भागलपुर: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर 23 अक्टूबर को पीएम नरेंद्र मोदी जिले में चुनावी जनसभा करने आ रहे हैं. हमेशा की तहर इस बार भी जिले के बुनकरों को पीएम से मदद की उम्मीद है. हालांकि लोकसभा चुनाव में भी इन बुनकरों से वायदे किए गए थे, लेकिन वो पूरे नहीं हुए. इस बार भी विधानसभा चुनाव में बुनकर आस लगाए हुए हैं.
बता दें कि देश भर में भागलपुर रेशम के लिए जाना जाता है. लेकिन 1989 के दंगे के बाद से ही जिले की तस्वीर पूरी तरह से बदल गई है. 31 साल के बाद भी बुनकर के हालात सामान्य नहीं हो सकी है. जिले में 3 से 3.5 लाख बुनकर अभी रेशम के कारोबार से जुड़े हुए हैं. मगर सरकारी उदासीनता के कारण इनकी हालात काफी दयनीय है.
रेशम उद्योग को बेहतर बनाने के हर वार वायदे
चुनाव के समय में नेता बुनकरों की स्थिति को बेहतर कर भागलपुर के रेशम उद्योग को फिर से बेहतर बनाने की बात करते हैं, लेकिन चुनाव खत्म होते ही सारे वायदे भूल जाते हैं. जब ईटीवी भारत संवाददाता ने इन बुनकरों से बात की तो इन्होंने अपना दर्द साझा किया.
"सरकार यदि चाहती तो इस उद्योग को बेहतर बनाया जा सकता था और बुनकरों के हालात को भी ठीक किया जा सकता था. लेकिन आज जो कोई बचे खुचे बुनकर हैं. वो किसी तरह से अपने और अपने परिवार का गुजारा कर रहे हैं. सरकार की कोई भी योजनाएं धरातल पर नहीं है."- अबरार अंसारी, बुनकर नेता
सरकार के उदासीन रवैये से मुश्किल हुए हालात
भागलपुर का चंपानगर इलाका पूरी तरह से बुनकरों से भरा हुआ है. गुणकारी करना ही इन बुनकरों का मुख्य पेशा है, लेकिन सरकारी उदासीनता की वजह से काफी ज्यादा मुश्किल हालात पैदा हो गए हैं. बुनकर पूरी तरह से भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके हैं. सरकार इन बुनकरों को लेकर काफी उदासीन दिख रही है.
"टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज में काफी ज्यादा करियर है, लेकिन यहां उद्योग को किसी तरह से कोई सहायता नहीं प्रदान की जा रही है. सरकारी सहायता नहीं मिलने से जिले में दिन-ब-दिन रेशम उद्योग की स्थिति बदतर हो गई है. अगर मुझे नौकरी करनी पड़ी तो दूसरे राज्यों में जाना पड़ेगा, क्योंकि यहां की जो टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज है वह काफी खराब स्थिति में है."- तौसीफ शबाब, टेक्सटाइल इंजीनियर
लॉकडाउन की वजह से भी इस उद्योग को काफी घाटा हुआ है. अभी के समय में बहुत ही मुश्किल से काम हो रहा है. हम सभी कारीगर मुश्किल से दिन में 200 से 300 रुपये ही कमा पाते हैं. इसी से किसी तरह से घर का गुजारा चलाना पड़ता है.- राजा,कारीगर और परवेज, बुनकर
चुनाव के साथ ही खत्म हो जाते हैं नेताओं के वायदे
ज्यादातर बुनकरों का यही कहना है कि जैसे ही चुनाव आता है. नेताओं के वायदे शुरू हो जाते हैं, लेकिन वायदों को जमीन पर कभी भी नहीं लाया जाता है. चुनाव के साथ ही वायदे भी खत्म हो जाते हैं. सरकार अगर हमारी मदद करे तो भागलपुर के बुनकरों की स्थिति काफी ज्यादा बेहतर होगी. यहां के जो पारंपरिक रेशम वस्त्र का उत्पादन है, वो भी अपने पुराने पहचान में वापस लौट जाएगा.