पटना: एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट सिस्टम (Academic Bank of Credit System) नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (New National Education Policy) का एक महत्वपूर्ण भाग है, जो शिक्षा व्यवस्था में विद्यार्थियों के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है. एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट एक वर्चुअल स्टोर हाउस है, जिसमें विद्यार्थियों का डाटा सुरक्षित रखा जाएगा. इसमें भारत के सभी कॉलेज और यूनिवर्सिटी अपना रजिस्ट्रेशन कराएंगे.
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इसका बड़ा फायदा विद्यार्थियों को तब मिलेगा जब कोई विद्यार्थी अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देता है या उसे टाइम पीरियड के हिसाब से सर्टिफिकेट, डिप्लोमा या डिग्री दी जाती है. एक बड़ा फायदा ये भी है कि एक बार पढ़ाई छोड़ने के बाद अगर दूसरी बार भविष्य में कभी उसी विषय की पढ़ाई करते हैं, तो आपको शुरुआत से नहीं बल्कि जहां से आपने पढ़ाई छोड़ी थी, वहीं से पढ़ाई शुरू कर सकेंगे.
ईटीवी भारत ने इस बारे में डॉ. अंकुर ओझा से बात कि जो विश्वविद्यालय मामलों के जानकार हैं. डॉ अंकुर ओझा ने कहा कि एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट की स्थापना से संबंधित सूचनाएं भारत सरकार के राजपत्र में प्रकाशित की गई हैं. ये देश की उच्चतर शिक्षा में सुधार लाने के उद्देश्य से उठाया गया क्रांतिकारी कदम है. इसमें छात्रों को अपनी सुविधा के अनुसार कोर्स डिजाइन करने की छूट मिलेगी, जैसे कंप्यूटर की पढ़ाई कर रहे छात्र अपनी रूचि के मुताबिक अन्य विषय भी पढ़ सकते हैं.
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''इसमें एक विश्वविद्यालय से दूसरे विश्वविद्यालय में स्थानांतरण की भी सुविधा होगी. छात्र अपनी सुविधा के मुताबिक ऑनलाइन पाठ्यक्रम के जरिए भी अपना कोर्स पूरा कर सकते हैं. पहले बीच में ही पढ़ाई छोड़ देने पर छात्रों को किसी भी तरह की डिग्री नहीं मिलती थी, लेकिन अब 1 वर्ष की पढ़ाई के बाद छात्र सर्टिफिकेट और 2 वर्ष की पढ़ाई के बाद एडवांस डिप्लोमा ले सकते हैं.''- डॉ. अंकुर ओझा, विश्वविद्यालय मामलों के जानकार
छात्रों का पूरा ब्यौरा उनके एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट में स्टोर रहेगा. डॉ अंकुर ओझा ने कहा कि इसके बावजूद यह अफसोस की बात है कि बिहार के अधिकांश विश्वविद्यालय इस एकेडमी क्रेडिट बैंक की स्थापना नहीं कर पाएंगे, क्योंकि इसके संचालन की अनुमति के लिए यूजीसी की गाइडलाइन के मुताबिक नैक रैंकिंग जरूरी है. कुल मिलाकर इसमें भी शिक्षा को डिग्री आधारित ही बनाए रखने पर अधिक जोर दिया गया है.
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शिक्षाविद विद्यार्थी विकास ने बताया कि यूजीसी की गाइडलाइंस के मुताबिक एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट की मदद से विद्यार्थी अपनी पसंद और जरूरत के मुताबिक कोर्स का चुनाव करेंगे, जो उनके लिए बेहतर हो. फिलहाल, इसे पोस्ट ग्रेजुएट लेवल पर शुरू करने की योजना है और बाद में इसे अंडर ग्रेजुएट कोर्स पर भी लागू किया जाएगा.
एबीसी से छात्रों को पढ़ाई में लचीलापन की सुविधा मिलेगी और वो अपनी रूचि के अनुसार कभी भी कोर्स या सब्जेक्ट बदल सकेंगे. यानी अगर विज्ञान की पढ़ाई कर रहा विद्यार्थी इतिहास की पढ़ाई करना चाहता है, तो एबीसी के तहत वो इतिहास में एडमिशन ले सकेगा. भविष्य में अगर वो विज्ञान की बची हुई पढ़ाई पूरी करना चाहेगा तो एबीसी में जमा क्रेडिट के मुताबिक उसे सिर्फ बाकी पाठ्यक्रम ही पूरा करना होगा और उसे उसके पाठ्यक्रम के मुताबिक डिग्री या डिप्लोमा मिल जाएगा.
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विद्यार्थी विकास ने बताया कि बिहार के महज 20% विद्यालय ही नैक एक्रेडिटेड हैं. नेशनल एकेडमिक क्रेडिट बैंक यूजीसी या शिक्षा मंत्रालय द्वारा ऑनलाइन मैनेज किया जाएगा. यूजीसी के द्वारा मान्यता प्राप्त उच्च शिक्षण संस्थान इस सुविधा का लाभ प्राप्त कर सकते हैं, जिन्हें कम से कम बी प्लस प्लस ग्रेडिंग प्राप्त हो. लेकिन, बिहार इस मामले में बुरी तरह पिछड़ सकता है, क्योंकि बिहार के कॉलेज और विश्वविद्यालयों में आधारभूत संरचनाओं की घोर कमी है.
इससे भी बड़ी बात ये है कि टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ नहीं होने की वजह से कॉलेज और विश्वविद्यालयों का काम बुरी तरह प्रभावित होता है. इसके अलावा राष्ट्रीय स्तर पर उच्च शिक्षण संस्थानों में पूरे देश में एक समान सिलेबस, एक समान ग्रेडिंग सिस्टम और एक समान अंक देने की व्यवस्था करनी होगी. क्रेडिट ट्रांसफर के दौरान विद्यार्थी द्वारा एक संस्थान छोड़कर दूसरे संस्थान जाने पर संस्थान को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ेगा.