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जातीय जनगणना पर LJP ने नहीं खोला पत्ता, 'वेट एंड वाच' में दिख रहे पशुपति पारस - पशुपति पारस

जातीय जनगणना को लेकर बिहार की राजनीति गर्म है. बीजेपी को छोड़कर तमाम पार्टियां इसके लिए आवाज उठा रही है. जब हमने इस मुद्दे पर पशुपति पारस (Pashupati Paras) से उनकी राय मांगी तो वह बीच का रास्ता निकाल बैठे. पढ़ें पूरी रिपोर्ट..

Pashupati Paras
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Published : Sep 5, 2021, 6:01 AM IST

पटना: वैसे तो हर राजनेता कहते हैं कि वे 'जाति' की राजनीति (Caste Politics) नहीं करते हैं. पर उत्तर भारत की जमीनी सच्चाई यह है कि इससे ऊपर कोई राजनीतिक दल उठ ही नहीं पाता है. खासकर बिहार की बात करें तो यहां पर 'जाति' राजनीति से कभी नहीं जाती है.

ये भी पढ़ें- मैं रामविलास भाईसाहब का असली उत्तराधिकारी हूं : पारस

जातीय जनगणना को लेकर बिहार के दमाम दल एक साथ नजर आते हैं. जदयू से लेकर राजद तक, हम से लेकर कांग्रेस तक, वाम से लेकर वीआईपी तक इसको लेकर अपनी आवाज बुलंद करते हैं. बिहार के तमाम राजनीतिक दल ओबीसी वोट बैंक को साधने के लिए एक मंच पर दिख रहे हैं. हालांकि बीजेपी इससे अपने को अलग ही रखती है. मतलब 'बिहार एनडीए' में जातीय जनगणना पर मतभेद साफ है.

देखें वीडियो.

ऐसे में जो दल केन्द्र में एनडीए के सहयोगी हैं उसका क्या रुख है वह जानना भी जरूरी है. ऐसे में हमने लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केन्द्रीय मंत्री पशुपति पारस से खास बातचीत में यह मुद्दा उठा. हमने पशुपति पारस से सीधा प्रश्न पूछा कि जातीय जनगणना पर आपकी क्या राय है ? आप पीएम मोदी के साथ हैं या नीतीश कुमार के साथ हैं?

पशुपति पारस ने इसका सीधा जवाब नहीं दिया, बीच का रास्ता अपनाया. उन्होंने कहा कि 'मैं एनडीए का हिस्सा हूं. उस एनडीए के गठबंधन में हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी हैं. उसमें एक छोटे गठबंधन के रूप में हमारी पार्टी भी है, मैं भी हूं. हमारी अपनी राय है कि जो सर्वसम्मति से गठबंधन में फैसला होगा, उस फैसले के साथ मैं और मेरी पार्टी दोनों रहेंगे. अब समय आने दीजिए जब भी एनडीए गठबंधन की बैठक होगी, बैठक में सर्वसम्मति से आम राय बनेगी और उसी दृष्टिकोण से जातीय जनगणना पर विचार किया जाएगा.''

ये भी पढ़ें- जातीय जनगणना के जरिये OBC वोट बैंक को साधने की कवायद!

पशुपति पारस के जवाब से यह साफ था कि वे 'वेट एंड वाच' में रहेंगे. क्योंकि किसी को नाराज करना अभी के समय में सही नहीं है. वह जानते हैं नाराज करने से उनका ही नुकसान होगा. पशुपति पारस को यह भी पता है कि नीतीश कुमार को खुश रखेंगे तो बिहार में मजबूती मिलेगी. बीजेपी को खुश रखेंगे तो मंत्री की गद्दी सलामत रहेगी.

बता दें कि जातीय जनगणना के सवाल पर बिहार के तमाम राजनीतिक दल एक फोरम पर हैं. सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के नेतृत्व में 10 पार्टियों के 11 सदस्यों वाले प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से मुलाकात की थी. नेताओं ने प्रधानमंत्री से मुलाकात कर जातिगत जनगणना के पक्ष में आवाज बुलंद की थी.

जनगणना की अगर बात करें तो सबसे पहले 1872 में अंग्रेजी शासन काल में पहली जनगणना हुई थी. लेकिन 1881 में विधिवत तरीके से जनगणना की शुरुआत हुई. 1931 तक जाति के आधार पर जनगणना होती रही. 1941 में भी जातिगत आधार पर जनगणना हुई थी, लेकिन आंकड़ा जारी नहीं किया जा सका था. आज की तारीख में पुराने आंकड़ों के आधार पर ही देश में नीतियां बन रही हैं.

पटना: वैसे तो हर राजनेता कहते हैं कि वे 'जाति' की राजनीति (Caste Politics) नहीं करते हैं. पर उत्तर भारत की जमीनी सच्चाई यह है कि इससे ऊपर कोई राजनीतिक दल उठ ही नहीं पाता है. खासकर बिहार की बात करें तो यहां पर 'जाति' राजनीति से कभी नहीं जाती है.

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जातीय जनगणना को लेकर बिहार के दमाम दल एक साथ नजर आते हैं. जदयू से लेकर राजद तक, हम से लेकर कांग्रेस तक, वाम से लेकर वीआईपी तक इसको लेकर अपनी आवाज बुलंद करते हैं. बिहार के तमाम राजनीतिक दल ओबीसी वोट बैंक को साधने के लिए एक मंच पर दिख रहे हैं. हालांकि बीजेपी इससे अपने को अलग ही रखती है. मतलब 'बिहार एनडीए' में जातीय जनगणना पर मतभेद साफ है.

देखें वीडियो.

ऐसे में जो दल केन्द्र में एनडीए के सहयोगी हैं उसका क्या रुख है वह जानना भी जरूरी है. ऐसे में हमने लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केन्द्रीय मंत्री पशुपति पारस से खास बातचीत में यह मुद्दा उठा. हमने पशुपति पारस से सीधा प्रश्न पूछा कि जातीय जनगणना पर आपकी क्या राय है ? आप पीएम मोदी के साथ हैं या नीतीश कुमार के साथ हैं?

पशुपति पारस ने इसका सीधा जवाब नहीं दिया, बीच का रास्ता अपनाया. उन्होंने कहा कि 'मैं एनडीए का हिस्सा हूं. उस एनडीए के गठबंधन में हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी हैं. उसमें एक छोटे गठबंधन के रूप में हमारी पार्टी भी है, मैं भी हूं. हमारी अपनी राय है कि जो सर्वसम्मति से गठबंधन में फैसला होगा, उस फैसले के साथ मैं और मेरी पार्टी दोनों रहेंगे. अब समय आने दीजिए जब भी एनडीए गठबंधन की बैठक होगी, बैठक में सर्वसम्मति से आम राय बनेगी और उसी दृष्टिकोण से जातीय जनगणना पर विचार किया जाएगा.''

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पशुपति पारस के जवाब से यह साफ था कि वे 'वेट एंड वाच' में रहेंगे. क्योंकि किसी को नाराज करना अभी के समय में सही नहीं है. वह जानते हैं नाराज करने से उनका ही नुकसान होगा. पशुपति पारस को यह भी पता है कि नीतीश कुमार को खुश रखेंगे तो बिहार में मजबूती मिलेगी. बीजेपी को खुश रखेंगे तो मंत्री की गद्दी सलामत रहेगी.

बता दें कि जातीय जनगणना के सवाल पर बिहार के तमाम राजनीतिक दल एक फोरम पर हैं. सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के नेतृत्व में 10 पार्टियों के 11 सदस्यों वाले प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से मुलाकात की थी. नेताओं ने प्रधानमंत्री से मुलाकात कर जातिगत जनगणना के पक्ष में आवाज बुलंद की थी.

जनगणना की अगर बात करें तो सबसे पहले 1872 में अंग्रेजी शासन काल में पहली जनगणना हुई थी. लेकिन 1881 में विधिवत तरीके से जनगणना की शुरुआत हुई. 1931 तक जाति के आधार पर जनगणना होती रही. 1941 में भी जातिगत आधार पर जनगणना हुई थी, लेकिन आंकड़ा जारी नहीं किया जा सका था. आज की तारीख में पुराने आंकड़ों के आधार पर ही देश में नीतियां बन रही हैं.

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