औरंगाबाद: कोरोना काल में बिहार ही नहीं पूरे देश में एंबुलेंस की कमी एक बड़ा मसला बनकर सामने आई है. ऐसे में बिहार के कई जगहों से सरकारी एंबुलेंस सड़ने की खबर आई है. काराकाट सांसद महाबली सिंह की ओर लोकसभा क्षेत्र के 6 प्रखंडों के अंतर्गत सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को दिए गए एम्बुलेंस 2013 से ही सड़ रहे हैं.
नबीनगर विधायक डब्लू सिंह ने इस पर सवाल खड़े करते हुए पूछा है कि 6 एम्बुलेंस 8 साल से क्यों सड़ रहे हैं? उन्होंने आरोप लगाया कि बीएस-3 वाहन खरीद कर एम्बुलेंस बनाया गया, जबकि बीएस 3 का रजिस्ट्रेशन बन्द हो गया था.
2013 में खरीदे गए थे एम्बुलेंस
आरजेडी से नबीनगर विधायक विजय कुमार सिंह उर्फ डब्लू सिंह ने बताया कि 2013 में जनता दल यूनाइटेड से तत्कालीन सांसद महाबली सिंह ने काराकाट लोकसभा क्षेत्र के औरंगाबाद जिले में स्थित 6 प्रखंड मुख्यालय पर स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के लिए एंबुलेंस की खरीदी की थी. नबीनगर, बारुण, ओबरा, दाउदनगर, हसपुरा और गोह के लिए खरीदे गए एम्बुलेंस खरीदी के दिन से ही स्वास्थ्य केंद्रों पर खड़ी कर दी गई. क्योंकि उन एम्बुलेंस का रजिस्ट्रेशन ही नहीं हुआ था. इस कारण पिछले 8 वर्षों से एम्बुलेंस सड़ रहे हैं. इस बीच 2014 के चुनाव में महाबली सिंह हार गए थे. लेकिन 2019 में वे पुन सांसद चुने गए. फिर भी उन्होंने इसकी कोई सुध नहीं ली.
'बीएस 4 के समय में बीएस 3 वाहन खरीदा गया'
विधायक डब्लू सिंह ने इसका खुलासा करते हुए कहा कि जब देश में बीएस 4 का कानून लागू हो गया था. तब सांसद महोदय ने बीएस 3 एम्बुलेंस की खरीदी की थी. जिसका रजिस्ट्रेशन नहीं हो सका और पिछले 8 वर्षों से एम्बुलेंस सड़ रहा है.
लगभग 30 लाख की है 1 एम्बुलेंस
आरजेडी विधायक डब्लू सिंह ने बताया कि एक एंबुलेंस की अनुमानित कीमत 30 लाख रुपये के आसपास है. ये पैसे जनता की गाढ़ी कमाई के होते हैं. सांसद निधि से पैसा देते समय या इस तरह के वाहन खरीदते समय सांसद को यह ध्यान रखना चाहिए था कि यह पैसे गरीबों के टैक्स और मेहनत की कमाई होती है, जिसे यूं ही बर्बाद करना उचित नहीं था.
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उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि सांसद भले ही चुनाव हार गए थे. लेकिन राज्य में उन्हीं की पार्टी की सरकार थी. वे चाहते तो मुख्यमंत्री से मिलकर एंबुलेंस का सदुपयोग करवा सकते थे. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. विधायक ने बताया कि इस कोविड-19 के दौर में विधानसभा क्षेत्र के हजारों मरीज एंबुलेंस के अभाव में पैदल हॉस्पिटल तक पहुंचे हैं. कोई खाट पर गया है. लेकिन एंबुलेंस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में सड़ रहे हैं.
अब सवाल यह है कि आखिर जनता की गाढ़ी कमाई को इस तरह क्यों बर्बाद किया जा रहा है, जबकि सांसद के पार्टी की ही सरकार है. ज्ञात हो कि एक एम्बुलेंस की कीमत 30 लाख रुपये के करीब का अनुमान लगाया गया है.