पटना: बिहार में जातीय जनगणना ( Caste Census ) पर सियासत जारी है. शुक्रवार को नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ( Tejashwi Yadav ) ने इस मुद्दे पर केन्द्र और बिहार सरकार पर हमला बोला. उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री से मांग कहा है कि, नीतीश कुमार ( CM Nitish Kumar ) कर्नाटक के तर्ज पर बिहार में जातिगत जनगणना कराने का ऐलान करें.
तेजस्वी ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 4 अगस्त को पीएम मोदी को पत्र लिखकर मिलने का वक्त मांगा था, लेकिन आज तक उन्हें वक्त नहीं मिला. पीएम मोदी उन्हें वक्त क्यों नहीं दे रहे हैं, ये हम नहीं जानते हैं, लेकिन इतना तो साफ है कि इस मुद्दे में सरकार की मंशा ठीक नहीं है.
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तेजस्वी ने आगे कहा कि हम जात-पात की बात नहीं कर रहे हैं, लेकिन ये जानना जरूरी है कि देश में किस जाति की जनसंख्या कितनी है. देश में गरीबों की जनसंख्या कितनी है. यही कारण है कि मैंने नीतीश कुमार से मिलकर इस मुद्दे पर पीएम मोदी से बात करने के लिए कहा था. लेकिन आज तक मिलने का वक्त नहीं दिया गया.
तेजस्वी ने कहा कि इस मुद्दे पर आज मैंने भी पीएम मोदी को पत्र लिखा है और उनसे मिलने का वक्त मांगा है. उन्होंने कहा कि, पत्र में जातिगत जनगणना को लेकर अपना पक्ष रखा है. हालांकि, इस दौरान उन्होंने सीएम नीतीश पर तंज भी कसा. नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि बिहार में डबल इंजन की सरकार चल रही है. इस सरकार के मुखिया को पीएम मोदी मिलने का वक्त नहीं दे रहे हैं. ऐसे में ये मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का अपमान है.
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बता दें कि बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और लालू के छोटे पुत्र तेजस्वी प्रसाद यादव की अगुवाई में विपक्षी दलों के एक शिष्टमंडल ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से 30 जुलाई को मुलाकत की थी. इस दौरान यह सुझाव दिया गया था कि विधानसभा का एक शिष्टमंडल, जिसमें उनके साथ सभी दलों के सदस्य शामिल रहेंगे. मुख्यमंत्री के नेतृत्व में प्रधानमंत्री से समय लेकर उनके समक्ष अपनी माग रखेंगे. अगर केंद्र सरकार ऐसा नहीं करती तो राज्य सरकार सभी जातियों की जनगणना करे जैसे, कर्नाटक ने कुछ समय पहले किया था.
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नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने 9 अगस्त को कहा था कि, उनका लिखा पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय को मिल चुका है. अभी तक इसका जवाब नहीं आया है. हमलोग चाहते हैं कि जातीय जनगणना हो जाए, यह केंद्र सरकार पर निर्भर है, यह हम लोगों की पुरानी मांग है, हम पहले भी इस संबंध में अपनी बातों को रखते रहे हैं.
बता दें कि साल 2015 में सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 'सामाजिक-आर्थिक और शिक्षा सर्वेक्षण' करवाया था. बाद में इसे ही जाति-जनगणना का नाम देकर प्रचारित किया गया. हालांकि, सर्वेक्षण के परिणाम सार्वजनिक नहीं किए गए. यह सामाजिक-आर्थिक और शिक्षा सर्वेक्षण राज्य सरकार ने अपने स्तर पर करवाया था और इसके लिए 162 करोड़ रुपए खर्च किए थे.