बांका: कोरोना महामारी के मद्देनजर देश में लागू राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की वजह से इंसान के साथ बेजुबान जानवर भी परेशान हैं. आजकल कुछ ऐसा ही हाल जिले के मंदार स्थित तराई में बसे सैकड़ों लंगूरों का है. इन दिनों लंगूरों को भर पेट खाना नसीब नहीं हो पा रहा है. लॉकडाउन से पहले यहां आने वाले सैलानियों से इन सबको खाना मिल जाता था. लेकिन अब पर्यटकों के आवागमन बंद होने से लंगूरों को खाने के लाले पड़ गए हैं. आलम ये है कि इस समय यहां पहुंचने वाले व्यक्तियों को भूख से बिलखते ये लंगूर खाने की आशा में घेर लेते हैं.
स्थानीय युवा बेजुबानों को दे रहे हैं खाना
इस विकट परिस्थिति में कुछ स्थानीय युवाओं ने इन बेजुबानों को खाना देने का बीड़ा उठाया है. रोजाना अपने पैसे खर्च कर ये लोग इन लंगूरों को रोटी और बिस्कुट का प्रबंध कर रहे हैं. स्थानीय जितेंद्र भगत बताते हैं कि पहले यहां लोग घूमने के लिए आते थे, तब इन बेजुबानों को खाना मिल जाता था. अभी लॉकडाउन में मंदार वीरान पड़ा है. इसलिए इन्हें खाने की दिक्कत हो रही है.
भोजन की तलाश में भटक रहे लंगूर
वहीं, एक अन्य स्थानीय युवक संजीव पाठक ने बताया कि लॉकडाउन लागू होने के बाद स्थानीय समाजसेवियों द्वारा राहत सामग्री जगह-जगह पहुंचाई गई. लेकिन मंदार क्षेत्र में हजारों लंगूर हैं, जो इन दिनों भूखे रह रहे हैं. इनको इनके हाल पर छोड़ दिया गया. पहले पर्यटकों द्वारा इन्हें भोजन मिल जाता था. अब भोजन की तलाश में लंगूर भटक रहे हैं. स्थानीय स्तर पर हम लोगों ने लंगूरों के लिए रोटी, बिस्कुट सहित अन्य खाद्य सामग्रियों का इंतजाम किया है.
युवाओं ने बेजुबानों की मदद का किया आग्रह
उन्होंने कहा कि इन बेजुबान लंगूरों पर भी सरकार और समाजसेवियों को ध्यान देने की जरूरत है. साथ ही जिला प्रशासन को भी इनके लिए पहल करनी चाहिए. हालांकि, स्थानीय स्तर पर लंगूरों को मुहैया कराया जा रहा भोजन नाकाफी साबित हो रहा है. बता दें कि इस समय लंगूरों को दो बार ही खाने के लिए दिया जा रहा है. लंगूरों की संख्या भी अधिक होने के कारण सभी को खाना नसीब नहीं हो पा रहा है.
गौरतलब है कि भोजन की तलाश में मंदार के मुख्य गेट के पास लंगूर बैठे रहते हैं. कोई रहनुमा आए और उन्हें खाने के लिए कुछ दे. वहीं, स्थानीय लोगों ने सरकार और जिला प्रशासन से बेजुबानों को भोजन मुहैया कराने का आग्रह किया है.