में पान की खेती होती है. जहां सैकड़ों सालों से इसकी परंपरागत खेती चौरसिया समाज कर रहा है. चौरसिया समाज पीढ़ी दर पीढ़ी इसकी खेती करता आ रहा है. लेकिन इस साल के आंधी तूफान और बारिश के कारण तो काफी फसलें बर्बाद हुई और उसके बाद कोरोना का कहर शुरू हो गया. जिसके बाद लगे लॉकडाउन में इसका व्यपार पूरी तरह चौपट हो गया. राज्य और देश के बाहर जाने वाले पान बाहर जाना बंद हो गए.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

पान की खेती में ज्यादा होती है लागत
मगही पान की खेती करने में एक किसान को 10 कट्ठा की जमीन पर लगभग 2 लाख रुपये तक की लागत आती है. पैन की खेती में प्रति 10 कट्ठा मजदूरी समेत 2 लाख का खर्च है. अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा और बाजार में तेजी रही तो एक साल में इतना ही मुनाफा भी आ जाता है. लेकिन इस बार उनकी पूरी जमा पूंजी खत्म हो गई है.

स्थानीय लोगों ने की मुआवजे की मांग
स्थानीय जिला परिषद सदस्य रविंद्र कुमार पासवान ने बताया कि वे इन किसानों के लिए जिला प्रशासन और कृषि विभाग से मुआवजे की मांग करते हैं, साथ ही जिला परिषद की बैठक में भी इस मुद्दे को उठाएंगे. उन्होंने कहा कि पान ना सिर्फ परंपरागत खेती है बल्कि धार्मिक आयोजन में भी बहुत जरूरी सामग्री है. ऐसे में इन किसानों को हर वर्ष सब्सिडी उपलब्ध कराई जाए और इनके बर्बाद हुई फसलों का मुआवजा दिया जाए. सनातन संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले पान की खेती को बढ़ावा देना चहिए.

ये भी पढ़ेंः अंग्रेजों के खून से सनी नवाब सिराजुद्दौला की तलवार बेगूसराय के इस गांव में है सुरक्षित

कैसे होती है पान की खेती
खेत में पान की खेती करने के लिए खेत में बहुत बड़ा झोपड़ी जैसा मचान बनाया जाता है, जिससे पूरा खेत ढका रहता है. जिसे घेरान कहते हैं. इसे पुरी तरह से बांस और सरकंडा से गूंथा जाता है. यह सरकंडा वैशाली जिले से लाया जाता है. ऊपर से भी छप्पर जैसा बनाया जाता है, जिससे कि धूप को रोका जा सके और हवा भी अंदर जा सके. जिसे बनाने में एक महीना का समय लगता है. मगही पान के पौधों को हर दिन दोपहर को सिंचाई की जाती है. जिससे कि पत्ते में ताजगी बनी रहे और जड़ के पास नए पत्ते और कली निकलती रहे । यही नई कलियां निकलने के क्रम में पत्तों का विकास होता है और नए नए पत्ते आते हैं जिन्हें बाजार में पहुंचाया जाता है.

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