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शब्दों की मर्यादा लांघ रहे बिहार के नेता, आने वाले दिनों में क्या बच पाएगी राजनीतिक शुचिता

यह बिहार है सब ठंडा कर देंगे.. सीबीआई केंद्र सरकार की पसंदीदा नर्तकी है.. जेल जाना लालू यादव के परिवार की फितरत है.चच दरअसल यह किसी हिंदी या भोजपुरी फिल्मों के डायलॉग नहीं हैं, ये डायलॉग हैं सियासी कर्णधारों के. जो अपनी जुबान की बदौलत बिहार की राजनीति को अलग पहचान देना चाहते हैं.ऐसे में इन शब्दों के प्रयोग से किस तरह की पहचान मिलेगी, इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है. लेकिन हां, यह बात जरूर है कि इन नेताओं के बयान से कहीं न कहीं शब्दों की मर्यादा तो जरुर टूट रही है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

बिहार में नेताओं की शब्दों की टूटती मर्यादा
बिहार में नेताओं की शब्दों की टूटती मर्यादा
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Published : Aug 27, 2022, 9:01 PM IST

पटना: बिहार में महागठबंधन की सरकार (Mahagathbandhan Government In Bihar) बनने के बाद सूबे में बीजेपी महागठबंधन के नेताओं पर और नीतीश सरकार में शामिल नेता बीजेपी नेता के ऊपर राजनीतिक बयानबाजी कर रहे हैं. इसमें केंद्र सरकार और केंद्रीय एजेंसियां भी शामिल हैं. लेकिन गौर करने वाली बात इसमें ये है कि बिहार के नेता जिस शब्दों का इसतेमाल कर रहे हैं, उसे कहीं से शालीन और मार्यादित भाषा आप नहीं कह सकते. दरअसल राजनीतिक रूप से देश के सबसे उर्वर राज्यों में से एक बिहार में राजनीति का घटनाक्रम बदलते ही रहता है. या यूं कहे कि बिहार की राजनीति के बिना देश की राजनीति लगभग अधूरी मानी जाती है तो गलत नहीं होगा. क्योंकि बिहार से जो बातें निकलती है उसे पूरा देश सुनता है.

ये भी पढ़ें- तेजस्वी यादव पर सम्राट चौधरी का तंज, डिप्टी सीएम सड़क छाप गुंडे की तरह दे रहे हैं बयान

बिहार में शब्दों की टूटती मर्यादा : बिहार में शायद ही कोई ऐसा दिन है, जिस दिन बिहार में कोई ऐसी राजनीतिक घटनाक्रम न हो, जिसे पूरा देश नहीं सुन रहा हो या देश की उसमें कोई दिलचस्पी न हो. पिछले कुछ दिनों से राजनीतिक कैलेंडर काफी तेजी से बिहार में पलटा है. एक गठबंधन खत्म हुआ तो दूसरा गठबंधन सत्तासीन हुआ. जाहिर है कुछ नेताओं के लिए यह झटका रहा तो कुछ के लिए लॉटरी के लगने जैसा रहा. राजनैतिक सरगर्मियां के बीच सियासी नेताओं के बोल बच्चन भी बिगड़ते चले गए, तरह-तरह के शब्द लोगों को सुनने को मिलने लगे. अगर नेताओं के बयान पर गौर करें तो कोई भी दल इससे अछूता नहीं है, करीब-करीब हर दल के नेताओं ने शब्दों की मर्यादा को लांघने का काम किया है. गौरतलब है कि राजनीतिक घटनाक्रम के बीच कुछ ऐसी भी घटनाएं हुई जिसके बाद नेताओं के बयान सामने आने लगे.

बिहार में बयानवीरों की नहीं है कमी : बिहार में जब बीजेपी-जदयू की सरकार गिरी और महागठबंधन की सरकार बनी तो इसी दरमियान सीबीआई की एंट्री हुई, सीबीआई की एंट्री के बाद तमाम दलों के नेता मुखर हो उठे और अपने-अपने शब्दों के बाण चलाने लगे. सीबीआई की कार्रवाई के बाद डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव का बयान काफी चर्चा में रहा जिसमें उन्होंने एक प्रेस कॉंन्फ्रेंस में यह कहा था कि ''यह बिहार है.. सब ठंडा कर देंगे''. तेजस्वी ने इन शब्दों का इस्तेमाल चाहे जिस किसी के लिए, जिस परिप्रेक्ष्य के लिए किया हो, लेकिन उनका यह बयान काफी सुर्खियों में रहा. न केवल तेजस्वी यादव बल्कि कई ऐसे नेता है जिन्होंने ऐसे-ऐसे बयान दिए जो विभिन्न मीडिया हाउस के हेडलाइंस बनते चले गए, अगर तारीख पर गौर करें तो 25 अगस्त को तेजस्वी के साथ ही कांग्रेस समर्थक माने जाने वाले आचार्य प्रमोद कृष्णन ने ट्वीट करते हुए लिखा कि- ''सीबीआई केंद्र की पसंदीदा नर्तकी है''. उसी दिन बिहार में बीजेपी के प्रमुख नेता और राज्यसभा सांसद सुशील मोदी का कहना था कि- ''जेल जाना और केस लड़ना लालू परिवार की फितरत है''.

बिहार में CBI जांच पर RJD के बिगड़े सुर : 26 अगस्त को पूर्वर्ती बीजेपी-जदयू सरकार में बीजेपी के कोटे से मंत्री रहे रामसूरत राय ने कहा कि तेजस्वी पर गुंडा एक्ट लगना चाहिए. जबकि उसी दिन 26 अगस्त की सुबह राजद के थिंक टैंक माने जाने वाले राज्यसभा सांसद मनोज झा का सीबीआई के अधिकारियों के तरफ इशारे-इशारे में यह कहना है कि आप के भी बाल बच्चे हैं, काफी चर्चा में रहा. वरिष्ठ समाजवादी विचारक पुष्पेंद्र कहते हैं, मशहूर दार्शनिक नित्से का मानना था कि इंसान स्वभाव से ही अनैतिक होता है. वह कहते हैं कि एक इंसान के अंदर सारे गुण होते हैं, सवाल यह है कि सत्ता किन बिंदुओ को बढ़ावा दे रहा है. आजादी की लड़ाई में इस बात का अहसास था कि भारतीय समाज जनतंत्र की प्रक्रिया से गुजरा नहीं है, इसमें लोकतांत्रिक मूल्यों का अभाव है.

'महात्मा गांधी का यह मानना था कि लक्ष्य कितना अहम है और उसे पाने के लिए हम क्या उपाय कर रहे हैं, साधन के ऊपर सुचिता की जो डोर है, वह समाज के जनतांत्रिक करण का एक हिस्सा है. लेकिन अगर उसके बाद की राजनीति को देखें तो इसमें क्या हुआ? पूरी जनतांत्रिक प्रक्रिया पार्टी पर आधारित है. इसमें एक दौर कांग्रेस का था, इसमें इस बात पर यह जोर था कि आपस में शालीनता से और भद्र शब्दों का इस्तेमाल हो. लेकिन समाज में जो शब्दों का इस्तेमाल था, उसके अन्य निर्मूलन के लिए प्रयास कम हुआ.' - पुष्पेंद्र, समाजवादी विचारक

नेताओं की जुबान पर नहीं है लगाम : कभी प्रदेश की राजनीति में काफी चर्चित रहे और अभी फिलहाल राजनीति से विराम ले चुके राजनेता नवल शर्मा कहते हैं, वर्तमान राजनीति में शुचिता की खोज ही बेमानी है, राजनीति के जो आज के किरदार हैं, उनसे शुचिता की अपेक्षा करना बेमानी है. आजादी के तुरंत बाद की राजनीति के दौर को देखें और आज की राजनीति को देखें तो जमीन आसमान का अंतर है. जो विधायिका पहले भारतीय जनता के मूलभूत सवाल से गूंजती रहती थी, आज उस विधायिका के चरित्र को देखकर देश का लोकतंत्र शर्मसार है.

'मेरा मानना है कि राजनीति में जो शब्दों की गिरावट है, उसका सीधा संबंध व्यक्ति का अपना दृष्टिकोण, जनता का चुनाव का नजरिया, समग्र राजनीतिक ढांचा, इन सारी बातों से मिलकर तैयार होता है. उदाहरण के तौर पर हाल ही में जर्मनी के रक्षा मंत्री को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा, वह इसलिए कि उन्होंने जो पीएचडी की थीसिस लिखी थी, वह पता चला कि नकल की हुई थी. मुझे लगता है कि पश्चिमी देशों में शुचिता और नैतिकता आज भी महत्वपूर्ण है. हमारे यहां यह सब बेमानी है. हमारे यहां येन-केन प्रकारेण सत्ता में आना, सत्ता में बने रहना, इसके लिए जनता को भ्रम में डालना अवसरवादी गठजोड़ करना, अपनी राजनीतिक रोटी सेंकना, यही भारतीय लोकतंत्र का मूल मंत्र हो गया है.' - नवल, राजनीतिक विश्लेषक

बिहार में नेताओं की शब्दों की टूटती मर्यादा : ऐसा नहीं है कि शब्दों के साथ ऐसा हेर-फेर पहली बार हुआ है. 2015 में भी जब बिहार में विधानसभा का चुनाव था तो उस वक्त भी कई विवादित बयान दिए गए थे, जो चर्चा में रहे. तब के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुजफ्फरपुर की रैली के साथ बिहार चुनाव प्रचार का आगाज किया था. तब उन्होंने नीतीश कुमार के ऊपर प्रहार करते हुए कहा था कि नीतीश कुमार के डीएनए में ही प्रॉब्लम है. पीएम मोदी के इस बयान को नीतीश कुमार और उनके सहयोगी लालू यादव ने काफी हवा भी दी थी और इसे बिहारियों का अपमान बताया था.

PM मोदी के DNA वाले बयान पर मचा था घमासान : वैसे ही उत्तर प्रदेश के दादरी में कथित तौर पर बीफ खाने के संदेह पर अखलाक नामक व्यक्ति की हत्या होने के बाद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने एक विवादित बयान दे दिया था. जिसमें उन्होंने कहा था कि हिंदू भी खाते हैं, बाद में लालू पलट गए थे और उन्होंने कहा कि बीफ से उनका मतलब भैंस जैसे जानवरों के मांस से है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा था कि उनके अंदर शैतान घुसा था जिसने उनसे ऐसी बातें बुलवा दी. लालू प्रसाद के इस बयान के बाद पीएम मोदी का एक और बयान चर्चा में था जब उन्होंने कहा था कि शैतान को लालू का पता कैसे चला. इतना ही नहीं बयानों और शब्दों के तीरे यहां तक ही नहीं रुके थे.

लालू यादव भी ऐसे बयान देने में हैं माहिर : पीएम मोदी की लालू के संदर्भ में शैतान शब्द का प्रयोग किए जाने के बाद लालू प्रसाद ने पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए कहा था कि यदि वह शैतान है तो मोदी ब्रह्म पिशाच हैं. 2015 के तीन चरणों के चुनाव के बाद बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी प्रचार को नया रंग देने की कोशिश की थी और बिहार के बगहा की रैली में कहा था कि अगर बिहार में बीजेपी हार जाएगी तो पटाखे पाकिस्तान में जलेंगे, हालांकि इस बयान के बाद अमित शाह को चुनाव आयोग की तरफ से नोटिस भी दी गई थी. कहने का मतलब है कि नेता अपने फायदे और वोटों के ध्रुवीकरण के लिए किसी भी सीमा को लांघ सकते हैं, और शब्दों की मर्यादा तो इन नेताओं के लिए कोई मायने नहीं रखते, और ऐसे में शब्दों की शुचिता की बात करना तो बेमानी ही है.

पटना: बिहार में महागठबंधन की सरकार (Mahagathbandhan Government In Bihar) बनने के बाद सूबे में बीजेपी महागठबंधन के नेताओं पर और नीतीश सरकार में शामिल नेता बीजेपी नेता के ऊपर राजनीतिक बयानबाजी कर रहे हैं. इसमें केंद्र सरकार और केंद्रीय एजेंसियां भी शामिल हैं. लेकिन गौर करने वाली बात इसमें ये है कि बिहार के नेता जिस शब्दों का इसतेमाल कर रहे हैं, उसे कहीं से शालीन और मार्यादित भाषा आप नहीं कह सकते. दरअसल राजनीतिक रूप से देश के सबसे उर्वर राज्यों में से एक बिहार में राजनीति का घटनाक्रम बदलते ही रहता है. या यूं कहे कि बिहार की राजनीति के बिना देश की राजनीति लगभग अधूरी मानी जाती है तो गलत नहीं होगा. क्योंकि बिहार से जो बातें निकलती है उसे पूरा देश सुनता है.

ये भी पढ़ें- तेजस्वी यादव पर सम्राट चौधरी का तंज, डिप्टी सीएम सड़क छाप गुंडे की तरह दे रहे हैं बयान

बिहार में शब्दों की टूटती मर्यादा : बिहार में शायद ही कोई ऐसा दिन है, जिस दिन बिहार में कोई ऐसी राजनीतिक घटनाक्रम न हो, जिसे पूरा देश नहीं सुन रहा हो या देश की उसमें कोई दिलचस्पी न हो. पिछले कुछ दिनों से राजनीतिक कैलेंडर काफी तेजी से बिहार में पलटा है. एक गठबंधन खत्म हुआ तो दूसरा गठबंधन सत्तासीन हुआ. जाहिर है कुछ नेताओं के लिए यह झटका रहा तो कुछ के लिए लॉटरी के लगने जैसा रहा. राजनैतिक सरगर्मियां के बीच सियासी नेताओं के बोल बच्चन भी बिगड़ते चले गए, तरह-तरह के शब्द लोगों को सुनने को मिलने लगे. अगर नेताओं के बयान पर गौर करें तो कोई भी दल इससे अछूता नहीं है, करीब-करीब हर दल के नेताओं ने शब्दों की मर्यादा को लांघने का काम किया है. गौरतलब है कि राजनीतिक घटनाक्रम के बीच कुछ ऐसी भी घटनाएं हुई जिसके बाद नेताओं के बयान सामने आने लगे.

बिहार में बयानवीरों की नहीं है कमी : बिहार में जब बीजेपी-जदयू की सरकार गिरी और महागठबंधन की सरकार बनी तो इसी दरमियान सीबीआई की एंट्री हुई, सीबीआई की एंट्री के बाद तमाम दलों के नेता मुखर हो उठे और अपने-अपने शब्दों के बाण चलाने लगे. सीबीआई की कार्रवाई के बाद डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव का बयान काफी चर्चा में रहा जिसमें उन्होंने एक प्रेस कॉंन्फ्रेंस में यह कहा था कि ''यह बिहार है.. सब ठंडा कर देंगे''. तेजस्वी ने इन शब्दों का इस्तेमाल चाहे जिस किसी के लिए, जिस परिप्रेक्ष्य के लिए किया हो, लेकिन उनका यह बयान काफी सुर्खियों में रहा. न केवल तेजस्वी यादव बल्कि कई ऐसे नेता है जिन्होंने ऐसे-ऐसे बयान दिए जो विभिन्न मीडिया हाउस के हेडलाइंस बनते चले गए, अगर तारीख पर गौर करें तो 25 अगस्त को तेजस्वी के साथ ही कांग्रेस समर्थक माने जाने वाले आचार्य प्रमोद कृष्णन ने ट्वीट करते हुए लिखा कि- ''सीबीआई केंद्र की पसंदीदा नर्तकी है''. उसी दिन बिहार में बीजेपी के प्रमुख नेता और राज्यसभा सांसद सुशील मोदी का कहना था कि- ''जेल जाना और केस लड़ना लालू परिवार की फितरत है''.

बिहार में CBI जांच पर RJD के बिगड़े सुर : 26 अगस्त को पूर्वर्ती बीजेपी-जदयू सरकार में बीजेपी के कोटे से मंत्री रहे रामसूरत राय ने कहा कि तेजस्वी पर गुंडा एक्ट लगना चाहिए. जबकि उसी दिन 26 अगस्त की सुबह राजद के थिंक टैंक माने जाने वाले राज्यसभा सांसद मनोज झा का सीबीआई के अधिकारियों के तरफ इशारे-इशारे में यह कहना है कि आप के भी बाल बच्चे हैं, काफी चर्चा में रहा. वरिष्ठ समाजवादी विचारक पुष्पेंद्र कहते हैं, मशहूर दार्शनिक नित्से का मानना था कि इंसान स्वभाव से ही अनैतिक होता है. वह कहते हैं कि एक इंसान के अंदर सारे गुण होते हैं, सवाल यह है कि सत्ता किन बिंदुओ को बढ़ावा दे रहा है. आजादी की लड़ाई में इस बात का अहसास था कि भारतीय समाज जनतंत्र की प्रक्रिया से गुजरा नहीं है, इसमें लोकतांत्रिक मूल्यों का अभाव है.

'महात्मा गांधी का यह मानना था कि लक्ष्य कितना अहम है और उसे पाने के लिए हम क्या उपाय कर रहे हैं, साधन के ऊपर सुचिता की जो डोर है, वह समाज के जनतांत्रिक करण का एक हिस्सा है. लेकिन अगर उसके बाद की राजनीति को देखें तो इसमें क्या हुआ? पूरी जनतांत्रिक प्रक्रिया पार्टी पर आधारित है. इसमें एक दौर कांग्रेस का था, इसमें इस बात पर यह जोर था कि आपस में शालीनता से और भद्र शब्दों का इस्तेमाल हो. लेकिन समाज में जो शब्दों का इस्तेमाल था, उसके अन्य निर्मूलन के लिए प्रयास कम हुआ.' - पुष्पेंद्र, समाजवादी विचारक

नेताओं की जुबान पर नहीं है लगाम : कभी प्रदेश की राजनीति में काफी चर्चित रहे और अभी फिलहाल राजनीति से विराम ले चुके राजनेता नवल शर्मा कहते हैं, वर्तमान राजनीति में शुचिता की खोज ही बेमानी है, राजनीति के जो आज के किरदार हैं, उनसे शुचिता की अपेक्षा करना बेमानी है. आजादी के तुरंत बाद की राजनीति के दौर को देखें और आज की राजनीति को देखें तो जमीन आसमान का अंतर है. जो विधायिका पहले भारतीय जनता के मूलभूत सवाल से गूंजती रहती थी, आज उस विधायिका के चरित्र को देखकर देश का लोकतंत्र शर्मसार है.

'मेरा मानना है कि राजनीति में जो शब्दों की गिरावट है, उसका सीधा संबंध व्यक्ति का अपना दृष्टिकोण, जनता का चुनाव का नजरिया, समग्र राजनीतिक ढांचा, इन सारी बातों से मिलकर तैयार होता है. उदाहरण के तौर पर हाल ही में जर्मनी के रक्षा मंत्री को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा, वह इसलिए कि उन्होंने जो पीएचडी की थीसिस लिखी थी, वह पता चला कि नकल की हुई थी. मुझे लगता है कि पश्चिमी देशों में शुचिता और नैतिकता आज भी महत्वपूर्ण है. हमारे यहां यह सब बेमानी है. हमारे यहां येन-केन प्रकारेण सत्ता में आना, सत्ता में बने रहना, इसके लिए जनता को भ्रम में डालना अवसरवादी गठजोड़ करना, अपनी राजनीतिक रोटी सेंकना, यही भारतीय लोकतंत्र का मूल मंत्र हो गया है.' - नवल, राजनीतिक विश्लेषक

बिहार में नेताओं की शब्दों की टूटती मर्यादा : ऐसा नहीं है कि शब्दों के साथ ऐसा हेर-फेर पहली बार हुआ है. 2015 में भी जब बिहार में विधानसभा का चुनाव था तो उस वक्त भी कई विवादित बयान दिए गए थे, जो चर्चा में रहे. तब के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुजफ्फरपुर की रैली के साथ बिहार चुनाव प्रचार का आगाज किया था. तब उन्होंने नीतीश कुमार के ऊपर प्रहार करते हुए कहा था कि नीतीश कुमार के डीएनए में ही प्रॉब्लम है. पीएम मोदी के इस बयान को नीतीश कुमार और उनके सहयोगी लालू यादव ने काफी हवा भी दी थी और इसे बिहारियों का अपमान बताया था.

PM मोदी के DNA वाले बयान पर मचा था घमासान : वैसे ही उत्तर प्रदेश के दादरी में कथित तौर पर बीफ खाने के संदेह पर अखलाक नामक व्यक्ति की हत्या होने के बाद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने एक विवादित बयान दे दिया था. जिसमें उन्होंने कहा था कि हिंदू भी खाते हैं, बाद में लालू पलट गए थे और उन्होंने कहा कि बीफ से उनका मतलब भैंस जैसे जानवरों के मांस से है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा था कि उनके अंदर शैतान घुसा था जिसने उनसे ऐसी बातें बुलवा दी. लालू प्रसाद के इस बयान के बाद पीएम मोदी का एक और बयान चर्चा में था जब उन्होंने कहा था कि शैतान को लालू का पता कैसे चला. इतना ही नहीं बयानों और शब्दों के तीरे यहां तक ही नहीं रुके थे.

लालू यादव भी ऐसे बयान देने में हैं माहिर : पीएम मोदी की लालू के संदर्भ में शैतान शब्द का प्रयोग किए जाने के बाद लालू प्रसाद ने पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए कहा था कि यदि वह शैतान है तो मोदी ब्रह्म पिशाच हैं. 2015 के तीन चरणों के चुनाव के बाद बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी प्रचार को नया रंग देने की कोशिश की थी और बिहार के बगहा की रैली में कहा था कि अगर बिहार में बीजेपी हार जाएगी तो पटाखे पाकिस्तान में जलेंगे, हालांकि इस बयान के बाद अमित शाह को चुनाव आयोग की तरफ से नोटिस भी दी गई थी. कहने का मतलब है कि नेता अपने फायदे और वोटों के ध्रुवीकरण के लिए किसी भी सीमा को लांघ सकते हैं, और शब्दों की मर्यादा तो इन नेताओं के लिए कोई मायने नहीं रखते, और ऐसे में शब्दों की शुचिता की बात करना तो बेमानी ही है.

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