बांकाः विष्णु पुराण (Vishnu Puran) की पंक्ति "चीरचान्दनयोर्मध्ये मंदारो नामः पर्वतः" यानि चीर और चान्दन नदी (Chandan River) के मध्य में जिस पर्वत को बताया गया है, वही आज बिहार के बांका में मस्तक उठाए खड़ा मंदार पर्वत (Mandar Parvat) है. इसकी ऊंचाई 700 फीट है. काले ग्रेनाईट की एक ही शिला से निर्मित प्रकृति की यह अनुपम रचना बरबस अपनी ओर ध्यान खींच लेती है. मंदार पर्वत को लेकर कई कहानियां प्रचलित है.
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700 फीट ऊंचे इस पर्वत के बारे में पुराणों और महाभारत में कई कहानियां प्रचलित हैं. इनमें से एक कहानी ऐसी है कि देवताओं ने अमृत प्राप्ति के लिए दैत्यों के साथ मिलकर मंदार पर्वत को ही समुद्र मंथन के लिए मथनी के रूप में प्रयोग किया था. समुद्र मंथन में हलाहल विष के साथ 14 रत्न निकले थे.
सागर मंथन में इसे मथनी की तरह प्रयोग करने के लिए इसपर रज्जु के तौर पर लपेटे गए नागराज वासुकी की रगड़ से बने चिन्ह भी मौजूद है. प्राचीन धार्मिक साहित्यों, वाल्मिकी रामायण, मार्केण्डेय पुराण, मत्स्य पुराण, वामन पुराण, वृहत पुराण, विष्णु पुराण, श्री भागवत पुराण, गरुड़ पुराण सहित अन्य पौराणिक स्रोतों में भी इस पर्वत का जिक्र है.
मंदार पर्वत की कई कहानियां हैं प्रचलित
एक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने जब असुर द्वय मधु-कैटभ का संहार किया तो मधु के सिर पर उन्होंने मंदार पर्वत और कैटभ के सिर पर ज्येष्ठगौर पर्वत (वर्तमान में मंदार से 25 कि०मी० उत्तर पश्चिम, रजौन में अवस्थित जैठोर) को रख दिया. यहीं से विष्णु का मधुसूदन रूप प्रचलित हुआ. जिसका मंदिर मंदार पर्वत के चरण स्थली में अवस्थित है.
मत्स्य पुराण और वामन पुराण की कथा के अनुसार मंदार पर्वत ही शिव की निवास स्थली थी. यहीं से रावण उन्हें उठाकर लंका ले जा रहा था लेकिन रास्ते में वर्तमान देवघर भूमि पर रख देने के कारण शिव वैधनाथ के रूप में वहीं स्थापित हो गए और वैधनाथ धाम तीर्थ की स्थापना हुई.
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इस पर्वत का जैन धर्मग्रंथों में भी जिक्र
वहीं मार्कण्डेय पुराण का दावा है कि देवी दुर्गा ने महिषासुर का संहार भी मंदार पर्वत क्षेत्र में ही किया था. लोकप्रचलित मान्यता के अनुसार वनवास की अवधि में सीता ने मंदार पर्वत के मध्य स्थित एक कुण्ड में छठ का व्रत और सूर्य की उपासना की थी और आज भी वह कुण्ड सीता कुण्ड के नाम से अवस्थित है.
हिन्दु धर्म के अलावा जैन परंपरा में भी मंदार पर्वत की तीर्थस्थली के रूप में व्यापक महत्ता है. जैन धर्म के 12वें तीर्थंकर वसुपूज्य जो मूलतः चम्पापुरी के राजकुमार थे, उन्होंने इसी पर्वत को अपनी साधना भूमि के रूप में चुना था और अंततः यहीं निर्वाण को प्राप्त हुए थे. जैन मतावलंबियों के अनुसार वसुपूज्य के चरण चिन्ह अभी भी मंदार पर्वत के शिखर पर अधिष्ठापित है, हालांकि वैष्णव मतावलंबियों में यह चिह्न विष्णुपाद चिह्न के रूप में मान्य है.
पापहरणी कुण्ड की है विशेष महत्ता
पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार भी मंदार पर्वत अपने अंचल में 88 कुण्डों को समेटता था. इनमें से कई कुण्ड आज भी दर्शनीय हैं. इनमें सबसे बड़ा पर्वत के आधार पर अवस्थित पापहरणी कुण्ड है. मकर संक्राति एवं आशाढ़ शुक्ल की द्वितीया पर दूर-दूर से हजारों श्रद्धालु इस कुण्ड में स्नान करने आते हैं. इस कुण्ड को क्षीरसागर का प्रतीक मानते हुए इसके मध्य में शेशषय्या विष्णु का लक्ष्मीनारायण मंदिर बनाया गया है, जो इस कुण्ड के आकर्षण और भव्यता को और बढ़ा देता है.
पर्वत के आधार स्थल पर सफा धर्म का सत्संग मंदिर है. जिसमें इस के मत प्रवर्तक स्वामी चन्दरदास के चरण चिह्न मौजूद है. इस मत के अनुयायियों के लिए यह मंदिर अधिवेशन केन्द्र के रूप में प्रयुक्त होता है. मंदार के पूरब में तलहटी में प्राचीन लखदीपा मंदिर का जीर्णावषश अवस्थित है, जहां दीपावली को एक लाख दीपों को प्रज्ज्वलित किया जाता है.
कहा जाता है कि 1505 इस्वी में चैतन्य महाप्रभु का मंदार आगमन हुआ था और उनका स्मृति स्वरूप उनके चरण चिह्न एक चबुतरे पर आज भी दर्शनीय है. इन स्थलों के अतिरिक्त भी पर्वत पर शिव, सिंहवाहिनी दुर्गा, महाकाली, नरसिंह आदि की सुन्दर मूर्तियां भी आसपास अवस्थित है.
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यहां साल में दो बार मेले का होता है आयोजन
मौजूदा वक्त में साल में दो बार पर्वत के परिसर में भव्य मेले का आयोजन होता है. मकर संक्रांति पर दूर दूर से श्रद्धालु पापहरणी सरोवर में स्नान करने आते है और इस अवसर पर एक पक्ष का मेला आयोजित होता है. पहले यह मेला बांसी मेला के नाम से लोक प्रसिद्ध था और इसकी भव्यता की चर्चा काफी दूर दूर तक प्रसिद्ध थी. वर्तमान में इसे प्रशासन के सहयोग से सांस्थानिक रूप दिया गया और अब यह प्रत्येक वर्श मंदार महोत्सव के नाम से आयोजित होता है.
वहीं, आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया को भी यहां एकदिवसीय मेले का आयोजन होता है. इस मौके पर मंदार से 5 किलोमीटर पूरब की ओर बांसी नगर में अवस्थित मधुसूदन मंदिर से रथयात्रा निकाली जाती है. इस क्रम में भगवान मधुसूदन की गजारूढ़ मूर्ति को पापहरणी सरोवर में स्नान कराने के लिए लाया जाता है. यह रथयात्रा जगन्नाथ पुरी की रथयात्रा की तर्ज पर होती है. लाखों की संख्या में श्रद्धालु इसमें भाग लेते हैं.
पर्यटन विकास करने को लेकर सरकार कर रही प्रयास
मंदार पर्वत को पर्यटन के महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में विकसित करने को लेकर सरकार लगातार प्रयास कर रही है. बड़ी संख्या में पर्यटक यहां घूमने आते हैं. पर्वत शिखर पर सुगम चढ़ाई को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 21 सितंबर 2021 को रोपवे का उद्घाटन कर इसकी शुरूआत की. इसके साथ ही यहां इको डायवर्सिटी पार्क भी बनाया गया है.