बांका : जिले के क्षेत्रफल का बड़ा भूभाग जंगली और पठारी है. जंगली इलाकों में रहने वाले अधिकांश आबादी गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वालों की है. इनकी आजीविका का मुख्य स्रोत जंगल ही है. जिले के चांदन, कटोरिया, फुल्लीडुमर, बौंसी सहित अन्य प्रखंडों के जंगली इलाकों में आदिवासी, पुझार, लैया सहित अन्य समुदाय के लोग रहते है. इनका मुख्य पेशा जंगल से सखुआ के पेड़ का पत्ता चुनकर लाना और पत्तल बनाकर दुकानों में बेचना है, ऐसे परिवारों का पूरा ताना-बाना जंगल के ही इर्द-गिर्द तक ही सिमट कर रह गया है.
लॉकडाउन ने जीवन को किया अस्त-व्यस्त
लॉकडाउन की मार चांदन प्रखंड के आजादनगर गांव में रहने वाले लोगों के जीवन को पूरी तरह से प्रभावित किया है. लॉकडाउन की वजह से शादी-विवाह से लेकर सभी प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान बंद हैं. इस प्रकार के आयोजनों में पत्तल की काफी डिमांड होती है. पत्रिका देवी बताती हैं कि इस गांव के 60 से 70 परिवार पत्तल बनाने के काम में जुड़े हुए हैं. 100 पत्तल बनाने पर 17 रुपए मिलते थे. रोजाना 100 रुपए की कमाई हो जाती थी. लेकिन अब पत्तल का डिमांड ही नहीं है, ऐसी विकट परिस्थिति आन पड़ी है कि परिवार का भरण-पोषण कर पाना मुश्किल हो गया है.
कुछ भी काम करने को तैयार है ग्रामीण
परिवार के लिए दो जून की रोटी जुगाड़ करना काफी मुश्किल भरा डगर साबित हो रहा है. आजाद नगर के ग्रामीण कुछ भी काम करने को तैयार हैं, ताकि परिवार का पेट भरा जा सके. हरकुल पुझार, छोटू पुझार सहित अन्य बताते हैं कि परिवार को चलाने के लिए मिट्टी कटाई का काम शुरू किया है. मिट्टी काटने के एवज में रोजाना कुछ रुपए मिल जाते हैं, जिससे परिवार का गुजारा चल रहा है. सरकारी मदद नहीं मिल पा रहा है.
जिला प्रशासन को पहल करने की आवश्यकता
जिला प्रशासन चाहे तो पत्तल बनाने वाले परिवारों के लिए रोजगार मुहैया करा सकता हैं. जिले के अलग-अलग प्रखंडों में प्रवासी मजदूरों के लिए क्वारंटिंन सेंटर बनाया गया है, जहां रोजाना हजारों लोगों को खाना परोसा जा रहा है. यहां थर्मोकोल का उपयोग किया जा रहा है. अगर सखुआ का पत्तल उपयोग में लाया जाए, तो सैकड़ों परिवार को रोजगार का अवसर भी मिलेगा और परिवार का भरण पोषण भी हो सकेगा. इसके लिए जिला प्रशासन को रणनीति बनाकर पहल करने की जरूरत है, ताकि गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वाले परिवार लॉकडाउन की मार से अपने आप को बचा सके.