अररिया: जिले के फारबिसगंज अनुमंडल में 127 एकड़ में हवाई अड्डे की शुरुआत होनी थी. जिससे कि व्यापार के क्षेत्र से इसका उपयोग किया जा सके. साथ ही इससे क्षेत्र के विकास के साथ-साथ यहां के लोगों को रोज़गार भी मिल सके. लेकिन अब ये हवाई अड्डा इतिहास के पन्नों में दफन होता हुआ नजर आ रहा है. स्थानीय लोगों ने नेताओं को इसके लिए जिम्मेदार बताया है.
अररिया जिला मुख्यालय के फारबिसगंज अनुमंडल में 1962 में भारत चीन युद्ध के दौरान इस हवाई अड्डे का इस्तेमाल पहली बार किया गया था. द्वितीय विश्वयुद्ध और 1962 में भारत चीन युद्ध का गवाह बना ये एतिहासिक हवाई अड्डा का 54 वर्ष बाद भी जीर्णोद्धार नहीं हो सका. देश के पहले प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भागलपुर सेंट्रल जेल के कैदियों से इस अर्धनिर्मित सैन्य हवाई अड्डे का निर्माण कराया था. सेंटर रीजनल एयर कनेक्टिविटी स्कीम के तहत नागरिक उड्डयन की ओर से 50 छोटे एयरपोर्ट को अपग्रेड करने की घोषणा की गई जिसमें चार बिहार के हैं और इसमें फारबिसगंज हवाई अड्डे का भी नाम शामिल है.
हवाई अड्डा बन जाता तो विकास होता
हालांकि फारबिसगंज के लोग बताते हैं कि अगर ये हवाई अड्डा बन जाता तो यहां से व्यापार के लिए जो भी लोग नेपाल या फिर कहीं दूसरे शहर में जाने के लिए बागडोगरा, नेपाल या पटना से फ्लाइट पकड़ने जाते हैं, उनकी परेशानी कम हो जाती. हवाई अड्डे से जिले का विकास होता, लोगों के लिए रोजगार का अवसर बढ़ता और पलायन कम होता. यहां के युवा ने बताया कि चुनावी माहौल में हवाई अड्डे का जिक्र नेताओं के जुबान पर होता भी नहीं है. यहां के लोकल जनप्रतिनिधि ने कभी इस ओर ध्यान आकृष्ट कराया ही नहीं है.
हवाई अड्डे के जमीन में हो रही है खेती
इस मसले पर फारबिसगंज के विधायक मंचन केसरी से सवाल किया तो उन्होंने ने गोल मोल जवाब देते हुए कहा कि बहुत जल्द इस पर काम शुरू होगा. इस मसले को मैं विधानसभा में रख चुका हूं. बहुत जल्द काम भी शुरू होने वाला है पर ये जमीन फिलहाल भू माफियाओं के कब्जे में है और इसमें मक्के की खेती की जा रही है.