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कोरोना काल में छूटा रोजगार तो बत्तख पालन से बने 'आत्मनिर्भर', अब दूसरों को बना रहे स्वावलंबी

कोरोना काल में बांका के धीरेंद्र पांडेय (Dhirendra Pandey of Banka) पूरी तरह बेरोजगार हो चुके थे. जिसके बाद धीरेंद्र पांडेय ने अपने मजबूत इरादों से बत्तख पालन के जरिए खुद स्वावलंबी बनाया और अब दूसरे बेरोजगार लोगों को भी आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रहे हैं. पढ़ें पूरी रिपोर्ट..

बत्तख पालन का व्यवसाय
बत्तख पालन का व्यवसाय
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Published : Jan 20, 2022, 8:51 AM IST

बांका: साल 2020 में बिहार में कोरोना काल (Corona Period in Bihar) से पहले बांका जिले के चांदन के पाण्डेयडीह निवासी धीरेंद्र पांडेय सब्जी की खेती कर अपना और अपने पूरे परिवार का पालन पोषण किया करते थे, लेकिन कोरोना का रूप विकराल होते होते उनका सब्जी का व्यापार पूरी तरह ठप पड़ गया, जिसके बाद उनके सामने बेरोजगारी की स्थिति काफी बढ़ गई और पूरा परिवार आर्थिक तंगी का शिकार हो गया.

इसी बीच उसे बत्तख पालन की जानकारी मिली और कोरोना की रफ्तार कम होते देख उन्होंने बत्तख पालन का व्यवसाय (Duck Farming Business) शुरू कर दिया गया. धीरेंद्र पांडेय ने अपनी ही निजी जमीन पर पोखर बनवाकर मछली पालन के साथ-साथ बत्तख पालन का व्यवसाय भी शुरू किया गया. इस दौरान उनका व्यवसाय पूरी तरह ठीक चल पड़ा और आज उनकी कमाई अच्छी हो रही है. पूरा परिवार उसी बत्तख पालन से चल रहा है.

बांका में बत्तख पालन

बांका में बत्तख पालन (Duck farming in Banka) करना वाले धीरेंद्र पांडे ने बताया कि वह उड़ीसा से बत्तख लाते हैं, जिसके पालन पोषण में उन्हें काफी मशक्कत के साथ कर्ज लेकर देखभाल करनी पड़ती है. एक बत्तख की कीमत 250 रुपए होता है, जबकि लाने तक में उसे 350 रुपए हो जाता है. पालन पोषण के बाद एक बत्तख की बिक्री 500 से 600 में होती है. इतना ही नहीं बत्तख के अंडे भी 10 पीस आसानी से बिक जाते हैं, इसके लिए बाहर के व्यापारी भी आते हैं.

ये भी पढ़ें- Corona Effect: बक्सर में मुरझाए किसानों के चेहरे, कहा- 'अगर लॉकडाउन लगा तो भुखमरी की कगार पर आ जाएगा परिवार'

''सरकार स्वरोजगार के लिए पूंजी और प्रशिक्षण की बात करती है, लेकिन करीब डेढ़ साल से हम बत्तख पालन का यह धंधा कर रहे हैं, लेकिन आज तक उसके इस व्यवसाय को देखने और मनोबल को बढ़ाने तक कोई नहीं आया है. अगर हमें सरकारी ऋण के साथ समुचित प्रशिक्षण मिल जाए, तो इस धंधे को और भी आगे ले जाएंगे. साथ ही साथ अपने क्षेत्र के अगल-बगल के युवाओं को भी इस धंधे की ओर प्रेरित करेंगे.''- धीरेंद्र पांडे, बत्तख पालक

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बांका: साल 2020 में बिहार में कोरोना काल (Corona Period in Bihar) से पहले बांका जिले के चांदन के पाण्डेयडीह निवासी धीरेंद्र पांडेय सब्जी की खेती कर अपना और अपने पूरे परिवार का पालन पोषण किया करते थे, लेकिन कोरोना का रूप विकराल होते होते उनका सब्जी का व्यापार पूरी तरह ठप पड़ गया, जिसके बाद उनके सामने बेरोजगारी की स्थिति काफी बढ़ गई और पूरा परिवार आर्थिक तंगी का शिकार हो गया.

इसी बीच उसे बत्तख पालन की जानकारी मिली और कोरोना की रफ्तार कम होते देख उन्होंने बत्तख पालन का व्यवसाय (Duck Farming Business) शुरू कर दिया गया. धीरेंद्र पांडेय ने अपनी ही निजी जमीन पर पोखर बनवाकर मछली पालन के साथ-साथ बत्तख पालन का व्यवसाय भी शुरू किया गया. इस दौरान उनका व्यवसाय पूरी तरह ठीक चल पड़ा और आज उनकी कमाई अच्छी हो रही है. पूरा परिवार उसी बत्तख पालन से चल रहा है.

बांका में बत्तख पालन

बांका में बत्तख पालन (Duck farming in Banka) करना वाले धीरेंद्र पांडे ने बताया कि वह उड़ीसा से बत्तख लाते हैं, जिसके पालन पोषण में उन्हें काफी मशक्कत के साथ कर्ज लेकर देखभाल करनी पड़ती है. एक बत्तख की कीमत 250 रुपए होता है, जबकि लाने तक में उसे 350 रुपए हो जाता है. पालन पोषण के बाद एक बत्तख की बिक्री 500 से 600 में होती है. इतना ही नहीं बत्तख के अंडे भी 10 पीस आसानी से बिक जाते हैं, इसके लिए बाहर के व्यापारी भी आते हैं.

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''सरकार स्वरोजगार के लिए पूंजी और प्रशिक्षण की बात करती है, लेकिन करीब डेढ़ साल से हम बत्तख पालन का यह धंधा कर रहे हैं, लेकिन आज तक उसके इस व्यवसाय को देखने और मनोबल को बढ़ाने तक कोई नहीं आया है. अगर हमें सरकारी ऋण के साथ समुचित प्रशिक्षण मिल जाए, तो इस धंधे को और भी आगे ले जाएंगे. साथ ही साथ अपने क्षेत्र के अगल-बगल के युवाओं को भी इस धंधे की ओर प्रेरित करेंगे.''- धीरेंद्र पांडे, बत्तख पालक

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