औरंगाबादा : बिहार के औरंगाबाद में जहरीली शराब से मौत (Poisonous liquor case in Aurangabad)मामले में शनिवार से लेकर बुधवार तक 20 लोगों की संदिग्ध मौत की खबर (Death due to poisonous liquor in Aurangabad) है. इस मामले में स्थानीय ग्रामीण और नेताओं ने बताया है कि शराब के सेवन से इलाके में 20 लोगों की जान जा चुकी है. परिजनों ने भी शराब पीने की बात बताई है. 3 लोगों का इलाज चल रहा है. उन लोगों ने भी जहरीली शराब पीने के बाद हालत गंभीर होने की बात कही है.
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मृतक का नाम पता
- कृष्णा राम, रानीगंज
- संजय राम, अमेरिकल कॉलोनी, फुसरो झारखंड
- पिंटू चंद्रवंशी, सिंदुआर
- रामजी यादव, जोगिरा, सलैया थाना
- दिलकेश्वर महतो, पड़रिया
- सुरेश सिंह, अररुआ
- रवीन्द्र सिंह, बेरी
- राहुल मिश्रा, बेरी
- संतोष साव, सलैया
- बबलू ठाकुर, खिरियावां
- प्रमोद कुमार, खिरियांवा
- शिव साव, खिरियांवा
- विनय कुमार गुप्ता, खिरियांवा
- अनिल शर्मा, पवई, देव प्रखंड
- मनोज यादव, कटैया.
इस मामले में औरंगाबाद जिलाधिकारी सौरभ जोरवाल का कहना है कि शराब के सेवन से मात्र पांच की ही मौत हुई (Bihar Poisonous Liquor Case) है. शेष की मौत दूसरे कारणों से हुई है. मामले को लेकर इलाके के ग्रामीण बेहद आक्रोशित हैं. ग्रामीणों का आरोप है कि मामले में दोषियों पर कार्रवाई करने के बजाय पुलिस उन्हें प्रताड़ित करने में लगी है.
'मेरा बेटा बाजार जाकर दारू पिया था. इसलिए उसे उल्टी हो रही थी. जब सीरियस हो गया तो उसे गया लेकर गए. लेकिन घर में पैसा नहीं होने के कारण वो मर गया.'- मृतक विनय कुमार की मां
बिना पोस्टमार्टम के दाह संस्कार का आरोप: पूरे मामले को लेकर राजनीति शुरू हो गई है. इन मौतों के बहाने विपक्षी दल राज्य सरकार और जिला प्रशासन को घेरने में लगे हैं. मामले में पीड़ित परिवारों की मातमपुर्सी करने पहुंचे विधानसभा चुनाव में रफीगंज से निर्दलीय प्रत्याशी रहे प्रमोद सिंह ने बिना पोस्टमार्टम कराये मृतकों का दाह संस्कार करने पर आपत्ति जताई. उन्होंने कहा कि यदि पोस्टमार्टम कराया गया होता तो सरकार से मुआवजा की लड़ाई लड़ी जा सकती थी.
'दुःख की इस घड़ी में अपने क्षेत्र के लोगों के साथ हूं. अपने स्तर से सभी पीड़ित परिवारों की हरसंभव सहायता करूंगा. नीतीश सरकार का शराबबंदी कानून फेल है. गांव-गांव शराब की बिक्री हो रही है. होम डिलेवरी हो रही है. प्रशासन के लोग शराब की अवैध बिक्री को रोकने के बजाय इसे संरक्षण दे रहे हैं' : प्रमोद सिंह, स्थानीय नेता व निर्दलीय प्रत्याशी रफीगंज
मदनपुर प्रखंड और गया जिले के आमस प्रखंड में जहरीली शराब से मरने वालों की संख्या में इजाफा हो सकता है. फिलहाल कई लोगों के परिजन, जो उनके मौत के कारण को छुपा लिया था वे धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं.
'रविवार को मेरा भाई पड़रिया मोड़ पर दारू पिया था. दारू पीने के कुछ देर बाद उसकी तबीयत खराब हो गई. हम लोगों ने पहले यहीं दिखाया फिर सीरियस हालत होने पर गया एम्स लेकर गए जहां उसकी मौत हो गई'- मृतक का भाई
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बिहार में 2016 से शराबबंदी : बता दें कि बिहार सरकार ने 2016 में शराबबंदी कानून (Bihar Liquor Ban) लागू किया गया था। कानून के तहत शराब की बिक्री, पीने और बनाने पर प्रतिबंध है. शुरुआत में इस कानून के तहत संपत्ति कुर्क करने और उम्र कैद की सजा तक का प्रावधान था, लेकिन 2018 में संशोधन के बाद सजा में थोड़ी छूट दी गई थी. बिहार में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद से बिहार पुलिस मुख्यालय के आंकड़ों के मुताबिक, अब तक मद्य निषेध कानून उल्लंघन से जुड़े करीब 3 लाख से ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं.
अब जुर्माना देकर छूट जाएंगे शराबी : हालांकि, 6 साल बाद शराबबंदी कानून में बड़ा बदलाव (Changes In The Prohibition Law) किया गया है. जिसके बाद यदि को व्यक्ति पहली बार शराब पीते पकड़ा जाता है तो उसे जुर्माना लेकर छोड़ दिया जाएगा. लेकिन बार-बार पकड़ें जाने पर जेल और जुर्माना दोनों की सजा हो सकती है. पहली बार शराब पीते हुए पकड़े जाने वालों को कार्यकारी मजिस्ट्रेट के निर्णय के अनुसार 2,000 रुपये से 5,000 रुपये के बीच जुर्माना लेकर रिहा किया जाएगा. यदि पहली बार अपराध करने वाला व्यक्ति जुर्माना अदा करने में विफल रहता है तो उसे एक माह की कैद हो सकती है. अगर आप दूसरी बार शराब पीते पकड़े गए तो अनिवार्य रूप से एक वर्ष की जेल की सजा का प्रावधान किया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को लगाई थी फटकार : दरअसल, पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में शराबबंदी कानून को लेकर नीतीश सरकार को फटकार भी लगाई थी. सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों में शराब के मामलों, विशेष रूप से जमानत से संबंधित मामलों को लेकर राज्य को फटकार लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से सवाल पूछा कि क्या शराबबंदी लागू करने से पहले और शराबबंदी कानून लाने से पहले बिहार में इसके लिए अदालती ढांचा तैयार किया गया है या नहीं? इस पर कोई अध्ययन किया कराया गया या नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि, बिहार में शराबबंदी की वजह से लगातार जेलों में कैदियों की संख्या बढ़ रही है. जजों की संख्या कम है बावजूद इसे 26 में 16 जज केवल शराबबंदी से जुड़े मामलों में ही फंसे हुए हैं.
शराबबंदी को लेकर बैकफुट पर क्यों आए नीतीश: आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल 2016 से दिसंबर 2021 तक शराबबंदी कानून के तहत करीब 2.03 लाख मामले सामने आए. इनमें 3 लाख से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है. इनमें से 1.08 लाख मामलों का ट्रायल शुरू किया गया. इनमें से 94 हजार 639 मामलों का ट्रायल पूरा हो चुका है. 1 हजार 19 मामलों में आरोपियों को सजा मिली. 610 मामलों में आरोपियों को बरी किया जा चुका है.
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