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बेगूसराय: करोड़ों की लागत से बने मॉडल स्कूलों की हालत जर्जर, सरकारी उपेक्षा के कारण लटके ताले - etv bharat

मालूम हो कि 2 मई 2015 को तत्कालीन पथ निर्माण मंत्री सह प्रभारी मंत्री ललन सिंह ने स्कूल भवन का उद्घाटन किया था. लेकिन, मंत्रीजी के जाते ही स्कूल की हालत खराब हो गई.

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Published : Jul 28, 2019, 6:59 PM IST

बेगूसराय: राज्य शिक्षा व्यवस्था का हाल किसी से छुपा नहीं है. सरकार भले सुधार और विकास में करोड़ों खर्च कर रही हो. लेकिन, जमीनी स्तर पर उनकी कोशिशें सफल होती नहीं दिख रही हैं. बेगूसराय के सरकारी स्कूलों में मॉडल स्कूलों जैसी सुविधा मिल सके इसके लिए 3 वर्ष पहले 9 करोड़ 15 लाख रुपए खर्च करके 5 मॉडल स्कूल बनाए गए थे. खूब धूमधाम से स्कूल का उद्घाटन भी हुआ. लेकिन, स्कूल का लाभ बच्चों को मिल पाता उससे पहले ही इन विद्यालय भवनों में ताला लग गया.

ईटीवी भारत संवाददता की रिपोर्ट

करोड़ों की लागत से बने स्कूल आज खंडहर में तब्दील हो गया है. इस मॉडल स्कूल में कुछ महीने पहले बच्चों की क्लासेज भी शुरू की गई. लेकिन, हालत जर्जर होने के कारण बच्चे विद्यालय में जाना नहीं चाहते है. हाल यह है कि गांव के कुछ लोग मॉडल स्कूल की दीवारों और परिसर में गोबर के उपले सुखाते हैं.

निजी कामों में इस्तेमाल हो रहा स्कूल
मालूम हो कि इस स्कूल का प्रयोग लोग अपने निजी कामों के लिए कर रहे हैं. कोई यहां मवेशी पालता है, तो कोई उपले सुखाता है. विद्यालय असामाजिक तत्वों का रैन बसेरा बन गया है. बेगूसराय जिले के उलाव गांव में स्थित मॉडल विद्यालय भी आज जर्जर खड़ा है. इसे बनाने में कुल 1 करोड़ 83 लाख रुपये की लागत आई थी. स्कूल भवन को कुछ स्थानीय ग्रामीण तबेला बनाने पर तुले हुए हैं. विद्यालय के सौंदर्यीकरण के लिए खिड़की और अन्य जगहों पर लगे शीशे टूट गए हैं.

begusarai
स्कूल

स्कूल चलने से सैकड़ों बच्चे होंगे लाभांवित
केंद्रीय विद्यालय के तर्ज पर इस मॉडल विद्यालय को बनाया गया था. जहां बच्चों से बिना फीस लिए उन्हें सारी सुविधाएं मिलती जो आज निजी स्कूलों में बच्चों को दी जाती है. इस स्कूल के खुलने से सरकारी स्कूल के बच्चे भी प्राइवेट स्कूल के बच्चों को टक्कर दे सकते थे.

begusarai
बदहाल स्थिति

2015 में हुआ था उद्घाटन
मालूम हो कि 2 मई 2015 को तत्कालीन पथ निर्माण मंत्री सह प्रभारी मंत्री ललन सिंह ने इस भवन का उद्घाटन किया था. तब लोगों को यह विश्वास था कि अब हमारे बच्चे भी इस मॉडल स्कूल में पढ़ सकेंगे. जहां उन्हें पीने को साफ पानी मिलेगा, अच्छी पढ़ाई होगी, खेलने के लिए सामान और आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा. लेकिन, मंत्रीजी के जाने के बाद यह सब बस सपना बनकर रह गया.

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टूटी खिड़कियां

बेकार पड़े हैं भवन
बता दें कि जिले के 172 स्कूलों को अपग्रेड कर प्लस टू का दर्जा दिया गया है. लेकिन, कमी के कारण मात्र 41 स्कूलों में ही ठीक से पढ़ाई शुरू हो पाई है. कहीं शिक्षकों की कमी है तो कहीं भवन नहीं हैं. नतीजतन, जिले में 9 करोड़ की लागत से बने इन भवनों का कोई उपयोग नहीं हो रहा है.

बेगूसराय: राज्य शिक्षा व्यवस्था का हाल किसी से छुपा नहीं है. सरकार भले सुधार और विकास में करोड़ों खर्च कर रही हो. लेकिन, जमीनी स्तर पर उनकी कोशिशें सफल होती नहीं दिख रही हैं. बेगूसराय के सरकारी स्कूलों में मॉडल स्कूलों जैसी सुविधा मिल सके इसके लिए 3 वर्ष पहले 9 करोड़ 15 लाख रुपए खर्च करके 5 मॉडल स्कूल बनाए गए थे. खूब धूमधाम से स्कूल का उद्घाटन भी हुआ. लेकिन, स्कूल का लाभ बच्चों को मिल पाता उससे पहले ही इन विद्यालय भवनों में ताला लग गया.

ईटीवी भारत संवाददता की रिपोर्ट

करोड़ों की लागत से बने स्कूल आज खंडहर में तब्दील हो गया है. इस मॉडल स्कूल में कुछ महीने पहले बच्चों की क्लासेज भी शुरू की गई. लेकिन, हालत जर्जर होने के कारण बच्चे विद्यालय में जाना नहीं चाहते है. हाल यह है कि गांव के कुछ लोग मॉडल स्कूल की दीवारों और परिसर में गोबर के उपले सुखाते हैं.

निजी कामों में इस्तेमाल हो रहा स्कूल
मालूम हो कि इस स्कूल का प्रयोग लोग अपने निजी कामों के लिए कर रहे हैं. कोई यहां मवेशी पालता है, तो कोई उपले सुखाता है. विद्यालय असामाजिक तत्वों का रैन बसेरा बन गया है. बेगूसराय जिले के उलाव गांव में स्थित मॉडल विद्यालय भी आज जर्जर खड़ा है. इसे बनाने में कुल 1 करोड़ 83 लाख रुपये की लागत आई थी. स्कूल भवन को कुछ स्थानीय ग्रामीण तबेला बनाने पर तुले हुए हैं. विद्यालय के सौंदर्यीकरण के लिए खिड़की और अन्य जगहों पर लगे शीशे टूट गए हैं.

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स्कूल

स्कूल चलने से सैकड़ों बच्चे होंगे लाभांवित
केंद्रीय विद्यालय के तर्ज पर इस मॉडल विद्यालय को बनाया गया था. जहां बच्चों से बिना फीस लिए उन्हें सारी सुविधाएं मिलती जो आज निजी स्कूलों में बच्चों को दी जाती है. इस स्कूल के खुलने से सरकारी स्कूल के बच्चे भी प्राइवेट स्कूल के बच्चों को टक्कर दे सकते थे.

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बदहाल स्थिति

2015 में हुआ था उद्घाटन
मालूम हो कि 2 मई 2015 को तत्कालीन पथ निर्माण मंत्री सह प्रभारी मंत्री ललन सिंह ने इस भवन का उद्घाटन किया था. तब लोगों को यह विश्वास था कि अब हमारे बच्चे भी इस मॉडल स्कूल में पढ़ सकेंगे. जहां उन्हें पीने को साफ पानी मिलेगा, अच्छी पढ़ाई होगी, खेलने के लिए सामान और आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा. लेकिन, मंत्रीजी के जाने के बाद यह सब बस सपना बनकर रह गया.

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टूटी खिड़कियां

बेकार पड़े हैं भवन
बता दें कि जिले के 172 स्कूलों को अपग्रेड कर प्लस टू का दर्जा दिया गया है. लेकिन, कमी के कारण मात्र 41 स्कूलों में ही ठीक से पढ़ाई शुरू हो पाई है. कहीं शिक्षकों की कमी है तो कहीं भवन नहीं हैं. नतीजतन, जिले में 9 करोड़ की लागत से बने इन भवनों का कोई उपयोग नहीं हो रहा है.

Intro:एंकर- सरकार ने 9. 15 करोड़ रूपए खर्च कर जिले में 5 मॉडल स्कूल खुलवाए लेकिन करोड़ों रुपया खर्च होने के बावजूद भी धरातल पर इन मॉडल स्कूलों का लाभ छात्रों और शिक्षकों को नहीं मिल पा रहा है ।धीरे-धीरे तमाम यह विद्यालय अब तबेले में तब्दील हो रहे हैं क्या ऐसे विद्यालय से बच्चे होंगे स्मार्ट ??



नोट-मैने इसमें vo नही किया स्टूडियो से हो तो बेहतर है अन्यथा मुझे सूचित किया जाएगा तो मैं vo करके वापिस अपलोड कर दूंगा।


Body:vo- सरकारी स्कूल में मॉडल स्कूलों जैसी सुविधा मिल सके इसके लिए 3 वर्ष पहले जिले में 9 करोड़ 15लाख रुपए खर्च कर 5 मॉडल स्कूल बनाए गए स्कूल का उद्घाटन भी हुआ ,लेकिन स्कूल का लाभ बच्चों को मिल पाता उससे पहले ही विद्यालय भवन में ताला लगा दिया गया या वह खंडहर में तब्दील हो गए। इस मॉडल स्कूल में कुछ माह पूर्व बच्चों की पढ़ाई शुरु तो हुई लेकिन बच्चे खंडहर विद्यालय में जाना नहीं चाहते हैं।गांव के कुछ लोग इस मॉडल स्कूल की दीवारों उसके परिसर में गोबर के उपले सुखाते हैं और मवेशी पालन करते हैं। कोई कोई मॉडल विद्यालय तो असामाजिक तत्वों का रैन बसेरा बन गया है ।बेगूसराय जिले के उलाव गाँव मे स्थित यह मॉडल विद्यालय 1 करोड़ 83 लाख की लागत से बनाया गया।इस मॉडल स्कूल में अब कुछ भी मॉडल नहीं बचा है ।यहां रहने वाले स्थानीय लोगों को यह जानकारी भी नहीं है कि यह भवन किस लिए है और इसकी उपयोगिता क्या है ।
स्कूल भवन को कुछ स्थानीय ग्रामीण तबेला बनाने पर तुले हुए हैं विद्यालय के सौंदर्यीकरण के लिए खिड़की और अन्य जगहों पर लगाए गए शीशे तोड़ दिए गए हैं।

क्या होता अगर विद्यालय शुरू हो जाता
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केंद्रीय विद्यालय के तर्ज पर इस मॉडल विद्यालय को बनया गया था ,जहां बच्चों से बिना फीस लिए बच्चों को सारी सुविधाएं मिलती जो आज निजी स्कूलों में बच्चों को दी जाती है। इससे सरकारी स्कूल के बच्चे भी प्राइवेट स्कूल के बच्चों को टक्कर दे सकते थे ।इससे जिले में शिक्षा के स्तर में भी सुधार आ सकता था।

वर्ष 2015 में हुआ था उद्घाटन ।
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मालूम हो कि दो मई वर्ष 2015 को तत्कालीन पथ निर्माण मंत्री सह प्रभारी मंत्री ललन सिंह ने एक करोड़ 83 लाख की लागत से इस भवन का उद्घाटन किया था ।तब लोगों को यह विश्वास था कि अब हमारे बच्चे भी इस मॉडल स्कूल में पढ़ सकेंगे या पीने को साफ पानी मिलेगा अच्छी पढ़ाई होगी ,खेलने के लिए बच्चों को खेल का सामान और आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा, लेकिन मंत्री जी के जाने के बाद यहां लोगों का यह सपना विद्यालय में ताला लगने के साथ ही स्कूल के अंदर ही कैद होकर रह गया अब चंद माह पूर्व विद्यालय खुले तो बच्चे इसमें जाना नही चाहते। बताते चलें कि जिले के 172 स्कूलों को अपग्रेड कर प्लस टू का दर्जा दिया गया है की कमी के कारण मात्र 41 स्कूलों में ही ठीक से पढ़ाई शुरू हो पाई है ।कहीं शिक्षक छात्रों केअनुपात में नहीं है तो कहीं छात्रों के अनुपात में भवन नहीं है ,लेकिन जिले में 9 करोड़ की लागत से बने इन भवनों का कोई उपयोग नहीं हो रहा है ।
बाइट- रवी कुमार ,स्थानीय,
बाइट- एसके सिंह,प्रभारी एच एम
vo-इस विद्यालय समेत जिले के सभी पांचों मॉडल स्कूल की दुर्दशा के बारे में जब जिले के शिक्षा अधिकारी से जब बात की गई तो उन्होंने भी माना कि सरकार की योजना तो महत्वाकांक्षी है लेकिन परेशानियों के कारण इसमें अभी पढ़ाई बाधित है जल्द ही पढ़ाई शुरू करवाई जाएगी।
बाइट-देवेंद्र झा,डीईओ


Conclusion:fvo-इतना तय है कि सरकार के करोड़ों रुपये खर्च तो हो रहे लेकिन स्थानीय अधिकारियों की लापरवाही और उदासीनता के कारण उसका समुचित लाभ धरातल पर लोगो को नही मिल रहा।
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