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'बिहार का मिनी ब्राजील' जहां हर-घर में हैं बेहतरीन फुटबॉलर - Sarna Football Club 1- football tournament till 15 August

जिले का झील टोला गांव जहां क्रिकेट नहीं फुटबॉल धर्म है. जहां हर घर में टीवी तो जरूर है. लेकिन उनमें सीरियल और आईपीएल नहीं बल्कि फीफा, यूरोपीयन लीग और एफएसएल के मैच देखे जाते हैं. जहां सचिन तेंदुलकर नहीं बल्कि पेले और सैयद अब्दुस समद भगवान हैं. पढ़ें इस गांव की दिलचस्प कहानी....

Mini Brazil in Purnia
Mini Brazil in Purnia
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Published : Jan 18, 2021, 4:49 PM IST

पूर्णिया: बात फुटबॉल की हो और जुबान पर ब्राजील का नाम न आए भला ये कैसे मुमकिन है ! दक्षिण अमेरिका महाद्वीप में बसा ब्राजील के छोटे से संस्करण की झलक आपको पूर्णिया के इस छोटे से गांव में भी दिख जाएगी. जहां हर कोई क्रिकेट का नहीं बल्कि फुटबॉल का दीवाना है. इस गांव में क्रिकेट नहीं फुटबॉल धर्म है. यहां के खिलाड़ियों के रोल मॉडल सचिन तेंदुलकर नहीं बल्कि महान ब्राजीलियन फुटबॉल खिलाड़ी पेले हैं.

फुटबॉल प्रैक्टिस
फुटबॉल प्रैक्टिस

पूर्णिया शहर से तीन किलोमीटर दूर उत्तरी छोर पर बसा झील टोला अपने वास्तविक नाम से जाने जाए के बजाए 'मिनी ब्राजील' के नाम से जाना जाता है. बिहार का ये गांव जो न सिर्फ फिट इंडिया मूवमेंट को मजबूत कर रहा है. बल्कि भविष्य के लिए फुटबॉल के माहिर खिलाड़ियों की एक ब्रिगेड भी खड़ी कर रहा है.

करीब 400 की आबादी वाले इस गांव में अधिकांश आदिवासी समाज से ताल्लुक रखते हैं. फुटबॉल इनके लिए महज एक खेल नहीं बल्कि एक धर्म है. विकास की परछाई से दूर, इलाके में 150 के करीब कच्चे और पक्के घर हैं. जहां बूढ़े से लेकर नौजवान सभी में फुटबॉल को लेकर एक अजब सी दीवानगी है. दूसरे, ग्रामीण और शहरी इलाकों की तरह यहां टेलीविजन तो जरूर है. मगर उनमें फिल्म या सीरियल की जगह फुटबॉल के लीग मैच देखे जाते हैं. चाहे वो यूरेपियन लीग हो या देसी एफएसएल. स्थानीय बताते हैं कि यहां बच्चे हो या बूढ़े या फिर नौजवान गपशप और गेम में अपना समय जाया करने के बजाए खाली वक्त में वे इलाके में मौजूद झील टोला ग्राउंड पर फुटबॉल खेलने या फिर देखने आते हैं.

देखें रिपोर्ट

यह भी पढ़ें: कुशल युवा कार्यक्रम के तहत गांव की लड़कियां भी बन रहीं स्मार्ट

5 किलोमीटर का सफर तय कर फुटबॉल मैच देखने आते हैं युवा
स्थानीय फुटबॉलर बताते हैं कि अहले सुबह युवाओं और बच्चों की दिनचर्या शुरू होती है. और शाम फुटबॉल की धुएंदार प्रैक्टिस के साथ समाप्त होती है. सिपाही टोला में रहने वाले एक फुटबॉलर बताते हैं कि इस गांव के नाम की चर्चा सुनकर वे भी दूसरों की तरह फुटबॉल का खेल देखने पहुंचते थे. उनकी उत्सुकता को देख उन्हें भी मौका दिया गया. इस तरह वे करीब 4 साल से स्थानीय टीम से खेल रहे हैं. कई राज्यस्तरीय और अंतरराज्यीय फुटबॉल टूर्नामेंट में खेल चुके हैं.

फुटबॉल के प्रति दिलचस्पी के पीछे का किस्सा है रोचक

गोलकिपींग की प्रैक्टिस करता गोलकीपर
गोलकिपींग की प्रैक्टिस करता गोलकीपर
स्थानीय आदिवासियों के लिए फुटबॉल के प्रति दिलचस्पी के पीछे एक रोचक किस्सा है. स्थानीय बताते हैं कि फुटबॉल के जादूगर कहे जाने वाले अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलर सैयद अब्दुस समद पूर्णिया जिला स्कूल के छात्र थे, और वे झील टोला स्थित ग्राउंड से निकलकर दुनिया भर के मुल्कों के बीच अपने हुनर का लोहा मनवाया. इसके बाद से ही फुटबॉल इस गांव के लिए महज खेल नहीं बल्कि एक दीवानगी सी बन गई. उसके बाद सैयद अब्दुस समद उनके हीरो बन गए.

आदिवासी युवा अब्दुस समद को न सिर्फ अपना हीरो मानते हैं. बल्कि उनका दर्जा इस गांव में रहने वाले हर फुटबॉलर के लिए भगवान से कम नहीं है. सभी खिलाड़ियों की बस यही चाहत है कि वो एक दिन अब्दुस समद बनकर देश के लिए खेले. वहीं, गांव में फुटबॉल की धमक बरकार रहे इसके लिए बीते 38 सालों से इस 'मिनी ब्राजील' की अपनी टीम सरना फुटबॉल क्लब 1- 15 अगस्त तक भव्य फुटबॉल टूर्नामेंट का आयोजन करता है. जिसमें प्रदेश सहित देश के दूसरे राज्यों और सीमावर्ती नेपाल की टीम हिस्सा लेती है.

सैयद अब्दुस समद
सैयद अब्दुस समद

1980 में सरना फुटबॉल क्लब का गठन
जिला फुटबॉल संघ के प्रशिक्षक रजनीश पांडेय बताते हैं कि फूटबॉल की दीवानगी को देखते हुए 1980 के दशक में गांव के लोगों ने सरना फुटबॉल क्लब का गठन किया. आर्थिक चुनौतियों से जूझने के बावजूद इस आदिवासी बस्ती से एक से बढ़कर एक अनगिनत फुटबॉल खिलाड़ी निकले. ऐसे ही खिलाड़ियों में से एक रहे फुटबॉल के जादूगर के नाम से दुनिया भर में मशहूर अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलर सैयद अब्दुस समद. एक वक्त जिनके गोल का समूची दुनिया कायल रही. उन्होंने कहा कि बाद में अब्दुस समद फुटबॉल क्लब नाम की क्लब भी बनाई गई. जिसमें बेहतर प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को शामिल किया जाता रहा. साथ ही बड़े स्तर पर कई फुटबॉल प्रतियोगिताएं हुई.

आदिवासी खिलाड़ियों में फुटबॉल की दिवानगी
आदिवासी खिलाड़ियों में फुटबॉल की दिवानगी

नेशनल लेवल पर खेल चुके हैं ये खिलाड़ी
वहीं, इसके बाद क्लब से फुटबॉल के कई धुरंधर निकले. जिनमें अब्दुल लतीस, नेपु दा, बीएन गांगुली, मो सोएब आलम और पदम् सिन्हा जैसे जाने-माने फुटबॉलर शामिल रहे. वहीं गुजरे 40 सालों में 'मिनी ब्राजील' ने फुटबॉल के माहिर खिलाड़ियों की एक बिग्रेड खड़ी कर दी है. जो अब तक अंडर 19, अंडर 17, अंडर 14 के साथ ही सीनियर नेशनल टीम में खेल चुके हैं. अंडर 19 बिहार टीम के दो बार कैप्टन रहे सरबर अली भी झील टोला से आते हैं. इसी टीम के आधा दर्जन खिलाड़ियों को उनके बेहतर प्रदर्शन के लिए सीएम नीतीश कुमार ने खेल सम्मान से नवाजा था.

फुटबॉल प्रैक्टिस
फुटबॉल प्रैक्टिस

सरकार से जिले में एक बेहतर ग्राउंड की मांग
इस आदिवासी गांव के खिलाड़ियों की सरकार से गुजारिश है कि क्रिकेट मैदान के तर्ज पर जिले में एक फुटबॉल के लिए भी बेहतर ग्राउंड बनाया जाए. जहां गांव के होनहार खिलाड़ियों को जरूरी संसाधन मिल सकें.

पूर्णिया: बात फुटबॉल की हो और जुबान पर ब्राजील का नाम न आए भला ये कैसे मुमकिन है ! दक्षिण अमेरिका महाद्वीप में बसा ब्राजील के छोटे से संस्करण की झलक आपको पूर्णिया के इस छोटे से गांव में भी दिख जाएगी. जहां हर कोई क्रिकेट का नहीं बल्कि फुटबॉल का दीवाना है. इस गांव में क्रिकेट नहीं फुटबॉल धर्म है. यहां के खिलाड़ियों के रोल मॉडल सचिन तेंदुलकर नहीं बल्कि महान ब्राजीलियन फुटबॉल खिलाड़ी पेले हैं.

फुटबॉल प्रैक्टिस
फुटबॉल प्रैक्टिस

पूर्णिया शहर से तीन किलोमीटर दूर उत्तरी छोर पर बसा झील टोला अपने वास्तविक नाम से जाने जाए के बजाए 'मिनी ब्राजील' के नाम से जाना जाता है. बिहार का ये गांव जो न सिर्फ फिट इंडिया मूवमेंट को मजबूत कर रहा है. बल्कि भविष्य के लिए फुटबॉल के माहिर खिलाड़ियों की एक ब्रिगेड भी खड़ी कर रहा है.

करीब 400 की आबादी वाले इस गांव में अधिकांश आदिवासी समाज से ताल्लुक रखते हैं. फुटबॉल इनके लिए महज एक खेल नहीं बल्कि एक धर्म है. विकास की परछाई से दूर, इलाके में 150 के करीब कच्चे और पक्के घर हैं. जहां बूढ़े से लेकर नौजवान सभी में फुटबॉल को लेकर एक अजब सी दीवानगी है. दूसरे, ग्रामीण और शहरी इलाकों की तरह यहां टेलीविजन तो जरूर है. मगर उनमें फिल्म या सीरियल की जगह फुटबॉल के लीग मैच देखे जाते हैं. चाहे वो यूरेपियन लीग हो या देसी एफएसएल. स्थानीय बताते हैं कि यहां बच्चे हो या बूढ़े या फिर नौजवान गपशप और गेम में अपना समय जाया करने के बजाए खाली वक्त में वे इलाके में मौजूद झील टोला ग्राउंड पर फुटबॉल खेलने या फिर देखने आते हैं.

देखें रिपोर्ट

यह भी पढ़ें: कुशल युवा कार्यक्रम के तहत गांव की लड़कियां भी बन रहीं स्मार्ट

5 किलोमीटर का सफर तय कर फुटबॉल मैच देखने आते हैं युवा
स्थानीय फुटबॉलर बताते हैं कि अहले सुबह युवाओं और बच्चों की दिनचर्या शुरू होती है. और शाम फुटबॉल की धुएंदार प्रैक्टिस के साथ समाप्त होती है. सिपाही टोला में रहने वाले एक फुटबॉलर बताते हैं कि इस गांव के नाम की चर्चा सुनकर वे भी दूसरों की तरह फुटबॉल का खेल देखने पहुंचते थे. उनकी उत्सुकता को देख उन्हें भी मौका दिया गया. इस तरह वे करीब 4 साल से स्थानीय टीम से खेल रहे हैं. कई राज्यस्तरीय और अंतरराज्यीय फुटबॉल टूर्नामेंट में खेल चुके हैं.

फुटबॉल के प्रति दिलचस्पी के पीछे का किस्सा है रोचक

गोलकिपींग की प्रैक्टिस करता गोलकीपर
गोलकिपींग की प्रैक्टिस करता गोलकीपर
स्थानीय आदिवासियों के लिए फुटबॉल के प्रति दिलचस्पी के पीछे एक रोचक किस्सा है. स्थानीय बताते हैं कि फुटबॉल के जादूगर कहे जाने वाले अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलर सैयद अब्दुस समद पूर्णिया जिला स्कूल के छात्र थे, और वे झील टोला स्थित ग्राउंड से निकलकर दुनिया भर के मुल्कों के बीच अपने हुनर का लोहा मनवाया. इसके बाद से ही फुटबॉल इस गांव के लिए महज खेल नहीं बल्कि एक दीवानगी सी बन गई. उसके बाद सैयद अब्दुस समद उनके हीरो बन गए.

आदिवासी युवा अब्दुस समद को न सिर्फ अपना हीरो मानते हैं. बल्कि उनका दर्जा इस गांव में रहने वाले हर फुटबॉलर के लिए भगवान से कम नहीं है. सभी खिलाड़ियों की बस यही चाहत है कि वो एक दिन अब्दुस समद बनकर देश के लिए खेले. वहीं, गांव में फुटबॉल की धमक बरकार रहे इसके लिए बीते 38 सालों से इस 'मिनी ब्राजील' की अपनी टीम सरना फुटबॉल क्लब 1- 15 अगस्त तक भव्य फुटबॉल टूर्नामेंट का आयोजन करता है. जिसमें प्रदेश सहित देश के दूसरे राज्यों और सीमावर्ती नेपाल की टीम हिस्सा लेती है.

सैयद अब्दुस समद
सैयद अब्दुस समद

1980 में सरना फुटबॉल क्लब का गठन
जिला फुटबॉल संघ के प्रशिक्षक रजनीश पांडेय बताते हैं कि फूटबॉल की दीवानगी को देखते हुए 1980 के दशक में गांव के लोगों ने सरना फुटबॉल क्लब का गठन किया. आर्थिक चुनौतियों से जूझने के बावजूद इस आदिवासी बस्ती से एक से बढ़कर एक अनगिनत फुटबॉल खिलाड़ी निकले. ऐसे ही खिलाड़ियों में से एक रहे फुटबॉल के जादूगर के नाम से दुनिया भर में मशहूर अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलर सैयद अब्दुस समद. एक वक्त जिनके गोल का समूची दुनिया कायल रही. उन्होंने कहा कि बाद में अब्दुस समद फुटबॉल क्लब नाम की क्लब भी बनाई गई. जिसमें बेहतर प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को शामिल किया जाता रहा. साथ ही बड़े स्तर पर कई फुटबॉल प्रतियोगिताएं हुई.

आदिवासी खिलाड़ियों में फुटबॉल की दिवानगी
आदिवासी खिलाड़ियों में फुटबॉल की दिवानगी

नेशनल लेवल पर खेल चुके हैं ये खिलाड़ी
वहीं, इसके बाद क्लब से फुटबॉल के कई धुरंधर निकले. जिनमें अब्दुल लतीस, नेपु दा, बीएन गांगुली, मो सोएब आलम और पदम् सिन्हा जैसे जाने-माने फुटबॉलर शामिल रहे. वहीं गुजरे 40 सालों में 'मिनी ब्राजील' ने फुटबॉल के माहिर खिलाड़ियों की एक बिग्रेड खड़ी कर दी है. जो अब तक अंडर 19, अंडर 17, अंडर 14 के साथ ही सीनियर नेशनल टीम में खेल चुके हैं. अंडर 19 बिहार टीम के दो बार कैप्टन रहे सरबर अली भी झील टोला से आते हैं. इसी टीम के आधा दर्जन खिलाड़ियों को उनके बेहतर प्रदर्शन के लिए सीएम नीतीश कुमार ने खेल सम्मान से नवाजा था.

फुटबॉल प्रैक्टिस
फुटबॉल प्रैक्टिस

सरकार से जिले में एक बेहतर ग्राउंड की मांग
इस आदिवासी गांव के खिलाड़ियों की सरकार से गुजारिश है कि क्रिकेट मैदान के तर्ज पर जिले में एक फुटबॉल के लिए भी बेहतर ग्राउंड बनाया जाए. जहां गांव के होनहार खिलाड़ियों को जरूरी संसाधन मिल सकें.

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