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स्टाफ की कमी से जूझ रहा बिहार का इकलौता मानसिक अस्पताल, निदेशक के पद भी खाली

भोजपुर जिले के कोइलवर प्रखंड स्थित बिहार का इकलौता मानसिक अस्पताल है. इसके प्रति सरकार का उदासीन रवैया है. संस्थान के निदेशक, अधीक्षक से लेकर चिकित्सक, नर्स और वार्ड अटेंडेंट तक में अधिकांशतः या तो प्रतिनियुक्ति पर हैं, संविदा और नियोजन पर हैं. 1 अक्टूबर से निदेशक के पद खाली हैं. पढ़ें रिपोर्ट...

भोजपुर
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Published : Oct 10, 2021, 4:47 PM IST

भोजपुरः कोरोना महामारी के परिणामस्वरूप हमारे दैनिक जीवन में काफी बदलाव आया है. ऐसे में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता बेहद जरूरी है. मानसिक समस्याओं के प्रति जागरुकता के लिए हर साल 10 अक्टूबर को वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे ( Mental Health Day ) मनाया जाता है. भोजपुर ( Bhojpur ) जिले के कोइलवर प्रखंड स्थित बिहार के इकलौते मानसिक अस्पताल ( Mental Hospital ) बिहार राज्य मानसिक स्वास्थ्य एवं सम्बद्ध विज्ञान संस्थान के प्रति सरकार का कोई ध्यान नहीं है.

यह भी पढ़ें- बिहार के इकलौते मानसिक अस्पताल की हालत खराब, लोग गंदा पानी पीने को मजबूर

इस संस्थान के प्रति सरकार की बेरुखी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि संस्थान के निदेशक, अधीक्षक से लेकर चिकित्सक, नर्स और वार्ड अटेंडेंट तक में अधिकांशतः या तो प्रतिनियुक्ति पर हैं, संविदा और नियोजन पर हैं. हालात यहां तक है कि पीएमसीएच के मनोरोग प्राध्यापक डॉ. नरेंद्र प्रताप सिंह को संस्थान के निदेशक पद पर लगातार कई सेवा विस्तार दिया गया. उसके बाद 01 अक्टूबर से निदेशक का पद भी खाली है.

पिछले 30 सितंबर को अतिरिक्त प्रभार का उनका सेवा अवधि विस्तार खत्म हो गया है. जिसके बाद उन्हें सेवा विस्तार नहीं दिया गया. सूबे के एकमात्र अस्पताल की जिंदगी उधार के डॉक्टरों और कर्मियों के भरोसे चल रही है. चार दर्जन कार्यरत डॉक्टर और कर्मी में मात्र आधा दर्जन चिकित्सक की ही स्थायी नियुक्ति है. इनमें से भी अधिकांशतः ड्यूटी से गायब ही रहते हैं.

संस्थान में तृतीय व चतुर्थवर्गीय कर्मियों का घोर अभाव है. 293 स्वीकृत पदों के विरुद्ध मात्र 47 कर्मियों के जिम्मे संस्थान चल रहा है. हालात यह है कि दवा वितरण और निबंधन काउंटर तक को वार्ड अटेंडेंट और निजी सुरक्षा गार्डों के भरोसे चलाया जा रहा है. संस्थान में भर्ती पुरुष मनोरोगियों के लिए कोई वार्ड अटेंडेंट नहीं है. इनकी देखभाल संस्थान की सुरक्षा में लगे निजी सुरक्षाकर्मी करते है जबकि महिला वार्ड में 18 वार्ड अटेंडेंट कार्यरत हैं.

इनमें से अधिकतर ओपीडी के दवा वितरण से निबंधन तक का काम देखती हैं. वही हाल मेल और फीमेल नर्स का है. यहां मात्र दो मेल नर्स प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत हैं. जबकि ग्रेड ए नर्स के पद पर एक रिटायर्ड नर्स को संविदा पर रखा गया है. जिनका कार्यकाल भी जल्द ही खत्म होने वाला है.

यही हाल हेल्थ ट्रेनर, लैब टेक्नीशियन, ईईजी टेक्नीशियन, ऑक्यूपेशनल थैरेपिस्ट, साइकेट्रिक सोशल वर्कर और क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट जैसे पदों का भी है. जहां स्वीकृत पदों की अपेक्षा एक या दो पदों पर कर्मी तैनात हैं. संस्थान की सुरक्षा में लगे कोबरा इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स आई. लि. पटना के 38 कर्मियों में अधिकांश कैंपस सिक्योरिटी के अलावे इनडोर-आउटडोर और ओपीडी के कामों में व्यस्त रहते हैं.

सूबे के इस इकलौते मानसिक अस्पताल में मरीजों की संख्या हर साल बढ़ रही है. झारखंड के रांची स्थित संस्थान में बिहार के मरीजों की भर्ती पर रोक के बाद यहां आने वाले मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है. पिछले 5 वर्षों में ओपीडी में इलाज के लिए आए मरीजों की संख्या पर गौर करें तो 2015 में 32,261 मरीज, 2016 में 44,562 मरीज, 2017 में 51,757 मरीज, 2018 में 65,527 मरीज, 2019 में 69,126 मरीज, 2020 में 64,500 मरीज, जबकि 2021 के अगस्त माह तक 32,332 मरीज इलाज के लिए संस्थान में आ चुके हैं. बावजूद इसके सरकार स्वास्थ्य मंत्रालय इसके प्रति संवेदनशील नहीं है.

यह भी पढ़ें- भोजपुर: मानसिक आरोग्यशाला में जाने की नहीं मिल रही अनुमति, मरीजों को हो रही परेशानी

भोजपुरः कोरोना महामारी के परिणामस्वरूप हमारे दैनिक जीवन में काफी बदलाव आया है. ऐसे में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता बेहद जरूरी है. मानसिक समस्याओं के प्रति जागरुकता के लिए हर साल 10 अक्टूबर को वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे ( Mental Health Day ) मनाया जाता है. भोजपुर ( Bhojpur ) जिले के कोइलवर प्रखंड स्थित बिहार के इकलौते मानसिक अस्पताल ( Mental Hospital ) बिहार राज्य मानसिक स्वास्थ्य एवं सम्बद्ध विज्ञान संस्थान के प्रति सरकार का कोई ध्यान नहीं है.

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इस संस्थान के प्रति सरकार की बेरुखी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि संस्थान के निदेशक, अधीक्षक से लेकर चिकित्सक, नर्स और वार्ड अटेंडेंट तक में अधिकांशतः या तो प्रतिनियुक्ति पर हैं, संविदा और नियोजन पर हैं. हालात यहां तक है कि पीएमसीएच के मनोरोग प्राध्यापक डॉ. नरेंद्र प्रताप सिंह को संस्थान के निदेशक पद पर लगातार कई सेवा विस्तार दिया गया. उसके बाद 01 अक्टूबर से निदेशक का पद भी खाली है.

पिछले 30 सितंबर को अतिरिक्त प्रभार का उनका सेवा अवधि विस्तार खत्म हो गया है. जिसके बाद उन्हें सेवा विस्तार नहीं दिया गया. सूबे के एकमात्र अस्पताल की जिंदगी उधार के डॉक्टरों और कर्मियों के भरोसे चल रही है. चार दर्जन कार्यरत डॉक्टर और कर्मी में मात्र आधा दर्जन चिकित्सक की ही स्थायी नियुक्ति है. इनमें से भी अधिकांशतः ड्यूटी से गायब ही रहते हैं.

संस्थान में तृतीय व चतुर्थवर्गीय कर्मियों का घोर अभाव है. 293 स्वीकृत पदों के विरुद्ध मात्र 47 कर्मियों के जिम्मे संस्थान चल रहा है. हालात यह है कि दवा वितरण और निबंधन काउंटर तक को वार्ड अटेंडेंट और निजी सुरक्षा गार्डों के भरोसे चलाया जा रहा है. संस्थान में भर्ती पुरुष मनोरोगियों के लिए कोई वार्ड अटेंडेंट नहीं है. इनकी देखभाल संस्थान की सुरक्षा में लगे निजी सुरक्षाकर्मी करते है जबकि महिला वार्ड में 18 वार्ड अटेंडेंट कार्यरत हैं.

इनमें से अधिकतर ओपीडी के दवा वितरण से निबंधन तक का काम देखती हैं. वही हाल मेल और फीमेल नर्स का है. यहां मात्र दो मेल नर्स प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत हैं. जबकि ग्रेड ए नर्स के पद पर एक रिटायर्ड नर्स को संविदा पर रखा गया है. जिनका कार्यकाल भी जल्द ही खत्म होने वाला है.

यही हाल हेल्थ ट्रेनर, लैब टेक्नीशियन, ईईजी टेक्नीशियन, ऑक्यूपेशनल थैरेपिस्ट, साइकेट्रिक सोशल वर्कर और क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट जैसे पदों का भी है. जहां स्वीकृत पदों की अपेक्षा एक या दो पदों पर कर्मी तैनात हैं. संस्थान की सुरक्षा में लगे कोबरा इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स आई. लि. पटना के 38 कर्मियों में अधिकांश कैंपस सिक्योरिटी के अलावे इनडोर-आउटडोर और ओपीडी के कामों में व्यस्त रहते हैं.

सूबे के इस इकलौते मानसिक अस्पताल में मरीजों की संख्या हर साल बढ़ रही है. झारखंड के रांची स्थित संस्थान में बिहार के मरीजों की भर्ती पर रोक के बाद यहां आने वाले मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है. पिछले 5 वर्षों में ओपीडी में इलाज के लिए आए मरीजों की संख्या पर गौर करें तो 2015 में 32,261 मरीज, 2016 में 44,562 मरीज, 2017 में 51,757 मरीज, 2018 में 65,527 मरीज, 2019 में 69,126 मरीज, 2020 में 64,500 मरीज, जबकि 2021 के अगस्त माह तक 32,332 मरीज इलाज के लिए संस्थान में आ चुके हैं. बावजूद इसके सरकार स्वास्थ्य मंत्रालय इसके प्रति संवेदनशील नहीं है.

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