पटना: बिहार की सियासत ( Bihar Politics ) में कब क्या होगा, कोई कुछ नहीं कह सकता. एलजेपी के पांच सांसदों का खेमा बदलने ( LJP Split ) से बिहार की सियासत गरम हो गई है. कयास तो यहां तक लगाया जा रहा है कि जेडीयू ( JDU ) के सह पर भले ही खेल हुआ है, लेकिन असली खेल अभी बाकी है. जानकार बताते हैं कि असली खेल अब शुरू होगा, क्योंकि 6 फीसदी वोटर्स का सवाल है.
जानकार तो यहां तक कहते हैं कि एलजेपी सांसदों का खेमा बदल लेने से बिहार के चुनावी-राजनीतिक समीकरण में कोई बड़ा बदलाव नहीं होने वाला है. ऐसा भी नहीं है कि ये बागी खेमा बिहार में पासवान जाति के 6 फीसदी मतदाताओं का नेता हो जाएगा. अगर चार दशकों से ऊपर के कालखंड को देखें तो में बिहार में पासवान जाति के सर्वमान्य नेता स्व. रामविलास पासवान ही रहे, पासवान की मृत्यु के बाद चिराग पासवान के साथ पासवान जाति के मतदाता बने रहे, 2020 के विधानसभा चुनाव में साबित भी हो चुका है.
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पारस और प्रिंस बन पाएंगे दलितों का नेता?
पासवान परिवार और पार्टी में मचे सियासी बवाल के बीच सबके मन में एक ही सवाल उठ रहा है कि क्या चिराग को दरकिनार कर पशुपति कुमार पारस ( Pashupati Paras ) और प्रिंस राज दलितों का सर्वमान्य नेता बन पाएंगे? शायद जवाब होगा नहीं! दरअसल, पशुपति कुमार पारस हों या प्रिंस राज, इन दोनों की पहचान बतौर पासवान नेता के तौर पर कभी रही ही नहीं. जानकार बताते हैं कि इनकी पकड़ अपनी जाति के मतदाताओं पर है ही नहीं. इन दोनों की पहचान रामविलास के भाई-भतीजा के तौर पर ही रही है और उन्हीं के भरोसे सियासी नैया पार लगती रही है. वहीं अगर चिराग पासवान ( Chirag Paswan ) की बात की जाए तो रामविलास पासवान ( Ram Vilas Paswan ) का असली और वाजिब उत्तराधिकारी हैं, और पासवान जाति के लोग मानते भी हैं. 2020 विधानसभा चुनाव में ये साबित भी हो चुका है.
बीजेपी के असरदार टूल साबित हुए हैं चिराग!
ऐसे में सबसे अहम सवाल ये है कि क्या बीजेपी ( Bihar BJP ) अपने हाथ से चिराग को निकल जाने देगी? शायद जवाब होगा नहीं. भले ही अभी सभी को लग रहा है कि एलजेपी में होने वाले विभाजन से फिलहाल किसी तरह का पॉलिटिक्ल इंपैक्ट तो नहीं है, लेकिन हम सभी जानते हैं कि सियासत में नजदीकी फायदे के साथ-साथ भविष्य में होने वाले असर को भी देखा जाता है. एलजेपी विधायकविहीन पार्टी है और बिहार में इस विभाजन से कुछ नया सधने-पकने नहीं जा रहा. वहीं अगर केन्द्र की सरकार और सियासत के संदर्भ में देखा जाए तो पांच की इस संख्या की कोई बड़ी अहमियत नहीं है. जानकार बताते हैं कि बीजेपी के लिए अभी भी चिराग पासवान का चेहरा ही मायने रखता है, क्योंकि 2020 विधानसभा चुनाव ( Bihar Assembly Election 2020) में नीतीश कुमार ( CM Nitish ) का कद बौना करने के खेल में चिराग बीजेपी के लिए असरदार टूल साबित हुए हैं.
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चिराग के पास विकल्प?
ऐसा नहीं है कि एलजेपी में विभाजन होने के बाद चिराग का 'लौ' कमजोर हो गया है, बिल्कुल नहीं. लौ को तेज करने के लिए तेल डालने की जरूरत है. ये काम बीजेपी के अलावे आरजेडी और कांग्रेस भी कर सकती है. ऐसे में बीजेपी कभी नहीं चाहेगी की चिराग पासवान महागठबंधन का हिस्सा बनें. क्योंकि जब से एलजेपी में बवाल मचा है तब से ही कांग्रेस और आरजेडी, ( Congress-RJD ) दोनों ही ओर से चिराग को ऑफर दिया जा रहा है. ऐसे में बीजेपी भी चाहेगी कि चिराग को साथ लेकर आगे बढ़ा जाए.
मां के नाम को आगे कर चिराग ने चला इमोशनल कार्ड!
पार्टी में विभाजन के नाम पर मचे बवाल के बीच चिराग पासवान 'इमोशनल' गेम भी खेल रहे हैं. सभी जानते हैं कि एलजेपी रामविलास पासवन की पार्टी है. सोमवार को चिराग पासवान अपने चाचा पशुपति से मिलने उनके घर पहुंचे तो खबर आयी कि वे समझौता करने के लिए 'प्रस्ताव' लेकर आए हैं. दरअसल, मां रीना पासवान को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव लेकर गए थे. अगर सब ठीक रहा तो इसके लिए उन्हें अपनी मां रीना पासवान को राजनीति में आने के लिए मनाना होगा. अगर ऐसा करने में वे सफल हो जाते हैं, तो पार्टी के साथ-साथ परिवार में भी विभाजन नहीं होगा.
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एलजेपी के विभाजन से बीजेपी खुश?
एलजेपी में मचे सियासी बवाल के बीच बीजेपी नेता-प्रवक्ता बयान जरूर दे रहे हैं. बयान से तो ऐसा ही लगता है कि वो खुश है, लेकिन ऐसा नहीं है. हां.. नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जरूर खुश होगी, क्योंकि चिराग पासवान फैक्टर ने नीतीश कुमार को व्यक्तिगत और राजनीतिक तौर पर बड़ा नुकसान पहुंचाया है. नीतीश कुमार आज जिस तरह से कमजोर और धारविहीन हो चुके हैं, उसकी बहुत बड़ी वजह चिराग हैं. जानकार भी बताते हैं कि एलजेपी में विभाजन के पीछे भी नीतीश का ही हाथ है, और इस विभाजन को अंजाम देकर नीतीश बीजेपी को संदेश भी दे दिया है कि कमजोर तो हूं लेकिन पूरी तरह से चूका नहीं हूं.
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बीजेपी को क्या मिला?
एलजेपी में मचे सियासी घमासान पर जेडीयू और बीजेपी, दोनों की ही निगाहें हैं. एलजेपी में चिराग के खिलाफ हुई इस बगावत से जेडीयू को सीधा फायदा मिलता दिख रहा है. कहा तो ये भी जा रहा है कि जिस तरह से पिछले दिनों उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी का जेडीयू में विलय हुआ, हो सकता है कि अने वाले समय में पशुपति पारस भी एलजेपी का जेडीयू में विलय करा दें. ये बात बीजेपी भी बखूबी समझ रही है. ऐसे में बीजेपी कभी नहीं चाहेगी कि चिराग की पकड़ एलजेपी में कम हो. इसके लिए बीजेपी काम भी कर रही होगी. ऐसे में हम कह सकते हैं बिहार में बीजेपी और जेडीयू ( BJP-JDU ) में सियासी वर्चस्व की अघोषित जंग अब शुरू होगा. ऐसे में तेल और तेल का धार, दोनों चिराग के 'लौ' को बढ़ाने का काम करेगा.