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बांका: उदयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ चैती छठ का समापन - उगते सूर्य को अर्घ्य दिया गया

बांका जिले के कई प्रखंडों में लोकआस्था का महापर्व छठ महापर्व मनाया गया. व्रतियों ने बहुत ही पवित्रता के साथ लोक आस्था का महापर्व छठ व्रत को मनाया.

उदयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ चैती छठ का समापन
उदयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ चैती छठ का समापन
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Published : Apr 19, 2021, 9:19 AM IST

बांका: जिले के कई प्रखंडों में लोकआस्था का महापर्व छठ उदयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के साथ ही संपन्न हो गया. बांका में चैती छठ का आयोजन में कोरोना संक्रमण का भी खास ध्यान रखा गया. नदी और तालाब किनारे जाकर ज्यादातर व्रतियों ने इस पर्व को मनाया और भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया. इसी के साथ ही आस्था का यह महापर्व संपन्न हो गया.

ये भी पढ़ें- बिहार में महापर्व छठ की धूम, छठव्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को दिया अर्घ्य

साल में 2 बार होता है छठ महापर्व
साल में दो बार छठ व्रत का अनुष्ठान किया जाता है. पहला कार्तिक मास में और दूसरा चैत्र मास में यह पर्व चार दिनों का अनुष्ठान है. इस पर्व के पहले दिन छठ व्रती पवित्र नदी और सरोवर में स्नान करते हैं. और उसके बाद अरवा चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी बनाकर इस प्रसाद का भोग लगाया जाता है. लोग आस्था का प्रसाद ग्रहण करते हैं. इसी के साथ ही व्रतियों का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही यह खत्म हो जाता है.

ये भी पढ़ें- चैती छठ पर्व पर कोरोना का असर, व्रतियों ने घर के आंगन में दिया अर्घ्य

पवित्रता का प्रतीक है 'छठ' महापर्व
महापर्व छठ पवित्रता का प्रतीक है. काफी संयम के साथ इस पर्व को मनाया जाता है. इसमे मौसमी फलों और ठेकुआ का प्रसाद तैयार किया जाता है. छठव्रती जल में खड़ा होकर भगवान की उपासना करते हैं. हांलाकि इस बार भी कोरोना संक्रमण के कारण बहुत ही सादगी से इस पर्व को मनाया गया. बांका के कुछ व्रती ने बताया कि इस महामारी को दुनिया से खत्म करने की कामना उन लोगों ने भगवान भास्कर से की है. बांका जिले में जिला मुख्यालय के साथ कटोरिया, रजौन, अमरपुर, पंजवारा, धोरैया, बोसी सहित कई प्रखंडों में छठ महापर्व शांति पूर्वक और सद्भाव पूर्वक मनाया गया.

बांका: जिले के कई प्रखंडों में लोकआस्था का महापर्व छठ उदयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के साथ ही संपन्न हो गया. बांका में चैती छठ का आयोजन में कोरोना संक्रमण का भी खास ध्यान रखा गया. नदी और तालाब किनारे जाकर ज्यादातर व्रतियों ने इस पर्व को मनाया और भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया. इसी के साथ ही आस्था का यह महापर्व संपन्न हो गया.

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साल में 2 बार होता है छठ महापर्व
साल में दो बार छठ व्रत का अनुष्ठान किया जाता है. पहला कार्तिक मास में और दूसरा चैत्र मास में यह पर्व चार दिनों का अनुष्ठान है. इस पर्व के पहले दिन छठ व्रती पवित्र नदी और सरोवर में स्नान करते हैं. और उसके बाद अरवा चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी बनाकर इस प्रसाद का भोग लगाया जाता है. लोग आस्था का प्रसाद ग्रहण करते हैं. इसी के साथ ही व्रतियों का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही यह खत्म हो जाता है.

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पवित्रता का प्रतीक है 'छठ' महापर्व
महापर्व छठ पवित्रता का प्रतीक है. काफी संयम के साथ इस पर्व को मनाया जाता है. इसमे मौसमी फलों और ठेकुआ का प्रसाद तैयार किया जाता है. छठव्रती जल में खड़ा होकर भगवान की उपासना करते हैं. हांलाकि इस बार भी कोरोना संक्रमण के कारण बहुत ही सादगी से इस पर्व को मनाया गया. बांका के कुछ व्रती ने बताया कि इस महामारी को दुनिया से खत्म करने की कामना उन लोगों ने भगवान भास्कर से की है. बांका जिले में जिला मुख्यालय के साथ कटोरिया, रजौन, अमरपुर, पंजवारा, धोरैया, बोसी सहित कई प्रखंडों में छठ महापर्व शांति पूर्वक और सद्भाव पूर्वक मनाया गया.

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