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चाचा पारस से अब सीधी लड़ाई लड़ने जा रहे चिराग! क्या छीन लेंगे पिता की सौंपी हुई 'विरासत'?

अभी तक जिस चिराग पासवान (Jamui MP Chirag Paswan) के निशाने पर सीधे-सीधे नीतीश कुमार रहते थे, अब साथ में उनके चाचा पारस भी होंगे. वहज ये कि चिराग पासवान अब अपने पिता के द्वारा चाचा को सौंपी गई थी उसे विरासत छीनने जा रहे हैं. एक्सपर्ट भी मानते हैं कि इसमें चिराग पासवान को फायदा होगा. पढ़ें पूरी खबर...

चिराग पारस की लड़ाई
चिराग पारस की लड़ाई
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Published : Mar 1, 2022, 5:18 PM IST

पटनाः दिवंगत रामविलास पासवान के द्वारा स्थापित लोक जनशक्ति पार्टी में एक बार फिर राजनैतिक संघर्ष होने (Political Tussle In LJP Over Hajipur Seat) की प्रबल संभावना है. बिहार का हाजीपुर लोकसभा सीट जहां से खुद रामविलास पासवान सांसद रहा करते थे. बाद में उन्होंने अपने छोटे भाई पशुपति कुमार पारस (Pashupati Paras and Chirag Paswan) को इस सीट की विरासत सौंप दी. आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में लड़ाई इसी विरासत की है, क्योंकि रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान जमुई की जगह इसी सीट से चुनाव लड़ने (Chirag Paswan will contest Lok Sabha elections from Hajipur) का पूरा मन बना चुके हैं.

इसे भी पढ़ें- UP में जमीन तैयार करने में जुटे हैं चिराग, बोले मणिशंकर पांडेय- मुंह बाए खड़ी हैं कई समस्याएं

पिछले कई महीनों में यह देखा भी गया है कि चिराग ने अपने आप को हाजीपुर में केन्द्रित रखा है. वह सीट जिसका प्रतिनिधित्व उनके पिता ने आठ बार किया था. अब किसी भी कीमत पर चिराग उसे अपने बागी चाचा को सौंपना नहीं चाहते हैं. अब चिराग भी मानते हैं कि हाजीपुर सीट को अपने चाचा को दिया जाना एक बड़ी गलती थी.

इसे भी पढ़ें- चिराग पासवान का दावा- 'तय है बिहार में मध्यावधि चुनाव होना'

बिहार में आपदाओं के वक्त इन दिनों लोगों के बीच नजर आ रहे हैं. कुछ दिनों पहले हाजीपुर में आयोजित मिलन समारोह से भी यह संदेश साफ है कि चिराग इस सीट पर ही अपना दावा करेंगे. हालांकि, इसके पहले भी यह संदेश दिया जा चुका था जब पार्टी में टूट के बाद अलग-थलग पड़े चिराग ने अपने पिता की 'कर्मभूमि' हाजीपुर से आशीर्वाद यात्रा की शुरुआत की थी.

लोजपा आर के प्रवक्ता चंदन सिंह ने चिराग का पक्ष रखते हुए कहा कि पशुपति पारस को हाजीपुर से चुनाव लड़वाना हमारी भूल थी. पारस से क्षेत्र की जनता नाखुश है और यह देखा भी जा चुका है. जब लोजपा में टूट करने के बाद पारस भी अपने क्षेत्र गए थे तब उनपर स्याही और कालिख फेंका गया था. काले झंडे दिखाए गए थे. कई दफा सांसद लापता के पोस्टर लगाकर भी विरोध जताया था. आलम ये कि अपनी समस्याओं को लेकर लोगों को सांसद के पास दिल्ली जाना पड़ता है.

चंदन सिंह कहते हैं कि चिराग पासवान के द्वारा उनके संसदीय क्षेत्र में किए गए कार्यों की सराहना देश के प्रधानमंत्री ने की है. जबकि पारस गुट के लोग कहते हैं कि जमुई की जनता ने चिराग को नकार दिया है, इसलिए वो जमुई के जगह हाजीपुर का रुख कर रहे हैं जो बेबुनियाद है.

इधर, पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रवक्ता ललन चंद्रवंशी ने ईटीवी भारत से टेलिफोनिक बातचीत के दौरान बताया कि चिराग पासवान जमुई से चुनाव ना लड़कर हाजीपुर से इसलि चुनाव लड़ना चाह रहे हैं क्योंकि उन्हें सेफ जोन की तलाश है. शुरू से ही हाजीपुर की सीट लोजपा के लिए सेफ जोन माना जाता रहा है. यही कारण है कि चिराग अपनी पिता की विरासत वाली सीट से चुनाव लड़ना चाह रहे हैं. जबकि रामविलास पासवान ने खुद अपनी विरासत की सीट अपने छोटे भाई पशुपति पारस को सौंपकर चुनाव लड़वाया था.

हालांकि, इन सब परिस्थितयों के बीच राजनैतिक मामलों के जानकार डॉ संजय कुमार कहते हैं कि हाजीपुर की जनता दिवंगत रामविलास पासवान से जुड़ी है. जनता के इसी समर्थन के दम पर रामविलास 8 बार इसी सीट से संसद पहुंचे थे और गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करवाया था.

क्षेत्र के विकास में रामविलास पासवान का बड़ा योगदान रहा है. संजय कुमार मानते हैं कि इस वक्त पशुपति पारस के वहां से सांसद रहने पर क्षेत्र की जनता खुद को ठगी हुई महसूस कर रही है. इसे लेकर तमाम तरह की बातें भी सामने आते रहती हैं. हां, पारस को हाजीपुर से चुनाव लड़वाने का निर्णय रामविलास का ही रहा लेकिन तब परिस्थितयां कुछ और थीं. उस समय पार्टी भी एकजुट थी और परिवार थी. लेकिन अब काफी कुछ बदल चुका है.

लोजपा अब दो गुटों में बंट चुकी है. अगर चिराग रामविलास पासवान का उत्तराधिकारी बताकर खुद हाजीपुर का लोकसभा चुनाव में रूख करते हैं तो इसका फायदा भी उन्हें मिल सकता है. यह भी तय माना जा रहा है कि लोकसभा के 2024 चुनाव में हाजीपुर सीट पर लोजपा का परिवार एक दूसरे के सामने खड़ा होगा. लेकिन, अंतिम निर्णय अब क्षेत्र की जनता के हाथों में है कि किसे वह इस सीट का असली दावेदार मानती है.

इधर, पारस गुट से खबर है कि 2024 चुनाव में पारस खुद भी इस सीट से नहीं लड़ेंगे. सूत्र बताते हैं कि पशुपति अपने बेटे को चुनाव मैदान में इस सीट से उतारने की तैयारी में हैं. अगर ऐसा फैसला लिया जाता है तो परिवारवाद से ग्रसित लोजपा में टूट भले ही हो जाए, इसके बाद भी इसकी कड़ियां नहीं टूटेंगी. क्योंकि पासवान परिवार का एक और सदस्य राजनीति मैदान में कदम रख चुका होगा.

चिराग पासवान का अपने संसदीय क्षेत्र छोड़कर पिता की विरासत की लड़ाई लड़ने हाजीपुर का रूख करने के भी कई पहलू हैं. इसका तो एक पक्ष यही जिसे चिराग के मुखर विरोधी पारस गुट सेफ जोन बता रहा है. क्योंकि एक्सपर्ट का ये मानना है कि हाजीपुर की सीट लोजपा के लिए कई दशकों तक लोजपा के लिए सेफ जोन रहा है. यह भी कि रामविलास पासवान और तत्कालीन लोजपा के कोर वोटर अब चिराग के साथ हैं.

इसे भी पढ़ें- 'चलाइये मुख्यमंत्री जी जितनी गोलियां चलानी है... लोजपाई रामविलास का हर कार्यकर्ता सीना तानकर खड़ा है'

दूसरा कि चिराग पासवान जिस राह पर मौजूदा हालात में चल रहे हैं, उनके लिए अपने सहित पार्टी को मजबूत बनाए रखने की कड़ी चुनौती है. बड़ी बात ये कि अब तक चिराग के निशाने पर सीधे-सीधे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हुआ करते थे, अब उनके चाचा पशुपति कुमार पारस भी होंगे. क्योंकि जाहिर है कि कई बार चाचा के बागी होने के सवाल पर चिराग ने राजनैतिक से ज्यादा परिवार टूटने पर अफसोस जताया है. लेकिन दोनों ही नेताओं के लिए अब 'विरासत' बचाने की लड़ाई है. यह दिलचस्प तो जरूर होगी लेकिन आसान नहीं.

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पटनाः दिवंगत रामविलास पासवान के द्वारा स्थापित लोक जनशक्ति पार्टी में एक बार फिर राजनैतिक संघर्ष होने (Political Tussle In LJP Over Hajipur Seat) की प्रबल संभावना है. बिहार का हाजीपुर लोकसभा सीट जहां से खुद रामविलास पासवान सांसद रहा करते थे. बाद में उन्होंने अपने छोटे भाई पशुपति कुमार पारस (Pashupati Paras and Chirag Paswan) को इस सीट की विरासत सौंप दी. आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में लड़ाई इसी विरासत की है, क्योंकि रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान जमुई की जगह इसी सीट से चुनाव लड़ने (Chirag Paswan will contest Lok Sabha elections from Hajipur) का पूरा मन बना चुके हैं.

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पिछले कई महीनों में यह देखा भी गया है कि चिराग ने अपने आप को हाजीपुर में केन्द्रित रखा है. वह सीट जिसका प्रतिनिधित्व उनके पिता ने आठ बार किया था. अब किसी भी कीमत पर चिराग उसे अपने बागी चाचा को सौंपना नहीं चाहते हैं. अब चिराग भी मानते हैं कि हाजीपुर सीट को अपने चाचा को दिया जाना एक बड़ी गलती थी.

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बिहार में आपदाओं के वक्त इन दिनों लोगों के बीच नजर आ रहे हैं. कुछ दिनों पहले हाजीपुर में आयोजित मिलन समारोह से भी यह संदेश साफ है कि चिराग इस सीट पर ही अपना दावा करेंगे. हालांकि, इसके पहले भी यह संदेश दिया जा चुका था जब पार्टी में टूट के बाद अलग-थलग पड़े चिराग ने अपने पिता की 'कर्मभूमि' हाजीपुर से आशीर्वाद यात्रा की शुरुआत की थी.

लोजपा आर के प्रवक्ता चंदन सिंह ने चिराग का पक्ष रखते हुए कहा कि पशुपति पारस को हाजीपुर से चुनाव लड़वाना हमारी भूल थी. पारस से क्षेत्र की जनता नाखुश है और यह देखा भी जा चुका है. जब लोजपा में टूट करने के बाद पारस भी अपने क्षेत्र गए थे तब उनपर स्याही और कालिख फेंका गया था. काले झंडे दिखाए गए थे. कई दफा सांसद लापता के पोस्टर लगाकर भी विरोध जताया था. आलम ये कि अपनी समस्याओं को लेकर लोगों को सांसद के पास दिल्ली जाना पड़ता है.

चंदन सिंह कहते हैं कि चिराग पासवान के द्वारा उनके संसदीय क्षेत्र में किए गए कार्यों की सराहना देश के प्रधानमंत्री ने की है. जबकि पारस गुट के लोग कहते हैं कि जमुई की जनता ने चिराग को नकार दिया है, इसलिए वो जमुई के जगह हाजीपुर का रुख कर रहे हैं जो बेबुनियाद है.

इधर, पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रवक्ता ललन चंद्रवंशी ने ईटीवी भारत से टेलिफोनिक बातचीत के दौरान बताया कि चिराग पासवान जमुई से चुनाव ना लड़कर हाजीपुर से इसलि चुनाव लड़ना चाह रहे हैं क्योंकि उन्हें सेफ जोन की तलाश है. शुरू से ही हाजीपुर की सीट लोजपा के लिए सेफ जोन माना जाता रहा है. यही कारण है कि चिराग अपनी पिता की विरासत वाली सीट से चुनाव लड़ना चाह रहे हैं. जबकि रामविलास पासवान ने खुद अपनी विरासत की सीट अपने छोटे भाई पशुपति पारस को सौंपकर चुनाव लड़वाया था.

हालांकि, इन सब परिस्थितयों के बीच राजनैतिक मामलों के जानकार डॉ संजय कुमार कहते हैं कि हाजीपुर की जनता दिवंगत रामविलास पासवान से जुड़ी है. जनता के इसी समर्थन के दम पर रामविलास 8 बार इसी सीट से संसद पहुंचे थे और गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करवाया था.

क्षेत्र के विकास में रामविलास पासवान का बड़ा योगदान रहा है. संजय कुमार मानते हैं कि इस वक्त पशुपति पारस के वहां से सांसद रहने पर क्षेत्र की जनता खुद को ठगी हुई महसूस कर रही है. इसे लेकर तमाम तरह की बातें भी सामने आते रहती हैं. हां, पारस को हाजीपुर से चुनाव लड़वाने का निर्णय रामविलास का ही रहा लेकिन तब परिस्थितयां कुछ और थीं. उस समय पार्टी भी एकजुट थी और परिवार थी. लेकिन अब काफी कुछ बदल चुका है.

लोजपा अब दो गुटों में बंट चुकी है. अगर चिराग रामविलास पासवान का उत्तराधिकारी बताकर खुद हाजीपुर का लोकसभा चुनाव में रूख करते हैं तो इसका फायदा भी उन्हें मिल सकता है. यह भी तय माना जा रहा है कि लोकसभा के 2024 चुनाव में हाजीपुर सीट पर लोजपा का परिवार एक दूसरे के सामने खड़ा होगा. लेकिन, अंतिम निर्णय अब क्षेत्र की जनता के हाथों में है कि किसे वह इस सीट का असली दावेदार मानती है.

इधर, पारस गुट से खबर है कि 2024 चुनाव में पारस खुद भी इस सीट से नहीं लड़ेंगे. सूत्र बताते हैं कि पशुपति अपने बेटे को चुनाव मैदान में इस सीट से उतारने की तैयारी में हैं. अगर ऐसा फैसला लिया जाता है तो परिवारवाद से ग्रसित लोजपा में टूट भले ही हो जाए, इसके बाद भी इसकी कड़ियां नहीं टूटेंगी. क्योंकि पासवान परिवार का एक और सदस्य राजनीति मैदान में कदम रख चुका होगा.

चिराग पासवान का अपने संसदीय क्षेत्र छोड़कर पिता की विरासत की लड़ाई लड़ने हाजीपुर का रूख करने के भी कई पहलू हैं. इसका तो एक पक्ष यही जिसे चिराग के मुखर विरोधी पारस गुट सेफ जोन बता रहा है. क्योंकि एक्सपर्ट का ये मानना है कि हाजीपुर की सीट लोजपा के लिए कई दशकों तक लोजपा के लिए सेफ जोन रहा है. यह भी कि रामविलास पासवान और तत्कालीन लोजपा के कोर वोटर अब चिराग के साथ हैं.

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दूसरा कि चिराग पासवान जिस राह पर मौजूदा हालात में चल रहे हैं, उनके लिए अपने सहित पार्टी को मजबूत बनाए रखने की कड़ी चुनौती है. बड़ी बात ये कि अब तक चिराग के निशाने पर सीधे-सीधे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हुआ करते थे, अब उनके चाचा पशुपति कुमार पारस भी होंगे. क्योंकि जाहिर है कि कई बार चाचा के बागी होने के सवाल पर चिराग ने राजनैतिक से ज्यादा परिवार टूटने पर अफसोस जताया है. लेकिन दोनों ही नेताओं के लिए अब 'विरासत' बचाने की लड़ाई है. यह दिलचस्प तो जरूर होगी लेकिन आसान नहीं.

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