बेगूसरायः नवरात्र में शक्ति स्वरुपा मां दुर्गा की पूजा लोग अपने-अपने अपने तरीके से करते हैं. लोगो की आस्था का प्रतिक हर दुर्गा मंदिर अपने पीछे किसी ना किसी परंपरा को समेटे हुए है. बेगूसराय में भी एक ऐसा ही दुर्गा मंदिर स्थित है, जो पिछले 150 वर्ष अपनी खास परंपरा के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध है. एक परंपरा के मुताबिक यहां के लोग कंधे पर मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन दूर बूढी गंडक नदी में जाकर करते हैं. आस्था के इस प्रमुख केंद्र को लेकर ऐसी मान्यता है कि यहां मांगी गई मन की हर मुराद पूरी होती है.
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डेढ़ सौ वर्षो से हो रही मां दूर्गा की पूजाः बेगूसराय के खोदाबंदपुर प्रखंड स्थित बाड़ा गावं अवस्थीत मां वैष्णवी दुर्गा की पूजा की डेढ़ सौ वर्षो की यह परंपरा इसे दूसरे मंदिरों से अलग बनाती है. जिला मुख्यालय से तकरीबन 40 से 45 किलोमीटर दूर उत्तर खोदावंदपुर प्रखंड के बाड़ा गांव में यह मंदिर स्थित है. इस स्थान पर देवी दुर्गा की प्रतिमा की पूजा करने का एक लंबा इतिहास है. इस संबंध मे मुखिया पति टिंकू रॉय बताते हैं कि यह एक सिद्ध पीठ है. इतिहास के मुताबिक इस स्थान पर करीब 150 बरसों से माता के वैष्णवी स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है.
गावं के लोग ही करते हैं प्रतिमा का निर्माणः आस्था के इस प्रमुख केंद्र के विषय में टिंकू रॉय बताते हैं कि जो कोई भी श्रद्धा भक्ति भाव से अपने मन की मुराद मांगते हैं वो अवश्य पूरी होती है. गावं के लोग बताते है कि गांव के ही रहने वाले परमेश्वर पासवान नामक व्यक्ति द्वारा इस पूजा की शुरुआत की गई थी जो आज तक चल रही है. इस दुर्गा मंदिर में इलाके के रहने वाले हर तबके के लोग बड़े ही भक्ति भाव से पूजा अर्चना करते हैं. प्रतिमा का निर्माण भी गावं के ही रहने वाले स्थानीय कलाकारों द्वारा किया जाता है.
"लाखों लोगों ने संतान सुख, नौकरी और रोग मुक्त के लिए मुराद मांगी. मांगी गई हर मुराद पूरी हुई है. यह एक सिद्ध पीठ है. इतिहास के मुताबिक इस स्थान पर करीब 150 बरसों से माता के वैष्णवी स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है"- टिंकू रॉय, मुखिया पति
चार दिनों तक होता है भव्य मेला का आयोजनः वही इस संबंध मे राजेश कुमार बताते है कि गांव का हर परिवार समिति से जुड़ा होता है. सभों के सहयोग से धूम धाम से दुर्गा पूजा मनाया जाता है. यहां चार दिनों तक भव्य मेला का आयोजन होता है. जिसमे सांस्कृतिक कार्यक्रम भी शामिल होता है. इस दुर्गा मंदिर में माता की सालो भर नियमित पूजा और संध्या आरती की जाती है. इस संबंध में ग्रामीण रामरती देवी बताती हैं कि मैया की महिमा अपरंपार है. इनके दरबार में आने वाले लोग कभी निराश होकर नहीं जाते.
'कांधे पर होता है मां दुर्गा का विसर्जन': ग्रामीणों सुरेंद्र पासवान बताते हैं कि माता का विसर्जन अहले सुबह किया जाता है. यह विसर्जन किसी घोड़ा या गाड़ी पर नहीं की जाती बल्कि लोग कांधे पर ले जाकर मां दुर्गा का विसर्जन करते हैं. जिसमें हजारों लोग शामिल होते हैं. माता की विशाल मूर्ति को लोग अपने कांधे पर तकरीबन एक किलोमीटर तक बूढी गंडक नदी तक ले जाते है और यही पर मां दुर्गा का विसर्जन करते हैं. यह दृश्य बेहद ही खास होता है. जिसमें इलाके भर के महिला पुरुष और नौजवान शामिल होते है. मूर्ति को कंधे से लगाकर लोग गर्व महसूस करते हैं.