भागलपुर : मानव जीवन के लिए पानी सबसे जरूरी है. लेकिन पूरी दुनिया में जल संकट धीरे-धीरे विकराल होता नजर आ रहा है. जल संसाधनों की प्रचुरता के बावजूद स्थितियां विकट हैं. बिहार की बात करें तो यहां नदियों का जाल बिछा है. फिर भी यहां जल-संकट की समस्या से लोग जूझ रहते रहते है. बिहार के कई ऐसे जिले है, जहां पानी की समस्या बद से बदतर है.
पेयजल का संकट
गांवों में पेयजल की समुचित व्यवस्था नहीं होने से लोगों को एक से दो किलोमीटर दूर गुजर रही नदियों से पानी लाना पड़ रहा हैं. गांवों की महिलाएं भोर होते ही हाथों में गगरियां, टंकियां लेकर नदी की ओर चल पड़ती हैं. नहाने और कपड़े धोने के बाद ही खाना बनाने और पीने के लिए पानी लेकर आती हैं. दरअसल भागलपुर जिले के जगदीशपुर के कई गांवों में गर्मी के तेवर जैसे-जैसे तीखे होते जा रहे है. वैसे-वैसे यहां जल स्तर गहराने लगा है. इस क्षेत्र में कई जगह हैंडपंप खराब पड़े है और कई हैंडपंप हवा फेंकने लगे हैं. वहीं, कई हैंडपंपों का पानी गंदे और स्वादहीन होने के कारण क्षेत्र के लोगों को पेयजल संकट का सामना करना पड़ रहा है.
नदी के पानी का करना पड़ता है उपयोग
ग्रामीण राकेश कुमार ने बताया कि इस इलाके में जल की समस्या हमेशा देखने को मिलती हैं. 1978 में सरकार की ओर से नदी में ही इंटक वेल प्लांट लगाया गया था, जो 2007 तक एरिया को पानी सप्लाई करता रहा, लेकिन जब 2007 में नदी में खनन शुरू हुआ और बालू उठाव के कारण जल स्रोत नीचे चला गया. अब इलाके में पानी की समस्या उत्पन्न हो गई है. एक बोरिंग पीएचडी डिपार्टमेंट की ओर से भी लगाया गया है, जो इलाके में पानी सुचारू रूप से मुहैया नहीं करा पाती है. 30 से 40 मिनट ही पानी मिलता है, जो पर्याप्त नहीं है. इसलिए हम लोगों को नदी के पानी का ही उपयोग करना पड़ता है.
गंदा पानी पीने को मजबूर
ग्रामीण प्रह्लाद पासवान ने बताया कि इस एरिया में पानी सप्लाई के लिए इंटेक वेल लगाया गया था. लेकिन नदी में बालू खनन के कारण जल स्रोत नीचे चला गया और वह बंद हो गया. इससे इलाके में पानी सप्लाई नहीं हो रहा है. इसीलिए लोग को नदी के गंदे पानी पीने को मजबूर होना पड़ रहा है.
पानी ढोने को मजबूर
बता दें कि जगदीशपुर के 90 प्रतिशत जलस्रोत सूख गए हैं. यहां एक जलमीनार है, जिसे चांदपुर स्थित बोरिंग से पानी मिलता है. यह चांदन नदी में स्थित है. लेकिन वो भी अब गर्मी बढ़ने के साथ ही पानी देना कम कर दिया है. चापाकल, कुएं, तालाब, बोरिंग पहले ही दम तोड़ चुके हैं. अब पानी पीने के लिए लोग कोकरा नदी से पानी लाते है और उसी गंदे पानी से नहाना,पीना और खाना बनाने सहित बाकी जरूरते पूरी करते है. वहीं, क्षेत्र के ग्रामीण नदी पर ही आश्रित हैं. इसीलिए ग्रामीण ठेला, रिक्शा और अन्य वाहनों से गंगा नदी से पानी ढोने को मजबूर हैं.