बांका: समेकित कृषि प्रणाली के तहत आदिवासी समुदाय की महिलाओं को कृषि क्षेत्र से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जा रहा है. कृषि विभाग और कृषि विज्ञान केंद्र के सामूहिक प्रयास से आदिवासी महिलाओं ने पारंपरिक खेती के साथ-साथ मशरूम की भी खेती करना प्रारंभ कर दिया है.
'समेकित कृषि प्रणाली' की पहल
जैसा कि सर्व विदित है कि कृषि क्षेत्र में पुरूषों का आधिपत्य माना जाता है. वहीं, इस मान्यता से उलट जिले की आदिवासी महिलाओं ने अपनी काबिलियत के दम पर कृषि क्षेत्र में भी अपना लोहा मनवाना शुरू कर दिया है. सरकार पारंपरिक खेती के साथ-साथ अत्याधुनिक प्रकार की खेती पर भी जोर दे रही है. इसी कड़ी में समेकित कृषि प्रणाली अपनाकर आदिवासी महिला किसानों को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जा रहा है.
आदिवासी महिलाएं बन रही 'आत्मनिर्भर'
आदिवासी महिलाओं को सरकार की ओर से मशरूम का बीज भी मुहैया कराया जा रहा है. कृषि विभाग कृषि विज्ञान केंद्र के साथ मिलकर आदिवासी महिलाओं को कृषि क्षेत्र से जोड़ने के लिए कई योजनाएं चला रही है. कृषि विज्ञान केंद्र आदिवासी महिलाओं को पारंपरिक खेती के साथ-साथ मशरूम, मुर्गी पालन और बकरी पालन के लिए भी प्रशिक्षण दे रही है. कृषि विज्ञान से प्रशिक्षण ग्रहण कर बांका प्रखंड के ढ़ाड़ाबाड़ी गांव की महिलाओं ने मशरूम की खेती छोटे पैमाने पर शुरू किया है.
पहली बार 'मशरूम की खेती'
पहली बार मशरूम की खेती कर रही आदिवासी महिला कविता देवी, ज्योति देवी और कलकतिया देवी ने बताया कि समूह बनाकर छोटे पैमाने पर खेती कर रहे हैं. कृषि विज्ञान केंद्र ने काफी सहयोग किया है. यही से बीज भी उपलब्ध कराया गया है. महिलाओं ने बताया कि गेहूं, सरसों, मकई की फसल के साथ-साथ काफी कम जगह पर मशरूम की खेती की जा रही है. मशरूम तैयार हो गया है. इसे बाजार में बेचा जाएगा. मुनाफा अधिक होने पर विस्तारपूर्वक मशरूम की खेती की जाएगी.
मशरूम की खेती 'महिलाओं के अनुकूल'
वहीं, जिला कृषि पदाधिकारी सुदामा महतो ने बताया कि मशरूम एक ऐसा फसल है जिसमें अधिक जमीन की आवश्यकता नहीं होती है. महिलाओं के लिए मशरूम की खेती काफी कारगर है. आदिवासी महिलाओं ने प्रशिक्षण प्राप्त कर मशरूम का उत्पादन करना शुरू कर दिया है. साथ ही उन्होंने बताया कि बांका के ढ़ाड़ाबाड़ी और कटोरिया क्षेत्र के आदिवासी समुदाय की महिला किसान अच्छे तरीके से मशरूम की खेती कर आय प्राप्त कर रही है.